फ्री रेवड़ी की घोषणाओं पर दिखाई सख्ती, केंद्र, चुनाव आयोग, राजस्थान व मप्र सरकार से मांगा जवाब
नई दिल्ली। चुनावों से पहले राजनीतिक दलों द्वारा किए जा रहे वादों के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा सभी तरह के वादे किए जा सकते हैं। कोर्ट ऐसे कृत्यों को नियंत्रित नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए केंद्र सरकार, मध्य प्रदेश व राजस्थान सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने केंद्र, राज्यों और चुनाव आयोग से 4 सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।
केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जनता को लुभाने के लिए दी जा रही मुफ्त उपहारों और नकदी योजनाओं को लेकर दायर याचिका में कहा गया कि जनता के टैक्स का सरकारें दुरुपयोग कर रहीं हैं। याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने नोटिस जारी किया। ज्ञात हो कि मप्र, राजस्थान समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव से पूर्व जमकर घोषणाएं हो रहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने नई जनहित याचिका को पहले से चल रही अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है। सभी मामलों की सुनवाई अब एकसाथ होगी।
फ्री रेवड़ी भविष्य की आर्थिक आपदा : केंद्र
इससे पहले केंद्र सरकार ने अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से फ्रीबीज की परिभाषा तय करने की अपील की। केंद्र ने कहा कि अगर फ्रीबीज का बंटना जारी रहा तो ये देश को ‘भविष्य की आर्थिक आपदा’ की ओर ले जाएगा।
फ्री स्कीम्स की परिभाषा आप ही तय करें : चुनाव आयोग
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान 11 अगस्त को चुनाव आयोग ने कहा था कि फ्रीबीज पर पार्टियां क्या पॉलिसी अपनाती हैं, उसे रेगुलेट करना चुनाव आयोग के अधिकार में नहीं है। चुनावों से पहले फ्रीबीज का वादा करना या चुनाव के बाद उसे देना राजनीतिक पार्टियों का नीतिगत फैसला होता है। इस बारे में नियम बनाए बिना कोई कार्रवाई करना चुनाव आयोग की शक्तियों का दुरुपयोग करना होगा। कोर्ट ही तय करें कि फ्री स्कीम्स क्या हैं और क्या नहीं। इसके बाद हम इसे लागू करेंगे।
पार्टियों का चिन्ह व रजिस्ट्रेशन खत्म करने की मांग
मप्र के सामाजिक कार्यकर्ता भट्टूलाल जैन व भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में उन्होंने ऐसे राजनीतिक दलों पर भारत के चुनाव आयोग को कार्रवाई करने, चुनाव चिह्न जब्त करने और राजनीतिक दलों को अपंजीकृत करने के निर्देश देने की मांग की गई है जो चुनाव से पहले सार्वजनिक धन का उपयोग करके अतार्किक मुफ्त उपहार देने का वादा करते हैं या वितरित करते हैं।
क्या है मुफ्त उपहारों का पूरा मुद्दा?
चुनाव के दौरान जनता को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाओं और नकदी योजनाओं के वादे को मुफ्त उपहार की श्रेणी में गिना जाता है। एक वर्ग का मानना है कि ऐसा करके करदाता के पैसों का गलत तरीके से उपयोग किया जाता है और पार्टी की सरकार बनने पर खर्च बढ़ जाता है। केंद्र से लेकर दिल्ली और मध्य प्रदेश तक, लगभग हर राज्य की सरकार जनता को कोई न कोई मुफ्त उपहार देती है।
मप्र हाईकोर्ट ने ठुकरा दी थी याचिका
जैन ने पहले मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें मुख्यमंत्री को घोषणाएं और वादे न करने के निर्देश देने की मांग की गई थी। उन्होंने राज्य की वित्तीय स्थितियों पर गौर करने के लिए निर्देश देने की भी प्रार्थना की थी।
उच्च न्यायालय ने 26 जून को जैन की याचिका इस आधार पर खारिज कर दी कि अखबार की रिपोर्ट के आधार पर दायर जनहित याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। इसके बाद जैन ने अपील में शीर्ष अदालत का रुख किया।
विशेषज्ञ समूह गठित करने का फैसला किया था
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 3 अगस्त को एक विशेषज्ञ समूह गठित करने का फैसला किया था, जिसमें सरकार, विपक्षी दल, नीति आयोग, चुनाव आयोग, वित्त आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक के सदस्य राजनीतिक दलों द्वारा घोषित मुफ्त उपहारों के प्रभाव का अध्ययन करेंगे।
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