विवादित पद्धति से होगा साइरस मिस्‍त्री का अंतिम संस्‍कार! सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है मामला

टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की सड़क हादसे में मौत से इंडस्ट्री में शोक की लहर है। यह कार हादसा उस वक्त हुआ जब वह गुजरात से मुंबई लौट रहे थे।

पोस्टमॉर्टम के बाद साइरस मिस्त्री का शव परिजनों को सौंप दिया गया है और अब कल उनका Last Rites Rituals किया जाएगा। सायरस मिस्त्री पारसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और इस समुदाय में अंतिम संस्कार करने का तरीका दूसरे समुदायों से बिल्कुल अलग है। इसमें न तो शव को जलाया जाता है और न ही उसे दफनाया जाता है।

पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार के रीति-रिवाजों को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। हालांकि, साइरस मिस्त्री का अंतिम संस्कार किस तरीके से किया जाएगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है।

पारसी धर्म में, टॉवर ऑफ साइलेंस में अंतिम संस्कार किया जाता है। इसे दोखमेनाशिनी या दखमा भी कहा जाता है। यह एक विशेष गोलाकार स्थान है जिस पर शवों को छोड़ कर आकाश को सौंप दिया जाता है। बाद में गिद्ध उस शव को खा जाते हैं। इस तरह से अंतिम संस्कार करने की यह परंपरा पारसी धर्म में 3 हजार साल से भी ज्यादा पुरानी है।
सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंचा मामला

कोविड काल में पहली बार पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार करने के तरीके को लेकर सवाल उठा। दरअसल, कोविड काल में भी पारसी इसी तरह से अंतिम संस्कार करना चाहते थे जो कोविड नियमों के मुताबिक नहीं था। इससे पक्षियों के माध्यम से कोविड संक्रमण फैलने का खतरा था।

बता दें कि पारसी धर्म में पृथ्वी, जल और अग्नि इन तीनों तत्वों को बहुत पवित्र माना गया है। ऐसे में शव को जलाकर, पानी में बहा देने या दफनाने से ये तीनों तत्व अशुद्ध हो जाते हैं।

हालांकि गिद्धों की घटती संख्या के कारण पिछले कुछ वर्षों से पारसी समुदाय को अंतिम संस्कार करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। देश में मुंबई, पुणे समेत कुछ जगहों पर टावर ऑफ साइलेंस हैं।

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