- नरसिंहपुर के झोतेश्वर स्थित उनके आश्रम में हुआ अंतिम संस्कार
- पूरे राजकीय सम्मान के साथ दी गई अंतिम विदाई
-एमपी के सीएम सहित कई बड़े नेता ने अर्पित किए श्रद्धासुमन
-जगतगुरु शंकराचार्य के उत्तराधिकारियों का भी हुआ ऐलान
नरसिंहपुर (मप्र)। ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में मशहूर ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (99) का सोमवार को मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित उनके आश्रम परिसर में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। उन्हें उनकी तपोस्थली परमहंसी गंगा आश्रम, झोतेश्वर के परिसर में भू-समाधि दी गई। इस अवसर पर करीब 50 हजार अनुयायी मौजूद थे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल एवं फग्गन सिंह कुलस्ते, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ तथा दिग्विजय सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी सहित कई नेताओं ने झोतेश्वर स्थित आश्रम पहुंचकर उनके अंतिम दर्शन कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। बता दें, स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को इसी आश्रम में हृदयाघात के कारण निधन हो गया था।
108 कलश जल से कराया गया स्नान
समाधि के लिए 108 कलश जल से स्वामी स्वरूपानंदजी को स्नान कराया गया। इस दौरान काशी से आए ब्राह्मण वैदिक रीति-रिवाज और मंत्रोच्चार किया । स्नान कराने के बाद 7 लीटर दूध से उनका दुग्ध अभिषेक किया गया। घी और चंदन का लेप लगाया गया। मस्तक पर शालिग्राम को स्थापित किया गया। इसके बाद भगवती मंदिर से आश्रम तक स्वामी स्वरूपानंद जी को पालकी पर बिठाकर परिक्रमा कराई गई। परिक्रमा पूरी होने के बाद शंकराचार्य को भजन कीर्तन के साथ दोपहर करीब 4 बजे समाधि स्थल पर ले जाया गया। साधु-संतों के वैदिक मंत्रोच्चार और धार्मिक रीति-रिवाज के बीच उन्हें समाधि दी गई। समाधि के पूर्व जगतगुरु को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। तिरंगा ओढ़ाकर राजकीय सम्मान के साथ विदाई दी गई। इस दौरान हजारों की संख्या में मौजूद उनके शिष्य, अनुयायी और श्रद्धालु मौजूद रहे।
साधुओं को ऐसे देते हैं भू-समाधि
शैव, नाथ, दशनामी, अघोर और शाक्त परम्परा के साधु-संतों को भू-समाधि दी जाती है। भू-समाधि में पद्मासन या सिद्धि आसन की मुद्रा में बैठाकर समाधि दी जाती है। अक्सर यह समाधि संतों को उनके गुरु की समाधि के पास या मठ में दी जाती है। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को भी भू-समाधि उनके आश्रम में दी गई।
बनाए गए दो नए शंकराचार्य
(फोटो: स्वामी)
ज्योतिष पीठ एवं शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के दूसरे दिन नए उत्तराधिकारियों की घोषणा कर दी गई है। ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ के नए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती होंगे जबकि शारदा पीठ द्वारका के नए शंकराचार्य सदानंद सरस्वती बनाए गए हैं। शंकराचार्य स्वरूपनानंद सरस्वती को समाधि से पहले ही इस संबंध में सोमवार को घोषणा कर दी गई। शंकराचार्य परंपरा के अनुसार गुरु की समाधि से पहले ही उत्तराधिकारी की घोषणा की जाती है। स्वरूपानंद सरस्वती दो पीठों के शंकराचार्य थे। दोनों पीठों के लिए उन्होंने अलग-अलग उत्तराधिकारी तय लिए थे। उनके निजी सचिव ने उनका ‘विल’पढ़कर घोषणा की है।
अविमुक्तेश्वरानंद का वाराणसी से गहरा नाता
ज्यातिषपीठ के शंकराचार्य बनाए गए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का वाराणसी से गहरा नाता है। किशोरावस्था से ही काशी के केदारखंड में रहकर संस्कृत विद्या अध्ययन करने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ग्रहण की है। इस दौरान छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के महामंत्री भी रहे। अविमुक्तेश्वरानंद मूल रूप से प्रतापगढ़ की पट्टी तहसील के ब्राह्मणपुर गांव के रहने वाले हैं। अविमुक्तेश्वरानंद (बचपन का नाम उमाशंकर) के पिता का नाम पंडित रामसुमेर पांडेय व माता का नाम अनारा देवी है। अविमुक्तेश्वरानंद का जन्म 15 अगस्त 1969 को ब्राह्मणपुर गांव में ही हुआ था।
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