–शीर्ष अदालत की टिप्पणी, कोई भी नफरत भरे भाषण को स्वीकार नहीं कर सकता
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने यह देखते हुए कि समुदायों के बीच सद्भाव और सौहार्द होना चाहिए, शुक्रवार को केंद्र से नफरत भरे भाषण के मामलों को देखने के लिए एक समिति गठित करने को कहा। शीर्ष अदालत हरियाणा सहित कई राज्यों में रैलियों के दौरान एक विशेष समुदाय के सदस्यों की हत्या और उनके सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार का आह्वान करने वाले कथित घोर घृणास्पद भाषणों पर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हरियाणा में हाल ही में सांप्रदायिक झड़पों में छह लोगों की जान चली गई थी। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज को सरकार से निर्देश लेने और 18 अगस्त तक समिति के बारे में सूचित करने को कहा। पीठ ने कहा, समुदायों के बीच सद्भाव और सौहार्द होना चाहिए। सभी समुदाय जिम्मेदार हैं। नफरत फैलाने वाले भाषणों की समस्या अच्छी नहीं है और कोई भी इसे स्वीकार नहीं कर सकता है।
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता को वीडियो सहित सभी सामग्री एकत्र करने और उसके 21 अक्टूबर, 2022 के फैसले के अनुसरण में नियुक्त नोडल अधिकारियों को सौंपने का भी निर्देश दिया। पत्रकार शाहीन अब्दुल्ला द्वारा दायर आवेदन में शीर्ष अदालत के दो अगस्त के आदेश का हवाला दिया गया। आदेश में कहा गया है, हम उम्मीद और विश्वास करते हैं कि राज्य सरकारें और पुलिस यह सुनिश्चित करेगी कि पहचान के बावजूद किसी भी समुदाय के खिलाफ कोई घृणास्पद भाषण न दिया जाए और कोई शारीरिक हिंसा या संपत्तियों को नुकसान न हो। यह देखते हुए कि नफरत फैलाने वाले भाषण माहौल को खराब करते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा था कि जहां भी आवश्यक हो पर्याप्त पुलिस बल या अर्धसैनिक बल तैनात किया जाए और पुलिस सहित प्राधिकारी सभी संवेदनशील क्षेत्रों में स्थापित सीसीटीवी कैमरों का उपयोग करेंगे या वीडियो रिकार्डिंग करेंगे या कराएंगे।
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‘इंडिया’ पर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक, सीधी सुनवाई के लिए चुनाव आयोग जाएं
-सुनवाई से किया इंकार
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें 26 राजनीतिक दलों के गठबंधन को ‘इंडिया’ शब्द का उपयोग करने से रोकने की मांग की गई थी। सुनवाई के दौरान जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली बेंच ने टिप्पणी की कि याचिका प्रचार पाने के लिए दायर की गई है।
जस्टिस कौल ने कहा, “आप कौन हैं? रुचि किसमें है? यदि चुनाव मानदंडों का उल्लंघन होता है, तो चुनाव आयोग के पास जाएं। आपको पब्लिसिटी चाहिए? इस तरह की कार्रवाई चुनाव आयोग में ही हो सकती है!” हालांकि, याचिकाकर्ता ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि अगर उन्हें प्रचार चाहिए होता तो उन्होंने मीडिया हाउस को इंटरव्यू दिया होता, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से परहेज किया है। याचिकाकर्ता की इस दलील का जवाब देते हुए कहा कि इस तरह के नाम का इस्तेमाल नैतिकता के खिलाफ है, न्यायमूर्ति कौल ने कहा, “हम राजनीति में नैतिकता का निर्धारण नहीं करने जा रहे हैं।” न्यायमूर्ति कौल ने आगे टिप्पणी की, “यह दुखद है कि लोग इस पर समय बर्बाद करते हैं।” अदालत ने कहा कि वह याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं है। इसके अलावा, इसमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता क्योंकि याचिकाकर्ता ने बताया है कि भारत के चुनाव आयोग के समक्ष आवेदन दायर किए गए हैं। याचिकाकर्ता की तरफ से केस वापस लेने की मांग के बाद शीर्ष अदालत ने याचिका को वापस लिया हुआ मानकर खारिज कर दिया। याचिका में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को एक विनियमन पारित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी, ताकि सभी मीडिया एजेंसियां विपक्षी गठबंधन के नाम के रूप में “इंडिया” नाम का उपयोग करने से बचें।
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