पोक्सो में निर्धारित सजा से कम नहीं सुना सकती अदालत

  • सुप्रीम कोर्ट का फैसला

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतों के पास यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) के तहत दंडनीय विभिन्न प्रकार के बाल दुर्व्यवहारों के लिए न्यूनतम सजा से कम सजा देने की शक्ति नहीं है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें 12 साल से कम उम्र के बच्चे पर गंभीर भेदक यौन हमले के अपराध में दोषी ठहराए जाने पर सोनू कुशवाह को हुई सजा को 10 से घटाकर सात साल कर दिया था। पीठ ने आदेश में कहा, पॉक्सो अधिनियम को विभिन्न प्रकार के बाल दुर्व्यवहार के अपराधों के लिए अधिक कठोर दंड प्रदान करने के लिए अधिनियमित किया गया था। यही कारण है कि बच्चों पर यौन हमलों की विभिन्न श्रेणियों के लिए पॉक्सो अधिनियम की धारा 4, 6, 8 और 10 में न्यूनतम दंड निर्धारित किए गए हैं। पीठ ने कहा, इसलिए धारा 6 (गंभीर भेदक यौन हमला) अदालत के लिए कोई विवेकाधिकार नहीं छोड़ती है और ट्रायल कोर्ट के पास न्यूनतम सजा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। जब किसी दंडात्मक प्रावधान में यह उल्लेख किया जाता कि ‘इतनी सजा से कम नहीं होगी’ तो अदालतें इस धारा का उल्लंघन नहीं कर सकती हैं और कम सजा नहीं दे सकती हैं।

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