डिप्लोमाधारकों को इलाज करने और दवा लिखने की अनुमति देने वाला कानून रद्द

-सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

इस कानून के तहत सामान्य बीमारियों का इलाज करने, दवाएं लिखने की थी अनुमति

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने असम ग्रामीण स्वास्थ्य नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 2004 को रद्द कर दिया। इसमें चिकित्सा और ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल में डिप्लोमाधारकों को कुछ सामान्य बीमारियों का इलाज करने, मामूली प्रक्रिया करने और दवाएं लिखने की अनुमति दी गई थी। शीर्ष अदालत ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के 2014 के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें इस अधिनियम को असांविधानिक और अधिकारातीत घोषित कर दिया था। जस्टिस बीआर गवई व जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि असम सरकार का यह अधिनियम चिकित्सा शिक्षा के ऐसे पहलुओं को विनियमित करना चाहता है जो संसद के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। चूंकि राज्य विधानमंडल के पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है इसलिए इस अधिनियम को खारिज किया जाता है। असम सरकार ने लगभग दो दशक पहले तीन साल का डिप्लोमा कोर्स शुरू किया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना था, ताकि ऐसे डॉक्टरों का एक कैडर तैयार किया जा सके जो आधुनिक चिकित्सा पद्धति का अभ्यास करे और सुदूर गांवों में स्वास्थ्य सेवाएं दे सकें। पीठ ने कहा, असम अधिनियम को सूची 3 की प्रविष्टि 25 के दम पर लागू किया गया। इसमें न केवल चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में एक नई ताकत पेश करने की मांग की गई बल्कि सफल उम्मीदवारों के पेशे को विनियमित करने की भी व्यवस्था दी गई। अधिनियम के तहत गठित नियामक प्राधिकरण को पाठ्यक्रम के न्यूनतम मानकों, आधुनिक चिकित्सा के पाठ्यक्रम की अवधि, पाठ्यक्रम, परीक्षा और ऐसे अन्य विवरणों को निर्धारित करने की शक्ति प्रदान की गई थी। अधिनियम ने राज्य सरकार को एक चिकित्सा संस्थान की स्थापना के लिए अनुमति देने के लिए भी अधिकृत किया था। पीठ गुवाहाटी हाईकोर्ट के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें इस आधार पर अधिनियम को रद्द कर दिया गया था कि यह भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 के विरुद्ध है।

संसद के अधिकार क्षेत्र पर किया अतिक्रमण

पीठ ने कहा, इन प्रावधानों में संघ सूची की प्रविष्टि 66 के तहत उच्च शिक्षा या अनुसंधान और वैज्ञानिक व तकनीकी संस्थानों के लिए मानकों के समन्वय और मानकों के निर्धारण के विधायी क्षेत्र को शामिल किया गया। यह स्पष्ट रूप से संसद के अधिकारक्षेत्र का अतिक्रमण है। पीठ ने इस पर घोर आपत्ति जताई।

संसद को समान मानक निर्धारित करने की आवश्कता

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, यह आवश्यक है कि संसद समान मानक निर्धारित करे। देशभर के संस्थानों और मेडिकल कॉलेजों को इनका पालन करना चाहिए। इसके लिए अनुसंधान, उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा में समान मानकों को बनाए रखने के उद्देश्य से प्रविष्टि 66 तैयार की गई है। इसलिए राज्य विधानमंडलों में चिकित्सा शिक्षा के लिए न्यूनतम मानकों के निर्धारण, किसी संस्थान को मान्यता देने या रद्द करने के अधिकार आदि के क्षेत्रों में विधायी क्षमता का अभाव है।

लखीमपुर केस: आशीष मिश्रा को मिली जमानत

लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी आशीष मिश्रा को अंतरिम जमानत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मिश्रा को सशर्त 8 हफ्तों के लिए जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। बता दें कि तीन अक्टूबर 2021 में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के तिकोनिया में किसान डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के दौरे का विरोध करते हुए प्रदर्शन कर रहे थे। आरोप है कि आशीष मिश्रा की कार ने विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को रौंद दिया, जिसमें चार किसानों की मौत हो गई थी। कोर्ट ने आशीष मिश्रा को निर्देश दिया है कि वह अपनी लोकेशन के बारे में संबंधित न्यायालय को जानकारी दे। साथ ही सर्वोच्च अदालत ने कहा कि आशीष मिश्रा या उसके परिवार ने अगर मामले से जुड़े गवाहों को प्रभावित करने या फिर ट्रायल में देरी करने की कोशिश की तो आशीष मिश्रा की जमानत रद्द कर दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने आशीष मिश्रा को जमानत देते हुए यह शर्त भी लगाई है कि वह दिल्ली एनसीआर और उत्तर प्रदेश में नहीं रहेगा। जमानत मिलने के बाद एक हफ्ते बाद आशीष मिश्रा को उत्तर प्रदेश छोड़ना होगा। जस्टिस सूर्याकांत और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि आशीष जमानत अवधि के दौरान ना उत्तर प्रदेश में रहेगा और ना ही दिल्ली एनसीआर में। सुप्रीम कोर्ट ने आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर बीती 19 जनवरी को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान आशीष मिश्रा के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि उनका मुवक्किल बीते एक साल से ज्यादा समय से जेल में बंद है और जिस तरह से ट्रायल चल रहा है, उस तरह इसे पूरा होने में 7-8 साल का समय लगेगा। मुकुल रोहतगी ने ये भी कहा कि मामले में जिस जगजीत सिंह ने शिकायत की है, वह घटना का चश्मदीद गवाह नहीं है और उसकी शिकायत सिर्फ अफवाह पर आधारित है। रोहतगी ने ये भी कहा था कि उनका मुवक्किल अपराधी नहीं है और ना ही उसका आपराधिक इतिहास है।

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