-सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सुनवाई के लिए गठित की जाएगी 7 सदस्यीय पीठ
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पीवी नरसिम्हा राव मामले में अपने 1998 के फैसले पर पुनर्विचार करने पर सहमति जता दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए सात न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ गठित करने का फैसला किया है। पीठ यह देखेगी कि क्या कोई सांसद या विधायक सदन में भाषण देने या किसी विशेष तरीके से वोट देने के लिए रिश्वत लेने के लिए अभियोजन से छूट का दावा कर सकता है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि वह मामले पर नए सिरे से सुनवाई के लिए सात सदस्यीय पीठ गठित करेगी। दरअसल, 2019 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ने इस अहम प्रश्न को पांच सदस्यीय पीठ के पास भेजते हुए कहा था कि इसके व्यापक प्रभाव हैं। यह सार्वजनिक महत्व का सवाल है।तब तीन सदस्यीय पीठ ने तब कहा था कि वह झारखंड में जामा निर्वाचन क्षेत्र से झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक सीता सोरेन की अपील पर सनसनीखेज झामुमो रिश्वत मामले में अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी।
क्या था 1998 का फैसला?
शीर्ष कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले में 1998 में दिए अपने फैसले में कहा था कि सांसदों को सदन के भीतर कोई भी भाषण तथा वोट देने के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने से संविधान में छूट मिली हुई है।
99999999999999
अवैध प्रवासियों की नागरिकता पर 17 को सुनवाई
असम में अवैध प्रवासियों से संबंधित मामले में उच्चतम न्यायलय ने बुधवार को कहा कि वह इससे संबंधित नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता की जांच के लिए 17 अक्तूबर को सुनवाई शुरू करेगा। नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए को असम समझौते के अंतर्गत आने वाले लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में जोड़ा गया था। इस प्रावधान के तहत जो लोग 1985 में संशोधित नागरिकता अधिनियम के अनुसार 1 जनवरी 1966 को या उसके बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश सहित निर्दिष्ट क्षेत्रों से असम आए हैं और तब से असम के निवासी हैं। नागरिकता के लिए उन्हें धारा 18 के तहत खुद को पंजीकृत करना होगा।
000

