‘भड़काऊ भाषण कोई भी पक्ष दें, हम उसे उतनी ही गंभीरता से लेंगे’

-सर्वोच्च न्यायालय ने कहा

नई दिल्ली। हरियाणा के नूंह में हिंसा के बाद मुस्लिम समुदाय के आर्थिक बहिष्कार के आह्वान के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार (18 अगस्त) को सुनवाई 25 अगस्त तक के लिए टल गई। सुनवाई के दौरान एक वकील ने केरल में मुस्लिम लीग की रैली में हिंदुओं के खिलाफ नारे की जानकारी दी। कोर्ट ने इस पर कहा कि भड़काऊ भाषण कोई भी पक्ष दें, हम उसे उतनी ही गंभीरता से लेंगे। मामले की सुनवाई जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने की। खन्ना ने कहा कि कोई भी हेट स्पीच देने में शामिल होगा तो हम उसके खिलाफ कानून के तहत कार्रवाई करेंगे। नूंह में 31 जुलाई को विश्व हिंदू परिषद की यात्रा पर भीड़ के पथराव किए जाने के बाद हिंसा भड़क गई थी। इसकी आग गुरुग्राम सहित आसपास के एरिया में फैल गई थी. इसमें दो होम गार्ड और एक मौलवी सहित छह लोगों की जान गई थी।

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डॉक्टर नहीं कह सकते कि रेप हुआ या नहीं, यह कोर्ट का काम

श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक साल की पोती के बलात्कार के मामले में एक व्यक्ति सजा को बरकरार रखा। साथ ही देश में महिलाओं की स्थिति पर भी चिंता जाहिर कर दी। कोर्ट का कहना है कि साल 2012 में हुए ‘निर्भया कांड’ के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ है। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय धर और जस्टिस राजेश सेखरी की बेंच कर रही थी। इस मामले में कोर्ट ने कहा, ‘मेरे शरीर में यह जानकर सिहरन दौड़ जाती है कि एक दादा ने अपनी वासना शांत करने के लिए एक साल की पोती के साथ दुष्कर्म किया।’ मामला साल 2011 का है। दरअसल, बोध राज नाम के शख्स की तरफ से अपील दायर की गई थी, जिसमें 2013 में उसे ट्रायल कोर्ट की तरफ से सजा दी गई थी। राज पर आरोप हैं कि वह उस कमरे से भागा था, जहां एक वर्षीय बच्ची खून में सनी हुई रोते हुए पाई गई थी। मेडिकल जांच के दौरान डॉक्टर ने कहा था कि बच्ची का हाइमन फट गया है और उसके गुप्तांगों पर चोटें हैं। डॉक्टर का कहना था कि यह यौन हिंसा का मामला हो सकता है, लेकिन अन्य आशंकाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता। सुनवाई को दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़ित के गुप्तांगों पर चोट के निशान और वीर्य के धब्बे नहीं होने पर भी बलात्कार का अपराध स्थापित किया जा सकता है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि बलात्कार पीड़ित का इलाज कर रहे डॉक्टर सिर्फ यह बता सकते हैं कि कोई ताजा यौन गतिविधि का सबूत है या नहीं है। वे यह नहीं कह सकते कि बलात्कार हुआ है या नहीं, यह काम कोर्ट का है।

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