DY Chandrachud to become Chief Justice of India: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के लिए 2022 अनूठा है। इस साल सिर्फ तीन महीने में तीन मुख्य न्यायाधीश देश की सबसे बड़ी अदालत का नेतृत्व करेंगे। अगस्त 2022 में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमण (CJI NV Ramana) रिटायर होंगे। उनकी जगह जस्टिस उदय उमेश ललित (Uday Umesh Lalit) लेंगे। जस्टिस ललित का कार्यकाल दो-ढाई महीने का होगा। 65 साल की आयु के बाद वो रिटायर हो जाएंगे। इसके बाद नवंबर में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) देश के अगले मुख्य न्यायाधीश बन जाएंगे। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ पूरे दो साल पदभार संभालेंगे। जस्टिस चंद्रचूड़ देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ (YV Chandrachud) के बेटे हैं। यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के नाम सबसे लंबे समय तक देश का मुख्य न्यायाधीश रहने का रिकॉर्ड दर्ज है। वह 7 साल 4 महीने मुख्य न्यायाधीश रहे थे। उन्हें ‘आयरन हैंड्स’ के नाम से भी जाना जाता है। अपने कार्यकाल में उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले दिए। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी को जेल भेजा। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को नजरअंदाज करते हुए मस्लिम महिलाओं को पति से गुजारा-भत्ता लेने का हक दिया।
जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता सरकार के कार्यकाल के दौरान भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने ‘किस्सा कुर्सी का’ मामले में संजय गांधी को जेल भेज दिया था। ‘किस्सा कुर्सी का’ राजनीति पर व्यंग्य करती हुई फिल्म थी। इसका निर्देशन अमृत नाहटा ने किया था। अमृत नाहटा सांसद भी थे। यह फिल्म इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी की राजनीति पर एक व्यंग्य थी। इमरजेंसी के दौरान भारत सरकार ने इस फिल्म पर बैन लगा दिया था। इसके सभी प्रिंट जब्त कर लिए गए थे। जब कुछ साल बाद इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार दोबारा सत्ता में आई तो जस्टिस चंद्रचूड़ उसके प्रबल विरोधी बन गए। उन्हें न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए जाना जाता है।
वाईवी चंद्रचूड़ के कुछ ऐतिहासिक फैसले
-मिनर्वा मिल्स लिमिटेड बनाम भारत सरकार [(1980) 3 एससीसी 625] : इस मामले में चंद्रचूड़ ने यह तय किया था कि फंडामेंटल राइट्स और डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स के बीच संतुलन कैसे हासिल किया जाना है।
- गुरबख्श सिंह सिब्बिया बनाम पंजाब सरकार [(1980) 2 एससीसी 565] : चंद्रचूड़ ने मामले में आपराधिक कानून के प्रति अपनी सहानुभूति दिखाई थी। इस दौरान उन्होंने अग्रिम जमानत को लेकर अहम टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि अग्रिम जमानत लेने का फैसला उन जजों पर छोड़ देना चाहिए जिनके पास समझदारी भरा निर्णय लेने का अनुभव है।
- मो. अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम [(1985) 2 एससीसी 556] : यह फैसला कई मामलों में नजीर बनता रहा है। चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाया था कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं सिविल प्रोसीजर कोड के तहत पतियों से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार हैं। यह मुस्लिम पर्सनल लॉ को दरकिनार करता था।
- ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन [(1985) 3 एससीसी 545] : इस मामले में चंद्रचूड़ ने संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का विस्तार झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के लिए किया था। अपना फैसला सुनाते हुए उन्होंने कहा था कि उनके सिर पर छत का अधिकार है।
- हेबियस कॉर्पस केस [(1976) 2 एससीसी 521] : यह केस ए.डी.एम. जलबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला से जुड़ा था। अपने समय का यह मशहूर लेकिन विवादित जजमेंट था। मामले में उन्होंने न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती के साथ फैसला दिया था कि इमरजेंसी के दौरान जीवन के अधिकार को भी निलंबित किया जा सकता है।
बॉम्बे यूनिवर्सिटी से किया था एलएलएम
वाईवी चंद्रचूड़ का जन्म 12 जुलाई 1920 को पुणे के प्रमुख ऋग्वेदी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। चंद्रचूड़ की शिक्षा नूतन मराठी विद्यालय हाई स्कूल, एलफिंस्टन कॉलेज और ILS लॉ कॉलेज, पुणे में हुई। उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से एलएलएम किया था। जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने 14 जुलाई 2008 को बॉम्बे अस्पताल में अंतिम सांस ली थी। उनकी पत्नी का नाम प्रभा है। बेटे डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा उनके निर्मला नाम की बेटी भी है। उनके दो पोते भी हैं। अभिनव चंद्रचूड़ बॉम्बे हाई कोर्ट में लॉयर हैं। वहीं, चिंतन चंद्रचूड़ लीगल स्कॉलर और राइटर हैं।

