नोटबंदी सही… चार जज बोले-केंद्र के फैसले में कोई त्रुटि नहीं, एक जज बोलीं- यह गैरकानूनी

—सुप्रीम फैसला-नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाएं खारिज

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2016 में 1000 और 500 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने के केंद्र सरकार के फैसले को सोमवार को 4:1 के बहुमत के साथ सही ठहराया। न्यायालय ने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया महज इसलिए त्रुटिपूर्ण नहीं थी कि इसकी शुरूआत सरकार की ओर से की गई थी। हालांकि, न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने सरकार के इस कदम पर कई सवाल उठाए। उन्होंने नोटबंदी को गैरकानूनी करार दिया।

अधिक मूल्य के नोटों को चलन से बाहर करने के निर्णय के किसी कानूनी या संवैधानिक रूप से त्रुटिपूर्ण नहीं होने का जिक्र करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार के बीच छह महीनों की अवधि तक विचार-विमर्श चला था। न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि कार्यपालिका की आर्थिक नीति से जुड़ा निर्णय होने के कारण इसे पलटा नहीं जा सकता। पीठ ने कहा कि आर्थिक मामलों में बहुत संयम बरतने की जरूरत होती है और अदालत कार्यपालिका (सरकार) के फैसले की न्यायिक समीक्षा कर उसके विवेक की जगह नहीं ले सकती। पीठ में न्यायमूर्ति नज़ीर के अलावा न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना, न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यन भी शामिल हैं। हालांकि, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अधिनियम की धारा 26(2) के तहत केंद्र की शक्तियों के संबंध में बहुमत के फैसले से असहमति जताई। उन्होंने कहा कि 500 और 1000 रुपये की ‘सीरीज’ (क्रम संख्या) के नोट कानून बनाकर ही रद्द किए जा सकते थे, ना कि एक अधिसूचना के जरिए। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, ‘‘नोटबंदी कानून लाने के लिए संसद में चर्चा होनी चाहिए थी। इसे गजट अधिसूचना के जरिए नहीं किया जाना चाहिए था। देश के लिए इतने महत्वपूर्ण विषय से संसद को अलग नहीं रखा जा सकता। वहीं, पीठ ने कहा कि आठ नवंबर 2016 को जारी अधिसूचना को अतार्किक नहीं कहा जा सकता और निर्णय लेने की प्रक्रिया के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि निर्णय का इसके उद्देश्यों से तार्किक संबंध था, जैसा कि काला धन, आतंकवाद को वित्तपोषण आदि का उन्मूलन करना आदि, तथा यह प्रासंगिक नहीं है कि वे लक्ष्य हासिल हुए या नहीं। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि चलन से बाहर किये गये नोटों को बदलने के लिए 52 दिनों का समय दिया गया था और इसे अब नहीं बढ़ाया जा सकता। पीठ ने कहा, केंद्र और आरबीआई के बीच छह महीने की अवधि तक विचार-विमर्श चला था। हमने पाया है कि इस तरह का कदम उठाने के लिए एक तार्किक संबंध था। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत केंद्र के पास उपलब्ध शक्तियां बस यहीं तक सीमित नहीं की जा सकतीं कि इसका उपयोग नोटों की केवल कुछ ‘सीरीज’ के लिए किया जा सकता है। सभी ‘सीरीज’ के नोटों के लिए नहीं। उन्होंने कहा, महज इसलिए कि दो पूर्व अवसरों पर नोटबंदी की कवायद विधान के जरिए की गई, यह नहीं कहा जा सकता कि इस तरह की शक्ति केंद्र सरकार के पास उपलब्ध नहीं है।

पीठ ने कहा कि अधिसूचना निर्णय लेने की प्रक्रिया किसी त्रुटि से ग्रसित नहीं थी। अधिसूचना पड़ताल की कसौटी को पूरा करती है और इस तरह यह रद्द नहीं की जा सकती। न्यायालय ने कहा, अधिसूचना में उपलब्ध कराई गई अवधि को अतार्किक नहीं कहा जा सकता। निर्धारित अवधि के आगे, बंद किये गये नोटों को स्वीकार करने की आरबीआई के पास स्वतंत्र शक्ति नहीं है। हम रजिस्ट्री को विषय को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश देते हैं ताकि इसे उपयुक्त पीठ के समक्ष रखा जा सके। शीर्ष न्यायालय का फैसला, नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर आया है।

इन जजों की पीठ का फैसला

पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थे। इनमें से जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बाकी चार जजों की राय से अलग फैसला लिखा। उन्होंने कहा कि नोटबंदी का फैसला गैरकानूनी था। इसे गजट नोटिफिकेशन की जगह कानून के जरिए लिया जाना था। हालांकि उन्होंने कहा कि इसका सरकार के पुराने फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा-यह गंभीर मुद्दा

संविधान पीठ की सबसे कनिष्ठ न्यायाधीश, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि केंद्र के कहने पर सभी ‘सीरीज’ के नोटों को चलन से बाहर कर देना एक गंभीर मुद्दा है, जिसका अर्थव्यवस्था और देश के नागरिकों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि आरबीआई ने इस मामले में स्वतंत्र रूप से विचार नहीं किया, उससे सिर्फ राय मांगी गई जिसे केंद्रीय बैंक की सिफारिश नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि पूरी कवायद 24 घंटे में की गई।

सियासत भी

भाजपा ने पूछा- क्या राहुल मांगेगे माफी

पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि आतंकवाद की रीढ़ को तोड़ने में नोटबंदी ने महत्वपूर्ण काम किया। उन्होंने कहा, यह ऐतिहासिक फैसला है और देशहित में है। प्रसाद ने कहा कि इससे अर्थव्यवस्था भी साफ सुथरी हुई। उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से सवाल किया कि क्या नोटबंदी के खिलाफ अभियान चलाने के लिए वह देश से माफी मांगेंगे?

कांग्रेस बोली- पीएम को मांगनी चाहिए माफी

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि यह निर्णय सिर्फ नोटबंदी की प्रक्रिया पर है, इसके परिणाम एवं प्रभाव पर नहीं है। ऐसे में यह कहना गलत है कि सर्वोच्च अदालत ने मोदी सरकार के कदम को जायज ठहराया है। नोटबंदी जैसे ‘विनाशकारी’ कदम के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश से माफी मांगनी चाहिए।

ओवैसी बोले-भाजपा क्यों नहीं मनाती जश्न

एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी की तरफ से सरकार से बड़ा सवाल पूछा गया है। उन्होंने जोर देकर कहा गया है कि अगर नोटबंदी इतनी बड़ी सफलता है तो भाजपा इसे सिलेब्रेट क्यों नहीं करती है? ओवैसी कहते हैं कि ये बहुत अजीब बात है। नोटबंदी का जो भ्रष्टाचार खत्म करने का उदेश्य था, वो सब एक मजाक रहा। लाइन में खड़े होकर ही कई लोगों ने अपनी जान गंवा दी. प्रधानमंत्री को तो उल्टा इस मामले में राजनीतिक और सामाजिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी।

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