—हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर होगी सुनवाई
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इंट्रो
बिहार में जाति जनगणना को लेकर सियासत गरमाई है। विपक्षी दल बिहार की नीतीश सरकार का समर्थन कर रहे हैं। अब देशभर में जाति जनगणना की मांग हो रही है। भाजपा जाति जनगणना की जमकर आलोचना कर रही है। पीएम मोदी ने बिहार सरकार पर जमकर निशाना साधा है। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट पटना हाईकोर्ट के उस आदेश की सुनवाई करेगा, जिसमें बिहार में जाति जनगणना के राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराया गया है।
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह बिहार में जाति सर्वेक्षण की अनुमति प्रदान करने से संबंधित पटना उच्च न्यायालय के एक अगस्त के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर छह अक्टूबर को सुनवाई करेगा। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना एवं न्यायमूर्ति एस. वी. एन. भट्टी की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को कहा कि उसने सुनवाई के लिए याचिकाओं को सूचीबद्ध कर लिया है। हरियाणा राज्य औद्योगिक एवं बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड से संबंधित एक अलग मामले में मेहता द्वारा स्थगन का अनुरोध और इसे शुक्रवार को सूचीबद्ध करने का अनुरोध करने के बाद पीठ ने यह टिप्पणी की। बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने 2024 के संसदीय चुनाव से कुछ महीने पहले सोमवार को अपने बहुप्रतीक्षित जाति सर्वेक्षण के नतीजे घोषित किए जिसमें खुलासा हुआ कि राज्य की कुल आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है। जारी आंकड़ों के अनुसार राज्य की कुल आबादी 13.07 करोड़ से कुछ अधिक है, जिनमें सबसे बड़ा सामाजिक वर्ग समूह ईबीसी (36 प्रतिशत) है और इसके बाद ओबीसी 27.13 प्रतिशत है। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि ओबीसी वर्ग समूह में यादवों की संख्या आबादी के लिहाज से सबसे अधिक है जो कुल आबादी का 14.27 प्रतिशत है। उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, यादव समूह से आते हैं। अनुसूचित जाति यानी दलितों की संख्या राज्य में कुल आबादी का 19.65 प्रतिशत है और करीब 22 लाख (1.68 प्रतिशत) लोग अनुसूचति जनजाति से संबंधित हैं। शीर्ष अदालत ने छह सितंबर को बिहार में जाति सर्वेक्षण को हरी झंडी देने के पटना उच्च न्यायालय के एक अगस्त के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई तीन अक्टूबर तक टाल दी थी। शीर्ष अदालत ने सात अगस्त को बिहार में जाति सर्वेक्षण को हरी झंडी देने के पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 14 अगस्त तक के लिए टाल दी थी। इस संबंध में गैर सरकारी संगठन ‘एक सोच एक प्रयास’ की याचिका के अलावा कई अन्य याचिकाएं भी दायर की गई हैं, जिनमें एक याचिका नालंदा निवासी अखिलेश कुमार की भी है जिन्होंने दलील दी है कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना संवैधानिक आदेश के खिलाफ है। कुमार की याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक आदेश के तहत सिर्फ केंद्र सरकार को ही जनगणना करने का अधिकार है।
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हाईकोर्ट के 101 पन्नों का फैसला
उच्च न्यायालय ने अपने 101 पन्नों के फैसले में कहा था, हम राज्य की कार्रवाई को पूरी तरह से वैध पाते हैं, जो न्याय के साथ विकास प्रदान करने के वैध उद्देश्य से उचित अधिकार के अनुसार शुरू की गई है। उच्च न्यायालय द्वारा जाति सर्वेक्षण को ‘वैध’ ठहराए जाने के एक दिन बाद राज्य सरकार हरकत में आई और शिक्षकों के लिए जारी सभी प्रशिक्षण कार्यक्रमों को निलंबित कर दिया, ताकि उन्हें इस कार्य को जल्द पूरा करने में लगाया जा सके।
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नीतीश ने की थी घोषणा
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने 25 अगस्त को कहा था कि सर्वेक्षण पूरा हो चुका है और आंकड़े जल्द सार्वजनिक किए जाएंगे। मामले में एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील सी. एस. वैद्यनाथन ने आंकड़ा सार्वजनिक करने का विरोध किया था। उनका तर्क था कि यह लोगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा।
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यूपी में उठी मांगी, सपा, बसपा और कांग्रेस का जोर
बिहार में जातिवार गणना सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी होने के बाद समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में भी ऐसी ही गणना की मांग की है। बसपा अध्यक्ष मायावती ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार से तुरंत जाति सर्वेक्षण शुरू करने की मांग करते हुए कहा कि कुछ पार्टियां इसके खिलाफ हैं, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए न्याय का यही एकमात्र तरीका है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव, कांग्रेस और भाजपा के सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने भी उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों पर विभिन्न जातियों की आबादी का पता लगाने के लिए जातिवार गणना की वकालत की है।
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कांग्रेस में कोहराम
सिंघवी ने राहुल को दी सलाह, फिर डिलीट की पोस्ट
बिहार सरकार ने जातिगत आधारित जनगणना की रिपोर्ट को जारी कर दिया है। बिहार सरकार के इस निर्णय का विपक्षी नेताओं ने समर्थन किया है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने जितनी आबादी, उतने हक की बात कही है। हालांकि, पार्टी नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने राहुल गांधी के बयान पर असहमति जताई है। अभिषेक मनु सिंघवी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जातिगत आधारित जनगणना रिपोर्ट को लेकर एक पोस्ट किया। उन्होंने लिखा था कि अवसर की समानता कभी भी परिणामों की समानता के समान नहीं होती। जितनी आबादी उतना हक का समर्थन करने वाले लोगों को पहले इसके परिणामों को पूरी तरह से समझना होगा।हालांकि, उन्होंने कुछ देर बाद अपना पोस्ट डिलीट कर दिया। बाद में जब अभिषेक मनु सिंघवी से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैंने पार्टी से हटकर अलग रुख नहीं अपनाया है। हमने इसका समर्थन किया और इसे आगे भी जारी रखेंगे।
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बिहार में सर्वदलीय बैठक
जातिगत जनगणना पर आए आंकड़ों पर आगे क्या हो और इसपर कोई गतिरोध तो जनता के बीच नहीं जाएगा, इसपर विचार करने के लिए सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है। मंगलवार को सीएम नीतीश कुमार की अध्यक्षता हुई बैठक के दौरान भाजपा विशेष तौर पर अगड़ी जातियों और बनिया जाति के आंकड़ों पर सरकार को घेरने की तैयारी में है। जाति आधारित जनगणना में साथ रहे दलों के नेताओं के साथ सर्वदलीय बैठक हुई। इसमें तमाम आंकड़ों को दिखाते हुए सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारी उसकी व्याख्या कर रहे हैं।
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