मीसा बंदियों को सुप्रीम कोर्ट से झटका, पेंशन देने के आदेश पर रोक… सुको ने जेलों का प्राइवेटाइजेशन करने का सरकार को दिया सुझाव

  • राज्य शासन ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी है चुनौती

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के मीसा बंदियों को सम्मान निधि (पेंशन) देने के हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। राज्य शासन ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिस पर अब शासन के पक्ष में स्थगन आदेश दिया गया है।

ज्ञात हो कि राज्य में कांग्रेस की सरकार आने के बाद 2019 में प्रदेश के मीसा बंदियों को दी जाने वाली पेंशन राशि देने के आदेश को बदल दिया गया था। साथ ही नया नोटिफिकेशन जारी कर भौतिक सत्यापन के नाम से राशि रोक दी गई थी। इस फैसले के खिलाफ मीसा बंदियों ने हाईकोर्ट की शरण ली थी। याचिका में छत्तीसगढ़ सरकार के फैसले के खिलाफ मीसा बंदियों ने पेंशन भुगतान की मांग को लेकर हाईकोर्ट में अलग-अलग 40 याचिकाएं दायर की गई थीं। याचिकाकर्ताओं ने पेंशन रोके जाने के कारण भरण पोषण की समस्या का हवाला देते हुए पेंशन व्यवस्था को नियमित रखने की मांग की थी, जिसमें सिंगल बेंच ने मीसा बंदियों के पक्ष में फैसला दिया था। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने डिवीजन बेंच में अपील की थी।


डिवीजन बेंच ने भी शासन के खिलाफ दिया फैसला

शासन के नोटिफिकेशन की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए मीसा बंदियों की याचिका सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ शासन ने डिवीजन बेंच में अपील की थी। वहीं, मीसा बंदियों ने भी डिवीजन बेंच में अपना पक्ष रखा। इन सभी मामलों की सुनवाई चीफ जस्टिस अरुप कुमार गोस्वामी और जस्टिस एनके व्यास की बेंच ने आठ माह पहले शासन के आदेश को खारिज कर दिया था। साथ ही मीसा बंदियों को पेंशन राशि देने का आदेश दिया था। अब राज्य शासन ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। जिसमें, शुक्रवार को सुनवाई हुई। प्रारंभिक सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से मीसाबंदियों को सम्मान निधि राशि देने के आदेश पर रोक लगा दी है।


यह है मीसा बंदी पेंशन

पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल की घोषणा के बाद जेल में बंद किए गए राजनीतिक बंदियों को लोकतंत्र सेनानी का दर्जा देते हुए वर्ष 2008 से पेंशन व्यवस्था (सम्मान निधि) लागू की थी। मीसा बंदियों को पेंशन के लिए दो श्रेणी बनाई गई। छह महीने से कम जेल में रहने वाले बंदियों को प्रति महीने 15 हजार रुपए व छह महीने से ज्यादा जेल में बंद रहने वाले बंदियों को प्रति महीने 25 हजार रुपए पेंशन की व्यवस्था शुरू की थी। ऐसे मीसा बंदी जिनकी मृत्यु हो गई है, उनकी पत्नी को जीविकोपार्जन के लिए आधी राशि का भुगतान किया जा रहा था।

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जेलों का प्राइवेटाइजेशन! सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने दिया सुझाव
-कॉरपोरेट कंपनियों से बनवाएं, बदले में दें कर छूट
नई दिल्ली। जेलों में सुविधाओं की भारी कमी और कैदियों की बढ़ती तादाद पर सुध लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निजी जेलों का सुझाव दिया। सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की जेल से अस्पताल में शिफ्ट करने की अर्जी पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कॉपोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी (सीएसआर) का ध्यान दिलाया और कंपनियों से जेल बनवाने और बदले में कर छूट देने का सुझाव दिया। इससे पूर्व पीठ ने तलोजा जेल अधीक्षक को कार्यकर्ता नवलखा को मुंबई के जसलोक अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती करने का आदेश दिया। जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने कहा, बड़ी संख्या में कॉरपोरेट कंपनियों को इसका हिस्सा बनाया जा सकता है। जस्टिस जोसेफ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, उनकी कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी के तहत आप उनसे जेल बनाने को कह सकते हैं। पीठ ने कहा, किसी भी सरकार के लिए जेलों में सुविधाएं सबसे निम्न प्राथमिकिता है। उन्हें अस्पताल और स्कूल बनाने होते हैं। यूरोप में तो निजी जिम्मेदारी की अवधारणा है। यहां आप कॉरपोरेट को इसमें शामिल कर सकते हैं। ये कंपनियां आपके लिए जेल बना देंगी। पीठ ने मेहता से कहा, इससे सरकारी खजाने पर भी बोझ नहीं पड़ेगा और कंपनियां इस काम में किए खर्च पर आयकर लाभ भी ले सकती हैं। पीठ ने कहा, नियम तो यह है कि आरोपियों और दोषियों को एक साथ नहीं रखा जाना चाहिए। लेकिन हमारी जेलों में तो भीड़ लगी है। यहां कैदी जैसे रहते हैं वह बहुत बुरा हाल है। हम उनको अमानवीय जीवन नहीं दे सकते। पीठ ने कहा, जानवरों को भी इससे बेहतर रखा जाता है।
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भागवत को राष्ट्रपिता कहने वाले इमाम को इंग्लैंड से मिली धमकी
(फोटो : इमाम)
नई दिल्ली। संघ प्रमुख मोहन भागवत को ‘राष्ट्रपिता’ और ‘राष्ट्रऋषि’ बताने वाले ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख डॉ. उमर अहमद इलियासी को धमकी मिली है। चीफ इमाम के मुताबिक उन्हें इंग्लैंड से फोन आया था। डॉ. उमर अहमद इलियासी ने कहा कि एक शख्स ने पहले फोन कर नाराजगी जताई फिर अपशब्दों का प्रयोग किया और धमकी दी। चीफ इमाम ने सोशल मीडिया पर भी धमकी मिलने की बात कही है। इमाम ने कहा कि मोहन भागवत को उन्होंने बुलाया था। उन्हें राष्ट्रपिता और राष्ट्रऋषि बोला था इन शब्दों को वह वापस नहीं लेंगे, परिणाम चाहे जो भी हो। चीफ इमाम ने कहा कि उन्होंने थाने में धमकी को लेकर शिकायत दी है और सरकार और एजेंसियों को इसकी जानकारी है। बता दें कि चीफ इमाम के पास पहले से ही सुरक्षा मौजूद है।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर लगे बैन पर उमर इलियासी ने कहा कि सरकार के पास सबूत थे इसलिए कार्रवाई हुई। बता दें कि 22 सितंबर को दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग पर स्थित एक मस्जिद में मोहन भागवत और डॉ. उमर अहमद इलियासी के बीच मुलाकात हुई थी। इसके बाद भागवत उत्तरी दिल्ली के आजादपुर में स्थित एक मदरसे में पहुंचे थे। यहां भागवत जब बच्चों से बात कर रहे थे, तभी इलियासी ने उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ बताया था। उन्होंने कहा था कि मोहन भागवत आज मेरे निमंत्रण पर आए हैं। वह ‘राष्ट्र-पिता’ और ‘राष्ट्रऋषि’ हैं। उनकी आज की यात्रा से देश में एक अच्छा संदेश जाएगा. भगवान की पूजा करने के हमारे तरीके अलग हैं लेकिन सबसे बड़ा धर्म मानवता है। हमारा मानना है कि देश पहले आता है।
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