बोलने की आजादी पर नहीं लगा सकते रोक, मंत्री के बयान पर सरकार जिम्मेदार नहीं

चार जज बोले-मंत्री के बयान को सरकार से नहीं जोड़ सकते, जस्टिस नागरत्ना बोलीं- नफरती भाषण के लिए सरकार जिम्मेदार

—-दो दिनों में सुप्रीम कोर्ट के दो बड़े फैसले, पांच जजों की पीठ में एक की अलग राय


नई दिल्ली। दो दिन में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दो अहम फैसले सुनाए हैं। सोमवार को कोर्ट ने नोटबंदी को जायज ठहराया था तो दूसरे दिन अभिव्यक्ति की आजादी मामले में कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। पांच जजों की पीठ में चार जजों ने कहा कि सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करने के बावजूद, किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। हालांकि, संविधान पीठ में शामिल जस्टिस बीवी नागरत्ना ने दोनों बार बेंच से अलग रुख रखा है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्ति के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई अतिरिक्त पाबंदी नहीं लगायी जा सकती। न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत उल्लिखित पाबंदियों के अलावा किसी सार्वजनिक पदाधिकारी के भाषण एवं अभिव्यक्ति के अधिकार पर कोई अतिरिक्त पाबंदी लागू नहीं की जा सकती। पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करने के बावजूद किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के साथ नहीं जोड़ा जा सकता, फिर भले ही वह बयान राज्य के किसी मामले को लेकर हो या सरकार की रक्षा करने वाला हो। कोर्ट ने कहा, अनुच्छेद 19(1) के तहत मौलिक अधिकार का प्रयोग राज्य के अलावा अन्य व्यवस्था के खिलाफ भी किया जा सकता है। पीठ में शामिल न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने इस बात पर सहमति जतायी कि अनुच्छेद 19 के अलावा स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर वृहद पाबंदी नहीं लगायी जा सकती। हालांकि, उन्होंने कहा कि यदि कोई मंत्री अपनी आधिकारिक क्षमता में अपमानजनक बयान देता है तो ऐसे बयान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार से जोड़ा जा सकता है।

बेंच ने क्या दिया फैसला

पांच जजों वाली संविधान पीठ में जस्टिस एस ए नज़ीर, बी आर गवई, ए एस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यन ने कहा है कि एक मंत्री के बयान को सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। उन्होंने कहा है कि जनप्रतिनिधियों की अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी पर अनुच्छेद 19 (2) के तहत उल्लेखित प्रतिबंधों को छोड़कर कोई अतिरिक्त पाबंदी की आवश्यकता नहीं है।

नफरत भरे बोल पर सरकार जिम्मेदार

जस्टिस बी वी नागरत्ना ने अभिव्यक्ति की आजादी मामले में कहा है कि नफरत फैलाने वाला भाषण हमारे संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करता है। अगर कोई मंत्री अपने बयान में अपमानजनक टिप्पणी करता है तो इस तरह के बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हाल के दिनों में नफरती और गैरजिम्मेदाराना भाषण चिंता का कारण हैं क्योंकि यह समाज के लिए हानिकारक हैं। अभद्र भाषा संविधान के मूलभूत मूल्यों पर हमला करती है। उन्होंने कहा, भारत जैसे बहुलता और बहु-संस्कृतिवाद पर आधारित देश में नागरिकों की एक दूसरे के प्रति पारस्परिक जिम्मेदारियां हैं।

अपने मंत्रियों के भाषण को नियंत्रित करें पार्टियां

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि यह पार्टी पर है कि वह अपने मंत्रियों के भाषणों को नियंत्रित करे। ऐसा एक आचार संहिता बनाकर किया जा सकता है। कोई भी नागरिक जो इस तरह के भाषणों या सार्वजनिक अधिकारी द्वारा अभद्र भाषा आदि से आहत महसूस करता है, अदालत से संपर्क कर सकता है। उन्होंने कहा, यह संसद के विवेक पर निर्भर करता है कि वह नफरती भाषण और अपमानजनक टिप्पणियों को रोकने के लिए कानून बनाए।

प्रातिक्रिया दे