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— पहले इस्तीफा, फिर नीतीश-तेजस्वी ने राज्यपाल को पेश किया दावा
—164 विधायकों का समर्थन पत्र सौंपा, गठबंधन टूटने पर भड़की भाजपा
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पटना/नई दिल्ली। बिहार में भाजपा-जदयू का गठबंधन टूट गया। सात पार्टियों के साथ नीतीश कुमार ने महागठबंधन कर नई पारी की तैयारी कर ली। मंगलवार की शाम को नीतीश कुमार ने राज्यपाल फागू चौहान को 164 विधायकों के समर्थन की चिट्ठी सौंपी। इस मौके पर तेजस्वी यादव भी उनके साथ राजभवन में मौजूद थे। इधर, नीतीश के सियासी गणित पर भाजपा बौखला गई।
बिहार में नीतीश कुमार ने मंगलवार को राजग के मुख्यमंत्री के तौर पर अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया। इसके बाद सर्वसम्मति से ‘महागठबंधन’ का नेता चुने जाने पर उन्होंने नई सरकार बनाने का दावा पेश किया। वहीं, जदयू की गठबंधन सहयोगी रही भाजपा ने नीतीश कुमार पर ‘धोखा’ देने का आरोप लगाया है। कुमार ने जनता दल (यूनाइटेड) के सांसदों और विधायकों के साथ बैठक के बाद राज्यपाल फागू चौहान को अपना इस्तीफा सौंपा। भाजपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने पलटवार करते हुए कुमार पर 2020 के विधानसभा चुनाव के जनादेश के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाया। जायसवाल ने दावा किया कि इस कदम के लिए बिहार की जनता नीतीश कुमार को सजा देगी। जदयू की बैठक के बाद कुमार इस्तीफा देने राजभवन पहुंचे, और इस्तीफा सौंपने के बाद अपने आवास लौट आये। कुमार ने संवाददाताओं से कहा, पार्टी की बैठक में निर्णय लिया गया कि हम राजग से अलग हो रहे हैं। इसलिए, मैंने राजग के मुख्यमंत्री के तौर पर इस्तीफा दे दिया। इसके कुछ ही देर बाद नीतीश कुमार पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर पहुंचे, जहां महागठबंधन के सभी नेता एकत्र हुए थे। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन के साथ पहुंचे कुमार राबड़ी देवी के आवास पर करीब आधा घटा रहे। इसके बाद नीतीश कुमार नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ समर्थन पत्र लेकर वापस आए। करीब 15 मिनट बाद कुमार ने एक बार फिर राज्यपाल से मुलाकात कर नयी सरकार के गठन का दावा पेश किया। इस दौरान, कुमार के साथ तेजस्वी यादव, पूर्व उपमुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के अलावा जदयू के वरिष्ठ नेता मौजूद रहे। महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं।
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राजद को मिली संजीवनी
राजद को फिर संजीवनी मिल गई है। इस सियासी उलटफेर ने पूरे विपक्ष को कई संकेत दिए हैं। मीडिया से बात करते हुए तेजस्वी ने उन्हीं संकेतों पर विस्तार से बात भी की। तेजस्वी ने जोर देकर कहा है कि जो जनता के सवाल को लेकर लड़ता है, जो जनता के मुद्दे उठाता है, जनता सिर्फ उसे ही स्वीकार करती है। उन्होंने साफ कहा है कि अगर विपक्ष भी दूसरे राज्यों में जनता के मुद्दे उठाएगी तो भाजपा को हराना आसान हो जाएगा। तेजस्वी ने कहा कि हमने लोकतंत्र बचाने के लिए ये निर्णय लिया है। हमारे पुरखों को विरासत कोई और नहीं ले जाएगा। सब लोग चाहते थे कि भाजपा का एजेंडा बिहार में नहीं चलने देना है। हमलोग समाजवादी लोग हैं।
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भाजपा बोली- जनता सिखाएगी सबक
भाजपा के कोरग्रुप की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने दो टूक कह दिया है कि बिहार की जनता नीतीश कुमार को सबक सिखाने वाली है। बैठक में रविशंकर प्रसाद ने भी कहा है कि नीतीश ने एक बार फिर जनादेश का अपमान किया है। गिरिराज सिंह ने यह भी कहा कि नीतीश कुमार की महत्वकांशा जागी है। बिहार की जनता उनको फिर से सबक सिखाएगी। उनमें हिम्मत है तो बताएं कि उनको कौन तोड़ेगा। पूरे बिहार की राजनीति को तोड़ने वालों में शामिल हो गए हैं। वो जीवन में कभी भी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे।
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कांग्रेस बोली- उत्थान के बाद पतन तय
विपक्षी दलों ने कहा कि यह भाजपा की ‘धमकी की राजनीति’ की परिणति है। भारतीय राजनीति में बदलाव का संकेत है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, मार्च 2020 में, मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए मोदी सरकार ने कोविड-19 लॉकडाउन को आगे बढ़ा दिया था। अब संसद सत्र निर्धारित समय से छोटा करना पड़ा, क्योंकि बिहार में उनकी गठबंधन सरकार जा रही है। उत्थान के बाद पतन तय होता है। कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने ट्वीट किया, भाजपा का ओवर कॉन्फ़िडेंस ही भाजपा का अभिशाप। भाकपा के महासचिव डी राजा ने कहा, भाजपा के अधिनायकवाद ने सहयोग के लिए गुंजाइश नहीं छोड़ी है। अकाली दल, शिवसेना के बाद जद(यू) इसकी ताजा मिसाल है।
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सुलग रही थी चिंगारी
00 बिहार के सीएम नीतीश कुमार केंद्रीय मंत्रिमंडल में समान अनुपात में प्रतिनिधित्व चाहते थे।
00 नीतीश भाजपा कोटे से विधानसभा स्पीकर बने विजय कुमार सिन्हा को काफी पसंद नहीं करते हैं।
00 भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने अग्निपथ योजना पर बिहार में हिंसक प्रदर्शन के बाद नीतीश सरकार पर हमला बोला था।
00 भाजपा देश और राज्यों में एक साथ चुनाव कराने की सोच रही है, जबकि जदयू ने इसका खुलकर विरोध किया
00 नीतीश कुमार चाहते थे कि उनकी सरकार में भाजपा कोटे से बनने वाले मंत्रियों पर उनका कंट्रोल हो।

