—-अवमानना मामले पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
— केंद्र ने दिया सुझाव-असाधारण मामले में भी अफसरों को बुलाया जाए
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इंट्रो
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह देश में अलग-अलग जगहों पर तैनात सरकारी अधिकारियों को समन भेजने के लिए जल्द ही गाइडलाइंस निर्धारित करेगी। पीठ ने कहा कि जिन केसों में फैसला नहीं हुआ है, उनमें अधिकारियों के एफिडेविट ही काफी होंगे, लेकिन कोर्ट का आदेश न मानने पर जो अवमानना के मामले होंगे, उनमें अफसरों की मौजूदगी जरूरी होगी। बेंच ने कहा कि हम सरकारी अफसरों को समन के लिए कुछ दिशा-निर्देश तय करेंगे।
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह सरकार और इसके अधिकारियों की संलिप्तता वाले मामलों में इन्हें तलब करने के मुद्दे से निपटने के लिए देशभर की अदालतों के वास्ते व्यापक दिशानिर्देश जारी करेगा। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि अंतिम निर्णयों और लंबित मामलों में पारित अंतरिम आदेशों का अनुपालन न करने से उत्पन्न होने वाली अवमानना कार्यवाही से निपटने के लिए प्रक्रियाओं का अलग-अलग ‘सेट’ होना चाहिए। पीठ ने कहा कि लंबित मामलों में अधिकारियों के हलफनामे उद्देश्य की पूर्ति कर सकते हैं और अदालती आदेशों के गैर-अनुपालन से उत्पन्न होने वाले अवमानना मामलों में संबद्ध सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति आवश्यक हो सकती है। इसने कहा, हम सरकारी अधिकारियों को तलब करने के लिए कुछ दिशानिर्देश तय करेंगे। लंबित और निर्णय हो चुके विषयों का दो हिस्सों में विभाजन होना चाहिए। लंबित (मामलों के) लिए अधिकारियों को तलब करने की जरूरत नहीं है, लेकिन जब निर्णयन पूरा हो जाए, तब अवमानना (कार्यवाही) शुरू की जाए। पीठ अदालत की अवमानना के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दो सरकारी अधिकारियों को तलब किये जाने से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से न्यायालय में पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने तत्काल सुनवाई के लिए मामले का उल्लेख किया था। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने एक ‘अभूतपूर्व आदेश’ पारित किया है, जिसके जरिये वित्त सचिव और विशेष सचिव (वित्त) को उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की सुविधाओं से जुड़े एक मामले में अवमानना कार्यवाही को लेकर हिरासत में लिया गया है। नटराज ने कहा कि उच्च न्यायालय ने विषय में राज्य के मुख्य सचिव को जमानती वारंट जारी किया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चार अप्रैल को कहा था कि अदालत में उपस्थित अधिकारियों शाहिद मंजर अब्बास रिजवी, सचिव (वित्त), उप्र और सरयू प्रसाद मिश्रा, विशेष सचिव (वित्त) को हिरासत में लिया जाता है तथा आरोप तय करने के लिए उन्हें अदालत में पेश किया जाए।
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क्या है मामला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्देश का पालन ना करने पर उत्तर प्रदेश के दो आईएएस अधिकारी शाहिद मंजर अब्बास रिजवी और सरयू प्रसाद मिश्रा को हिरासत में लेने का निर्देश दिया था। 20 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए दोनों अधिकारियों को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। इसके बाद केंद्र सरकार ने सरकारी अफसरों की पेशी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एसओपी दाखिल कर विचार के लिए कुछ सुझाव दिए थे। कोर्ट ने एसओपी को लेकर फैसला सुरक्षित रख लिया है।
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तय होंगे ड्रेस कोड
कोर्ट में सरकारी अफसरों को तलब करने के लिए अब सुप्रीम कोर्ट एक व्यापक गाइडलाइन तैयार करने का फैसला किया है। अफसरों के अदालत में पेश होने के लिए ड्रेस कोड पर भी दिशा निर्देश जारी होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों में अफसरों के पेश होने के बारे में केंद्र द्वारा तैयार किए गए मानक संचालन प्रक्रिया के ड्रॉफ्ट पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
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सरकार ने रखा ऐसा प्रस्ताव
केंद्र सरकार ने अफसरों की कोर्ट में पेशी के बारे में सुप्रीम कोर्ट में एक एसओपी पेश करने का प्रस्ताव रखा था, जिसमें जजों से ‘असाधारण मामलों’ को छोड़कर सरकारी अफसरों को निजी रूप से पेश होने के लिए बुलाने में संयम बरतने की बात शामिल है। इसमें कहा गया है कि अफसरों को उनकी मौजूदगी की जरूरत से काफी समय पहले नोटिस दिया जाना चाहिए और उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंस से उपस्थित होने का विकल्प मिलना चाहिए। केंद्र ने कहा कि उसने न्यायपालिका और सरकार के बीच अधिक ‘अनुकूल’ माहौल बनाने के लिए यह मसौदा तैयार किया है।
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रेप पीड़िता को गर्भपात इजाजत
कोर्ट ने कहा- विवाहेतर गर्भधारण खतरनाक
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बलात्कार पीड़िता को गर्भपात की अनुमति देते हुए कहा कि विवाह से इतर गर्भधारण खतरनाक हो सकता है। पीड़िता 27 हफ्ते की गर्भवती है। पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जवल भूइयां ने कहा कि गुजरात उच्च न्यायालय का याचिकाकर्ता की गर्भपात की अनुमति का अनुरोध करने वाली याचिका को खारिज करना सही नहीं था। शीर्ष अदालत ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह संस्था के भीतर गर्भावस्था न सिर्फ दंपति बल्कि उसके परिवार और दोस्तों के लिए खुशी और जश्न का मौका होता है। न्यायालय ने कहा, इसके विपरीत विवाह से इतर खासकर यौन उत्पीड़न या यौन हमले के मामलों में गर्भावस्था खतरनाक हो सकती है। ऐसी गर्भावस्था न केवल गर्भवती महिलाओं के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है बल्कि उनकी चिंता एवं मानसिक पीड़ा का कारण भी होती है। किसी महिला पर यौन हमला अपने आप में तनावपूर्ण होता है और यौन उत्पीड़न के कारण गर्भावस्था के विपरीत परिणाम हो सकते हैं क्योंकि ऐसी गर्भावस्था स्वैच्छिक या अपनी खुशी के अनुसार नहीं होती है।
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