केंद्रीय मंत्री बोले-सरकार बनाएगी नए नियम, कसेगा शिकंजा
नई दिल्ली। केंद्रीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ‘डीपफेक’ को ‘लोकतंत्र के लिए खतरा’ करार देते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि सरकार इस बारे में नए नियम लाने की तैयारी कर रही है। इसके तहत ‘डीपफेक’ बनाने वालों और संबंधित मंचों दोनों पर जुर्माना लगाया जा सकेगा। ‘डीपफेक’ में कृत्रिम मेधा (एआई) का इस्तेमाल करते हुए किसी तस्वीर या वीडियो में मौजूद व्यक्ति की जगह किसी दूसरे को दिखा दिया जाता है। इसमें इतनी समानता होती है कि असली और नकली में अंतर करना काफी मुश्किल होता है। हाल ही में, बॉलीवुड के कई कलाकारों को निशाना बनाने वाले कई ‘डीपफेक’ वीडियो सोशल मीडिया मंच पर आए। इसपर कई लोगों ने नाराजगी जाहिर की। इससे नकली सामग्री बनाने के लिए प्रौद्योगिकी तथा उपकरणों के दुरुपयोग को लेकर भी कई सवाल खड़े हुए हैं। सोशल मीडिया मंच, नैसकॉम और कृत्रिम मेधा (एआई) के क्षेत्र के अन्य प्रोफेसर सहित विभिन्न हितधारकों के साथ बैठक के बाद उन्होंने कहा, ‘डीपफेक लोकतंत्र के लिए एक नया खतरा बनकर उभरा है। ये समाज और उसके संस्थानों में विश्वास को कमजोर कर सकते हैं। वैष्णव ने कहा कि सरकार 10 दिन के भीतर चार स्तंभों ‘डीपफेक’ का पता लगाने, ऐसी सामग्री के प्रसार को रोकने, इसकी सूचना देने के तंत्र को मजबूत करने और मुद्दे पर जागरूकता फैलाने पर कार्रवाई योग्य कदम उठाएगी। उन्होंने कहा कि बैठक में मौजूद सभी हितधारकों ने ‘डीपफेक’ के संबंध में समान चिंताएं जाहिर कीं।
मंत्री ने कहा, सभी सोशल मीडिया मंच ‘डीपफेक’ का पता लगाने के लिए व्यापक प्राद्योगिकी के इस्तेमाल पर सहमत हुए। भारत में 80 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, जिनके दो वर्षों में 120 करोड़ से अधिक होने का अनुमान है। वैष्णव ने कहा कि ‘डीपफेक’ विज्ञापन या भ्रामक प्रचार एक खतरा है जिसका भारतीय समाज वर्तमान में सामना कर रहा है। उन्होंने यहां पत्रकारों से कहा, सोशल मीडिया का उपयोग यह सुनिश्चित करता है कि ‘डीपफेक’ बिना किसी रोक-टोक तेजी से फैल जाए। यही कारण है कि हमें समाज और हमारे लोकतंत्र में विश्वास को मजबूत करने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
–
पीएम ने किया था आगाह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पिछले सप्ताह आगाह किया था कि एआई से बनाए गए ‘डीपफेक’ बड़े संकट का कारण बन सकते हैं। समाज में असंतोष उत्पन्न कर सकते हैं। उन्होंने मीडिया से इसके दुरुपयोग को लेकर जागरूकता बढ़ाने और लोगों को शिक्षित करने का आग्रह भी किया था। वहीं, वैष्णव ने गत शनिवार को आगाह किया था कि अगर मंच ‘डीपफेक’ को हटाने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाते हैं, तो उन्हें आईटी अधिनियम के तहत वर्तमान में जो ‘सुरक्षित हार्बर प्रतिरक्षा’ मिली है, वह नहीं दी जाएगी।
–
बैठक में कंपनियों ने जताई चिंताएं
हितधारकों के साथ बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री वैष्णव ने कहा कि ‘डीपफेक’ वीडियो निर्माताओं ने ‘लेबलिंग’ और ‘वॉटरमार्क’ का भी तोड़ निकाल लिया है। मंत्री ने कहा, इसलिए कुछ ऐसा रास्ता निकालने की जरूरत है जिससे इससे निपटा जा सके। उन्होंने कहा, सभी कंपनियों ने चिंताएं साझा कीं। वे समझ गए हैं कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है, यह बहुत हानिकारक है। उन्होंने कड़े विनियमन की आवश्यकता को भी समझा।
–
ये हो चुके डीपफेक के शिकार
रश्मिका मंदाना
सारा तेंदुलकर
काजोल
कैटरीना कैफ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
सीएम शिवराज सिंह चौहान
—
डीपफेक का 1997 में हुआ था पहला प्रयोग
साल 1997 में क्रिस्टोफ ब्रेगलर, मिशेल कोवेल और मैल्कम स्लेनी ने इस तकनीक की मदद से एक वीडियो में विजुअल से छेड़छाड़ की और एंकर द्वारा बोले जा रहे शब्दों को बदल दिया था इसे एक प्रयोग के तौर पर किया गया था। हॉलीवुड फिल्मों में इस तकनीक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता था। कई बार शूटिंग के बीच में ही कुछ कलाकारों की मौत हो जाती या किसी के पास डेस्ट की कमी होती तो इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था। उदाहरण के लिए फिल्म ‘फास्ट एंड फ्यूरियस’ को देख सकते हैं उसमें लीड एक्टर पॉल वॉकर की जगह उनके भाई ने भूमिका निभाई थी, क्योंकि शूट के बीच में ही उनकी मौत हो गई थी। डीपफेक तकनीक के जरिए उनको हूबहू पॉल वॉकर बना दिया गया यहां तक कि उनकी आवाज भी पॉल जैसी हो गई शुरू में डीपफेक प्रॉस्टिट्यूट के बाद सड़के की एंटी तकनीक का इस्तेमाल नकारात्मक तरीके से नहीं होता था लेकिन जैसे-जैसे इस तकनीक ने तरक्की की, असली-नकली का फर्क करना भी मुश्किल होने लगा।
0000000000

