इसरो का कोई वैज्ञानिक करोड़पति नहीं, सादा जीवन जीते हैं साइंटिस्ट

  • विकसित देशों के वैज्ञानिकों के पांचवें हिस्से के बराबर मिलता है वेतन

-एजेंसी के पूर्व प्रमुख माधवन ने दी जानकारी

-भारतीय मिशन की लागत अन्य देशों से 50 -60 प्रतिशत कम

इंट्रो

लोगों को लगता होगा कि इसरो जैसी स्पेस एजेंसी में काम करने वाले वैज्ञानिकों की लाइफ स्टाइल बेहद लक्जरी होगी। लेकिन ऐसा नहीं है। आपको जानकर हैरानी होगी कि कि इसरो के वैज्ञानिकों में कोई भी करोड़पति नहीं है, वे हमेशा बहुत सामान्य और संयमित जिंदगी जीते हैं।

नई दिल्ली। भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। बुधवार शाम को चंद्रयान-3 का लैंडर मॉड्यूल (एलएम) चंद्रमा की सतह पर उतरा है। इस उपलब्धि से दुनिया भर में भारत व इसरो की जमकर तारीफ हो रही है। इसरो के वैज्ञानिकों को भी खूब शाबासी मिल रही है। आपके लिए यह जानना दिलचस्प होगा कि हमारे इन वैज्ञानिकों में आम धारणा के विपरीत कोई भी करोड़पति नहीं है और इसरो के वैज्ञानिकों ने विकसित देशों के वैज्ञानिकों के पांचवें हिस्से के बराबर वेतन पाकर यह ऐतिहासिक सफलता हासिल की है। यह जानकारी इसरो के पूर्व प्रमुख जी. माधवन नायर ने दी है।

पैसे की नहीं सोचते वैज्ञानिक

मीडिया से चर्चा में माधवन ने बताया कि इसरो के वैज्ञानिकों में कोई करोड़पति नहीं है और वे हमेशा बहुत सामान्य और संयमित जिंदगी जीते हैं। इसरो में वैज्ञानिकों के लिए कम वेतन एक कारण है कि वे अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए कम लागत वाले समाधान ढूंढ सके। उन्होंने कहा, ‘इसरो में वैज्ञानिकों, तकनीशियनों और अन्य कर्मचारियों को दिया जाने वाला वेतन वैश्विक स्तर पर दिए जाने वाले वेतन का बमुश्किल पांचवां हिस्सा है।’ बहुत कम खर्च पर अंतरिक्ष की खोज के इसरो के इतिहास के बारे में बात करते हुए नायर ने कहा कि इससे एक फायदा मिलता है। वे वास्तव में पैसे के बारे में चिंतित नहीं हैं, बल्कि अपने मिशन के प्रति भावुक और समर्पित हैं। इसी तरह हमने अधिक ऊंचाइयां हासिल कीं।

अतीत में जो सीखा उसका किया उपयोग

नायर ने कहा कि इसरो के वैज्ञानिक सावधानीपूर्वक योजना और दीर्घकालिक दृष्टिकोण के माध्यम से इसे हासिल कर सकते हैं। हमने अतीत में जो सीखा उसे अगले मिशन के लिए उपयोग किया। वास्तव में हमने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान के लिए लगभग 30 साल पहले जो इंजन विकसित किया था, वही इंजन जीएसएलवी के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

घरेलू तकनीक का उपयोग

माधवन ने कहा कि भारत अपने अंतरिक्ष अभियानों के लिए घरेलू तकनीक का उपयोग करता है और इससे उन्हें लागत को काफी कम करने में मदद मिली है। उन्होंने कहा कि भारत के अंतरिक्ष मिशन की लागत अन्य देशों के अंतरिक्ष अभियानों की तुलना में 50 से 60 प्रतिशत कम है। नायर ने कहा कि चंद्रयान-3 की सफलता भारत के ग्रहों की खोज शुरू करने के लिए पहला कदम है और यह एक अच्छी शुरुआत की है।

000

प्रातिक्रिया दे