Z Plus सिक्योरिटी में कब है ‘सेंध’ लगने का खतरा? तब ‘वीवीआईपी’ को छोड़ देता है सुरक्षा दस्ता

वीवीआईपी सुरक्षा प्राप्त लोग जब किसी धरना प्रदर्शन में भाग लेते हैं और स्थानीय पुलिस उन्हें गिरफ्तार करती है तो ‘सुरक्षा दस्ते’ की चुनौती कई गुना बढ़ जाती है। यही वो मौका होता है जब संबंधित वीवीआईपी की सुरक्षा में सेंध लगने का जोखिम रहता है। सुरक्षा कर्मियों को पार्टी कार्यकर्ताओं, मीडिया कर्मियों और स्थानीय पुलिस से जूझना पड़ता है। उनके साथ खूब धक्कामुक्की होती है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी के साथ ऐसा कई बार हो चुका है। शुक्रवार को भी दिल्ली पुलिस ने जब उन्हें गिरफ्तार किया, तो सीआरपीएफ जेड प्लस दस्ते को बड़ी मशक्कत का सामना करना पड़ा। अगर कोई वीवीआईपी गिरफ्तार होता है और उसे जेल में ले जाया जाता है तो उसका सुरक्षा दस्ता कैंप में वापसी कर जाता है। उसके बाद सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति की हिफाजत का जिम्मा राज्य पुलिस संभालती है।
‘एसपीजी’ शेडो की तरह

लंबे समय तक एसपीजी में रहे सीएपीएफ के एक अधिकारी बताते हैं, देखिये वैसे तो वीवीआईपी सुरक्षा के बहुत कठोर नियम हैं। जब हम किसी की सुरक्षा में होते हैं तो हमारा मकसद उस व्यक्ति की हिफाजत करना है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि ‘एसपीजी’ शेडो की तरह है। वह सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति के साथ रहेगी। जब पूर्व पीएम नरसिम्हाराव को एक केस में जेल की सजा सुनाई गई तो एसपीजी उनके साथ जाने के लिए अड़ गई थी। सुरक्षा दस्ते का एक ही मकसद होता है कि उनके होते हुए सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति को कोई नुकसान न हो। अगर कानून कहता है कि सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति को हिरासत में लेना है या जेल भेजना है तो उसे माना जाता है।

सीएपीएफ के एक दूसरे अधिकारी जो मौजूदा समय में वीवीआईपी सिक्योरिटी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, वे कहते हैं कि धरना प्रदर्शन में सुरक्षा घेरे में सेंध लगने का जोखिम होता है। हालांकि इसके लिए सुरक्षा कर्मियों को ट्रेंड किया जाता है। चूंकि सुरक्षा, राज्य का विषय होता है, इसलिए किसी वीवीआईपी की गिरफ्तारी के बाद वह जिम्मेदारी संबंधित राज्य की हो जाती है। कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी में पुलिस को मशक्कत करनी पड़ी, तो उससे कहीं ज्यादा दिक्कतें सुरक्षा दस्ते को झेलनी होती हैं। इस तरह के धरना प्रदर्शन में देखने को मिलता है कि सुरक्षा कर्मी, लोकल पुलिस, मीडिया कर्मी या पार्टी कार्यकर्ताओं को धकेल देते हैं। ऐसा नहीं है, इसमें उनका मकसद केवल उन्हें रोकना होता है। ऐसे समय में सुरक्षा दस्ते को मानसिक तौर से अलर्ट रहना पड़ता है। अगर सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति को नजरबंद किया गया है तो सुरक्षा कर्मी वहीं पर बैठे रहते हैं। उसे अस्पताल ले जाना है तो भी सुरक्षा दस्ता साथ ही रहता है। अगर उस व्यक्ति को जेल हो जाती है तो सुरक्षा दस्ता, अपने कैंप में लौट आता है। उसके बाद वीवीआईपी की सुरक्षा का दायित्व संबंधित राज्य की पुलिस या जेल प्रशासन वहन करता है। अगर वीवीआईपी पर किसी जांच एजेंसी की रेड होती है या उससे पूछताछ होनी है तो भी सुरक्षा कर्मी बाधा नहीं बनते हैं।
बना रहता है सुरक्षा का जोखिम
कई बार जब वीवीआईपी को बड़ा खतरा रहता है और उसे किसी मामले में पुलिस गिरफ्तार करती है तो थाने तक सुरक्षा दस्ता साथ जाता है। थाने से उसे अस्पताल या अदालत लाना है, तो भी सुरक्षा दस्ता ड्यूटी पर रहता है। इस दौरान अगर स्थानीय पुलिस कहती है तो ही सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति के साथ सुरक्षा कर्मी बैठते हैं, अन्यथा वे पीछे चल रहे वाहन में सवार रहते हैं। अगर कुछ घंटे या एक आध दिन तक वीवीआईपी व्यक्ति, लॉकअप में जाता है तो सुरक्षा दस्ता, बाहर इंतजार करता है। उस व्यक्ति को अगले दिन कोर्ट में पेश करना है तो सुरक्षा दस्ता साथ ही रहता है। गिरफ्तार होने तक उस व्यक्ति की सुरक्षा करनी होती है। राहुल या प्रियंका गांधी के साथ शुक्रवार को जो कुछ हुआ, उसमें सुरक्षा का जोखिम रहता है। कई बार सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति मनमर्जी से इधर-उधर जाने लगता है। प्रदर्शन के दौरान अगर पुलिस की तरफ से वीवीआईपी व्यक्ति के साथ धक्कामुक्की होती है तो उसे बचाने का हर संभव प्रयास होता है।

प्रातिक्रिया दे