रुपये में मंगलवार को भी गिरावट जारी रही. डॉलर (Dollar) के मुकाबले रुपया 7 पैसे की गिरावट के साथ 80.05 के स्तर पर खुला. सोमवार को 16 पैसे की गिरावट दर्ज की गई थी. कमजोर होता रुपया और मजबूत स्थिति में मौजूद डॉलर (Dollar vs Rupees), यह सवाल पैदा करता है कि आखिर अमेरिकी डॉलर इतना मजबूत क्यों है और दुनियाभर में दूसरी करंसी की तुलना अमेरिकी डॉलर से क्यों की जाती है. अमेरिकी डॉलर (American Dollar) के मजबूत होने की कई वजह हैं. जानिए, इनके बारे में…
यूं तो दुनियाभर में कई तरह करंसी हैं, लेकिन डॉलर को दुनिया की अंतरराष्ट्रीय करंसी (Global Currency) माना जाता है. इसे इतना पावरफुल क्यों माना जाता है इसकी कई वजह बताई गई हैं. अमेरिका जिस भी देश से व्यापार करता है उससे भुगतान डॉलर में ही लेता है. जैसे- अमेरिका में हथियार बनाने में वाली कई नामी कंपनियां हैं, ऐसे में दूसरे देशों को हथियार खरीदने के लिए अमेरिका को डॉलर में भुगतान करना पड़ता है.
यूं तो दुनियाभर में कई तरह करंसी हैं, लेकिन डॉलर को दुनिया की अंतरराष्ट्रीय करंसी (Global Currency) माना जाता है. इसे इतना पावरफुल क्यों माना जाता है इसकी कई वजह बताई गई हैं. अमेरिका जिस भी देश से व्यापार करता है उससे भुगतान डॉलर में ही लेता है. जैसे- अमेरिका में हथियार बनाने में वाली कई नामी कंपनियां हैं, ऐसे में दूसरे देशों को हथियार खरीदने के लिए अमेरिका को डॉलर में भुगतान करना पड़ता है.
इतना ही नहीं, दुनिया में सबसे ज्यादा सोना अमेरिका में निकलता है. ज्यादातर देश सोना खरीदने के लिए अमेरिका के सम्पर्क करते हैं. अमेरिका हमेशा उन देशों से भुगतान डॉलर में करने के लिए कहता है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में 100 अमेरिकी डॉलर के करीब 900 करोड़ नोट चलन में हैं. इनमें से दो तिहाई दूसरे देशों में इस्तेमाल हो रहे हैं. इसलिए इसे पावरफुल करंसी कहा जाता है.
इतना ही नहीं, दुनिया में सबसे ज्यादा सोना अमेरिका में निकलता है. ज्यादातर देश सोना खरीदने के लिए अमेरिका के सम्पर्क करते हैं. अमेरिका हमेशा उन देशों से भुगतान डॉलर में करने के लिए कहता है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में 100 अमेरिकी डॉलर के करीब 900 करोड़ नोट चलन में हैं. इनमें से दो तिहाई दूसरे देशों में इस्तेमाल हो रहे हैं. इसलिए इसे पावरफुल करंसी कहा जाता है.
सिर्फ हथियार बनाने वाली ही नहीं, ईरान, इराक और अरब देशों में कच्चा तेल निकालने वाली कंपनियां भी ज्यादातर अमेरिका की ही हैं. ये सभी कंपनियां डॉलर में भुगतान करने को कहती हैं. यही वजह है कि डॉलर काफी पावरफुल और दुनिया की अंतरराष्ट्रीय करंसी कहा गया है.
सिर्फ हथियार बनाने वाली ही नहीं, ईरान, इराक और अरब देशों में कच्चा तेल निकालने वाली कंपनियां भी ज्यादातर अमेरिका की ही हैं. ये सभी कंपनियां डॉलर में भुगतान करने को कहती हैं. यही वजह है कि डॉलर काफी पावरफुल और दुनिया की अंतरराष्ट्रीय करंसी कहा गया है.
दुनिया में पहली बार साल 1914 में फेडरल रिजर्व बैंक ने अमेरिकी डॉलर को छापा था. अगले 60 सालों के अंदर ही यह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बन गया. अमेरिकी डॉलर की नींव उस समय पड़ी जब ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा था.
दुनिया में पहली बार साल 1914 में फेडरल रिजर्व बैंक ने अमेरिकी डॉलर को छापा था. अगले 60 सालों के अंदर ही यह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बन गया. अमेरिकी डॉलर की नींव उस समय पड़ी जब ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा था.

