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–आदित्य एल -1 मिशन : 2 सितंबर, पूर्वाह्न 11 बजकर 50 मिनट पर प्रक्षेपण
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आदित्य एल-1
150 मिलियन लाख किमी पृथ्वी से सूर्य की दूरी
120 दिन में पूरा होगा भारत का सूर्य मिशन
7 पेलोड के जरिए जानकारी जुटाएगा अंतरिक्ष यान
22 मिशन भेज चुके हैं दुनियाभर के कई देश
1994 में नासा ने पहली बार भेजा था सूर्य मिशन
इंट्रो
चंद्रयान-3 के बाद भारत सूर्य पर अंतरिक्ष यान भेज रहा है। यह भारत का पहला और दुनिया का 23 सूर्य मिशन होगा। इसरो ने सोमवार को बताया कि 2 सितंबर को सुबह 11:50 बजे अपना सोलर मिशन लांच करेगा। इसका नाम आदित्य एल-1 रखा गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस मिशन से विभिन्न प्रकार की डाटा जुटाई जाएगी, ताकि नुकसानदेह सौर पवन और तूफान की जानकारी मिलते ही अलर्ट जारी किया जा सके।
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सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य-एल1 का प्रक्षेपण दो सितंबर को होगा: इसरो
बेंगलुरु। चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद इसरो ने सोमवार को घोषणा की कि सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारत के पहले सौर मिशन ‘आदित्य-एल1′ का दो सितंबर को पूर्वाह्न 11 बजकर 50 मिनट पर श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट से प्रक्षेपण किया जाएगा। आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान को सौर कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी परत) के दूरस्थ अवलोकन और एल1 (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंज बिंदु) पर सौर वायु के यथास्थान अवलोकन के लिए तैयार किया गया है। एल1 पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ‘लैग्रेंज बिंदु’ अंतरिक्ष में स्थित वे स्थान हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल आकर्षण और प्रतिकर्षण के उन्नत क्षेत्र उत्पन्न करते हैं। नासा के अनुसार, इनका उपयोग अंतरिक्ष यान द्वारा स्थिति में बने रहने के लिए आवश्यक ईंधन की खपत को कम करने के लिए किया जा सकता है। लैग्रेंज बिंदु का नाम इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफी-लुई लैग्रेंज के सम्मान में रखा गया है। अंतरिक्ष एजेंसी ने सोशल मीडिया पर किये गए एक पोस्ट में बताया कि सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष-आधारित भारतीय वेधशाला को पीएसएलवी-सी57 रॉकेट के जरिए प्रक्षेपित किया जाएगा। आदित्य-एल1 मिशन का लक्ष्य एल1 के पास की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है। आदित्य-एल1 यूवी पेलोड का उपयोग करके कोरोना और सौर क्रोमोस्फीयर पर और एक्स-रे पेलोड का उपयोग करके लपटों का अवलोकन कर सकता है। कण संसूचक और मैग्नेटोमीटर पेलोड आवेशित कणों और एल1 के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा तक पहुंचने वाले चुंबकीय क्षेत्र के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
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इनका होगा अध्ययन
यह अंतरिक्ष यान सात पेलोड लेकर जाएगा, जो अलग-अलग वेव बैंड में फोटोस्फेयर (प्रकाशमंडल), क्रोमोस्फेयर (सूर्य की दिखाई देने वाली सतह से ठीक ऊपरी सतह) और सूर्य की सबसे बाहरी परत (कोरोना) का अवलोकन करने में मदद करेंगे। इसरो के अनुसार, वीईएलसी का लक्ष्य यह पता लगाने के लिए डेटा एकत्रित करना है कि कोरोना का तापमान लगभग दस लाख डिग्री तक कैसे पहुंच सकता है, जबकि सूर्य की सतह का तापमान 6000 डिग्री सेंटीग्रेड से थोड़ा अधिक रहता है।
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पूरी तरह स्वदेश
इसरो के एक अधिकारी ने कहा कि आदित्य-एल1 पूरी तरह से स्वदेशी प्रयास है, जिसमें राष्ट्रीय संस्थानों की भागीदारी है। बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ पेलोड के विकास के लिए अग्रणी संस्थान है। इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे ने सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (एसयूआईटी) पेलोड इस मिशन के लिए विकसित किया है।
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एल-1 बिंदु पर स्थापित होगा उपग्रह
यहां स्थित यूआर राव सैटेलाइट सेंटर द्वारा विकसित उपग्रह, इस महीने की शुरुआत में आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के इसरो के स्पेसपोर्ट पहुंचा। इसे सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के एल1 बिंदु के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है। इसरो ने कहा कि एल-1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में स्थापित उपग्रह से सूर्य पर लगातार नजर रखने में बड़ा फायदा होगा। कोई भी ग्रह इसमें बाधा नहीं डालेगा। इसने कहा, इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव को देखने का अधिक लाभ मिलेगा। विशेष सुविधाजनक बिंदु एल1 का उपयोग करते हुए, चार पेलोड सीधे सूर्य का अवलोकन करेंगे और शेष तीन पेलोड द्वारा एल1 बिंदु पर कण और क्षेत्रों का यथास्थान अध्ययन किये जाने की उम्मीद है।
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इधर, चंद्रयान-3 में आई बाधा
गड्ढा देखकर ‘प्रज्ञान’ ने बदला रास्ता
इसरो ने सोमवार को कहा कि चंद्रयान-3 मिशन के तहत भेजा गया ‘रोवर’ प्रज्ञान चंद्रमा की सतह पर एक गड्ढे के काफी नजदीक पहुंच गया, जिसके बाद उसे पीछे जाने का निर्देश दिया गया। इसरो ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा कि यह अब सुरक्षित रूप से एक नये मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि 27 अगस्त को रोवर चार मीटर व्यास के एक गड्ढे के नजदीक पहुंच गया, जो इसकी अवस्थिति से तीन मीटर आगे था। इसरो ने कहा, रोवर को पीछे जाने का निर्देश दिया गया। अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, यह अब एक नये मार्ग पर आगे बढ़ रहा है।
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