-यूपी में आदेश जारी, जेनेरिक की जगह ब्रांडेड दवाएं लिखने पर डॉक्टरों पर होगी कार्रवाई

लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने एक बड़ा फैसला किया है। यूपी में अब डॉक्टर किसी भी कीमत पर जेनेरिक की जगह ब्रांडेड दवाएं नहीं लिख सकेंगे। चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग ने सभी डॉक्टरों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वो दवा के ब्रांड का नाम नहीं, बल्कि उसका सॉल्ट लिखेंगे। अगर डॉक्टर बाहर की दवा लिखते पाए गए, तो उन पर कार्रवाई की जाएगी। डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त अस्पतालों में जेनेरिक दवाओं के इस्तेमाल का आदेश दिया। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी आदेश के मुताबिक, सभी सरकारी अस्पतालों से ये भी कहा गया है कि वो उपलब्ध दवाइयों की लिस्ट डिस्प्ले करें। अब डॉक्टर मरीज को चाहकर भी बाहर से दवा नहीं लिख सकते. ऐसे में अब जन औषधि केंद्र से दवाइयां ली जा सकेंगी।

ब्रांड के नाम की जगह सॉल्ट का नाम

डिप्टी सीएम पाठक ने बताया कि अगर अस्पताल में दवाएं नहीं हैं, और डॉक्टर बाहर की दवा लिखते हैं तो वे ब्रांड के नाम की जगह सॉल्ट का नाम लिखेंगे। मरीज सरकारी अस्पताल के जन औषधि केंद्र से जेनेरिक दवा खरीद सकता है।

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जेनेरिक दवाओं और ब्रांडेड में क्या है अंतर?

दरअसल, किसी बीमारी की दवा एक तरह का ‘केमिकल सॉल्ट’ होता है। जेनेरिक दवा जिस सॉल्ट से बनी होती है, उसी के नाम से जानी जाती है। वहीं, कंपनी जब इसे अपना नाम दे देती हैं, तो यह ब्रांडेड हो जाती है। जैसे दर्द या बुखार में काम आने वाली दवा में पैरासिटामोल सॉल्ट होता है। लेकिन जब इसे कोई ब्रांड बनाता है, तो उसे अपना नाम दे देता है। जहां सर्दी-खांसी, बुखार जैसी बीमारियों की जेनेरिक दवाएं 1-2 रुपए प्रति टैबलेट में उपलब्ध होती हैं, तो वहीं, ब्रांडेड के लिए ग्राहकों को इनकी कीमत कई गुना तक देनी पड़ती है।


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