दशहरा रैली के बाद शिवसेना में क्या बदलेगा, उद्धव के भाई-भाभी से शिंदे गुट को कितना फायदा?

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शिवसेना की दशहरा रैली बुधवार को हुई। 56 साल में पहली बार एक नहीं दो दशहरा रैलियों का आयोजन शिवसेना में हुआ। एक को उद्धव ठाकरे ने संबोधित किया तो दूसरी को एकनाथ शिंदे ने। शिंदे के मंच पर उद्धव ठाकरे के सगे भाई जयदेव ठाकरे, उद्धव की भाभी स्मिता ठाकरे और उनके बेटे भी पहुंचे।

ठाकरे परिवार की इस टूट के कई मायने निकाले जा रहे हैं। दोनों भाषणों के भी राजनीतिक मायने तलाशे जा रहे हैं? जल्द ही बीएमसी चुनाव होने हैं। जहां वर्षों से शिवसेना का दबदबा है। इस रैली का बीएमसी चुनाव में क्या असर पड़ेगा? विश्लेषक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं। आइये इन सभी सवालों का जवाब जानते हैं…

क्या हैं दोनों भाषणों के मायने?

उद्धव और एकनाथ शिंदे दोनों ने अपने भाषण में एक दूसरे को गद्दार कहा। विश्लेषक कहते हैं कि उद्धव ने अपने भाषण से शिवसेना के मतदाताओं से भावुक अपील की। एक बार फिर उद्धव ने यह बताने की कोशिश की कि उनकी बीमारी का फायदा उठाया गया। उन्होंने जिन लोगों पर भरोसा किया उन लोगों ने उनके खिलाफ साजिश रची।

वहीं, एकनाथ शिंदे ने एक बार फिर बालासाहेब ठाकरे की विरासत पर दावा ठोंका। मंच पर बालासाहेब के नाम की कुर्सी भी लगाई गई। जिसे शिंदे ने प्रणाम किया। विश्लेषक कहते हैं कि बालासाहेब के परिवार के लोगों को मंच पर लाकर शिंदे ने शिवसेना पर अपनी दावेदारी को और मजबूत करने की कोशिश की है। शिंदे लगातार कांग्रेस से गठबंधन को लेकर उद्धव पर हमलावर रहे। इसे बालासाहेब की विचारधारा से गद्दारी बताया।

बीएमसी चुनाव पर भाषण का क्या असर होगा?

मुंबई शिवसेना का गढ़ मानी जाती है। लंबे समय से यहां कि बृहन्मुंबई महानगर पालिका (BMC) पर शिवसेना का कब्जा है। जल्द ही BMC के चुनाव होने हैं। ऐसे में दोनों गुटों के भाषण को चुनाव के मद्देनजर बेहद अहम माना जा रहा है।

विश्लेषक कहते हैं कि इन रैलियों के बाद शिवसेना का वोटर और कन्फ्यूज हो गया है। मतदाताओं का उद्धव के साथ जुड़ाव है। उद्धव लगातार उनसे भावुक अपील कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर उन्हें सत्ता की ताकत दिखाई दे रही है। ऐसे में अभी ये बता पाना काफी मुश्किल है कि वो किस गुट के साथ जाएंगे।

कितना फायदा पहुंचाएगा स्मिता, जयदेव ठाकरे का शिंदे के मंच पर आना?

एकनाथ शिंदे के मंच पर बालासाहेब ठाकरे के बेटे जयदेव ठाकरे, बालासाहेब की बहू स्मिता ठाकरे और स्मिता के बेटे भी मौजूद रहे। इसे राजनीतिक तौर पर बेहद अहम माना जा रहा है। इस मौजूदगी के जरिए एकनाथ शिंदे की ओर से ये संदेश देने की कोशिश की गई कि उद्धव पार्टी तो दूर परिवार भी एकजुट नहीं रख पा रहे हैं।

इसका एकनाथ शिंदे को चुनावी फायदा कितना हो सकता है? इस सवाल के जवाब में विश्लेषक कहते हैं कि जयदेव ठाकरे और स्मिता ठाकरे का कोई राजनीतिक वोटबैंक नहीं है। ऐसे में वोटों का कितना फायदा ये लोग दिला सकते हैं ये कहना मुश्किल है। स्मिता एक दौर में शिवसेना में काफी सक्रिय रही हैं। अगर उनकी सक्रियता शिंदे गुट में बढ़ती है तो शायद शिंदे को कुछ राजनीतिक लाभ हो सके।

दोनों गुटों में से किसकी रैली सफल रही?

महाराष्ट्र की राजनीति को समझने वाले कहते हैं कि उद्धव और शिंदे दोनों की रैलियों में भीड़ दिखाई दी। भीड़ के पैमाने पर किसी एक की रैली को सफल या असफल नहीं करार दिया जा सकता है। उद्धव की रैली जिस शिवाजी पार्क में थी वहां करीब 80 हजार लोग आ सकते हैं। मैदान भरा दिख रहा था। वहीं, एकनाथ शिंदे की रैली बीकेसी में थी जहां, डेढ़ लाख से ज्यादा लोग आ सकते हैं। यहां भी अच्छी खासी भीड़ पहुंची। दोनों गुटों ने भीड़ जुटाने की कोशिश की थी। इसका असर उनकी रैली में आई भीड़ देखकर जाना जा सकता है। सत्ता में काबिज शिंदे गुट के प्रयास ज्यादा थे जो दिखाई भी दे रहे थे।

तीर-कमान की दावेदारी पर क्या असर होगा?

शिवसेना के नाम और चुनाव निशान तीर-कमान पर दोनों गुटों की दावेदारी पर रैली का कोई असर नहीं होना है। दोनों गुटों को अपनी दावेदारी चुनाव आयोग में साबित करनी है। चुनाव आयोग ही ये फैसला करेगा कि आखिर शिवसेना नाम, झंडे और चुनाव निशान का इस्तेमाल कौन सा गुट करेगा। हालांकि, अब तक के हालात में शिंदे गुट की दावेदारी थोड़ी मजबूत दिखाई देती है।

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