-महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए सीजेआई
(फोटो : चंद्रचूड़)
मुंबई। राजद्रोह कानून को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ जड़ से खत्म करने पर आमादा हैं। एक प्रोग्राम में उन्होंने बताया कि क्यों राजद्रोह जैसे कानून समाज के लिए घातक हैं। उनका कहना था कि जब ये कानून बनाया गया तब अंग्रेजी हुकूमत हमारे ऊपर शासन करती थी। वो अपने हिसाब से कानून की परिभाषा को बदल देते थे, क्योंकि उनको आंदोलनकारियों पर शिकंजा कसना होता था। अब ये काम हमारी सरकार करती है। सीजेआई ने ये बात महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में कही। ये विवि औरंगाबाद में स्थित है। सीजेआई खुद इस विवि के चांसलर भी हैं। उनका कहना था कि अंग्रेजों के समय बनाए गए राजद्रोह सरीखे कई कानून समाज के लिए ठीक नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट इन पर विचार कर रहा है।
ध्यान रहे कि राजद्रोह कानून को लेकर सीजेआई केंद्र तक को आइना दिखा चुके हैं। केंद्र की आपत्ति के बावजूद उन्होंने राजद्रोह से जुड़ा केस संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया है। ये केस बड़ी बेंच में भेजना इस वजह से भी जरूरी थी क्योंकि 1962 का केदारनाथ केस इस कानून की दूसरी ही परिभाषा देता है। वो मानता है कि राजद्रोह से जुड़ा कानून ठीक है। भारत में इसे लागू करने में कहीं भी किसी तरह से कोई दिक्कत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने लगा दी थी टेंपरेरी रोक
हालांकि एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह से जुड़े कानून पर रोक लगा दी थी। सरकारों को आदेश था कि इस कानून के तहत कोई नया केस दर्ज ना किया जाए। जो लोग इस मामले में जेल में बंद हैं, उनकी रिहाई पर कोई अड़ंगा ना लगाया जाए। लेकिन ये व्यवस्था टेंपरेरी ही है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के कानून के अनुसार हमेशा बड़ी बेंच का फैसला ही अमल में लाया जाता है। केदारनाथ मामले में पांच जजों की बेंच ने फैसला दिया था। लिहाजा जब तक सुप्रीम कोर्ट की उससे बड़ी या उतनी ही बड़ी बेंच उसके उलट कोई फैसला देती है तभी 1962 का कानून निष्प्रभावी हो सकता है।
सरकार करती रही गुहार, नहीं माने सीजेआई
सीजेआई इस मामले को पहले ही संवैधानिक बेंच में भेजने पर आमादा थे। लेकिन अटार्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने उनके दरख्वास्त की कि अगस्त तक इस मामले की सुनवाई टाल दी जाए, क्योंकि सरकार इस कानून पर विचार कर रही है। सीजेआई ने उनका अनुरोध तो मान लिया। लेकिन जैसे ही अगस्त आया सीजेआई ने राजद्रोह से जुड़े केस को लिस्ट करने का आदेश दे दिया। सरकार उनसे केस की सुनवाई ना करने की गुहार करती रही अलबत्ता सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ही एक ना सुनी। उनका कहना था कि आप जो चाहें करिए, हम इसे बड़ी बेंच में भेज चुके हैं।

