- 6 नवंबर तक देनी होगी रिपोर्ट
वाराणसी। ज्ञानवापी परिसर के सर्वे और उसकी रिपोर्ट जमा करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को अदालत ने चार सप्ताह का समय दे दिया है। वाराणसी जिला जज की कोर्ट में एएसआई ने सर्वे का काम पूरा करने के लिए आवेदन देकर यह समय मांगा था। सरकारी वकील राजेश मिश्रा ने बताया, जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश ने आवेदन मंजूर करते हुए कहा कि सर्वे के लिए इसके बाद और समय नहीं दिया जाएगा। इस अवधि में एएसआई सर्वे पूरा कर रिपोर्ट जमा करे। एएसआई को पहले 6 अक्तूबर तक रिपोर्ट देनी थी लेकिन अब उसे 6 नवंबर तक इसे जमा करना होगा। इसके आलावा ज्ञानवापी के अन्य सभी मामलों की सुनवाई 12 अक्तूबर को होगी। व्यास जी के तहखाने के संबंध में दाखिल ट्रांसफर आवेदन पर गुरुवार शाम तक आदेश आएगा। न्यायालय ने बीते 21 जुलाई को ज्ञानवापी में सर्वे कर चार अगस्त तक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था। 24 जुलाई को सर्वे शुरू होने के बाद पहले सुप्रीम कोर्ट और फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से तीन अगस्त तक काम रुका रहा। इसलिए एएसआई द्वारा सर्वे का काम पूरा करने के लिए चार सप्ताह का और समय देने का अनुरोध किया गया। अदालत ने पांच अगस्त को सर्वे रिपोर्ट पेश करने के लिए चार हफ्ते का और समय दिया। इसके बाद अदालत ने आठ सितंबर को एएसआई को सर्वे का काम पूरा करने के लिए चार हफ्ते का समय और दिया।
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‘वोट के बदले नोट’ मामले में फैसला रखा सुरक्षित
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वोट के बदले नोट मामले में दिए अपने फैसले पर पुनर्विचार के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। बता दें कि अदालत इस मामले पर विचार कर रही है कि सांसदों-विधायकों को सदन में दिए भाषण और वोट के बदले रिश्वत लेने के मामले में मुकदमे से छूट देना सही है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने साल 1998 के अपने एक फैसले में सांसदों-विधायकों को यह छूट दी थी। बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर मामले से आपराधिकता जुड़ी होगी तो अदालत मुकदमा चलाने की मंजूरी देने पर विचार कर रही है। संविधान पीठ ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कई वरिष्ठ वकीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा कि अदालत से संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत छूट के पहलू पर नहीं जाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि रिश्वतखोरी का अपराध तब पूरा होता है जब रिश्वत दी जाती है और दूसरे पक्ष द्वारा उसे स्वीकार किया जाता है। इससे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम से निपटा जा सकता है।
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