गुजरात दंगे : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अधिकारियों की निष्क्रियता और नाकामी अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश नहीं, भरोसेमंद सुबूत जरूरी

सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों में विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अन्य आरोपियों को दी गई क्लीनचिट को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा, यह साबित करने के लिए कोई सुबूत नहीं है कि दंगे पूर्व नियोजित थे। प्रशासन के कुछ अधिकारियों की निष्क्रियता या विफलता को राज्य सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की पूर्व नियोजित साजिश का आधार नहीं माना जा सकता। न ही इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ राज्य प्रायोजित हिंसा कह सकते हैं।

जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने जाकिया जाफरी की 16 साल लंबी कानूनी लड़ाई को प्रक्रिया का दुरुपयोग करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी रिपोर्ट को चुनौती देने वाली जाकिया की याचिका खारिज करते हुए यह बात कही। जाकिया दंगे में मारे गए पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी हैं। उन्होंने मोदी समेत 63 लोगों पर आरोप लगाए थे।

पीठ ने 452 पृष्ठ के फैसले में जांच रिपोर्ट की तारीफ करते हुए कहा, कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी ने 2012 में सभी सुबूतों पर विचार करने के बाद अपनी राय बनाई। एसआईटी ने अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ सामूहिक हिंसा के लिए सरकार में शीर्ष स्तर आपराधिक साजिश रचे जाने के आरोप खारिज कर दिए थे।

पीठ ने कहा, रिपोर्ट मजबूत तर्क, विश्लेषणात्मक दिमागी कसरत और सभी पहलुओं पर निष्पक्ष विचार पर आधारित थी। अदालत ने निष्कर्ष निकाला, एकत्र सामग्री बड़ी आपराधिक साजिश रचने के संबंध में मजबूत या गंभीर संदेह को जन्म नहीं देती है। सुप्रीम कोर्ट ने 8 दिसंबर 2021 को 14 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

शीर्ष अदालत ने कहा- दंगे पूर्वनियोजित नहीं, गवाहियां झूठ से भरीं जिनका मकसद सनसनी फैलाना और मुद्दे का राजनीतिकरण करना
पीठ ने कहा, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के इस तर्क में दम है कि तत्कालीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट, पूर्व गृह मंत्री हरेन पंड्या और एक अन्य वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी आरबी श्रीकुमार की गवाही का मकसद सनसनी फैलाना और मुद्दे का राजनीतिकरण करना था। इनकी गवाही झूठ से भरी थी। एसआईटी ने गहन जांच के बाद उनके झूठे दावों को उजागर कर दिया था।

मुद्दा सुलगाए रखने की कोशिश…ऐसे तत्वों को कठघरे में खड़ा करना जरूरी
8 जून, 2006 को 67 पन्नों की शिकायत जमा करने, फिर 15 अप्रैल, 2013 को 514 पृष्ठों में विरोध याचिका दायर करके वर्तमान कार्यवाही को पिछले 16 वर्षों से ज्यादा समय तक लटकाया गया है। इस कुटिल चाल को उजागर करने की प्रक्रिया में शामिल हर अधिकारी की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाने का प्रयास किया गया, ताकि मुद्दा सुलगता रहे। प्रक्रिया के इस दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कठघरे में खड़ा करने की जरूरत है।

कोरोना काल में पूरी दुनिया के देश चरमरा गए, क्या इसे भी आपराधिक साजिश कहेंगे
पीठ ने कहा, राज्य प्रशासन की विफलता कोई अज्ञात घटना नहीं है। यह कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में दुनियाभर में देखा गया। जहां सबसे अच्छी चिकित्सा सुविधाओं वाले देश चरमरा गए और उनके प्रबंधन कौशल दबाव में खत्म हो गए। क्या इसे आपराधिक साजिश का मामला कहा जा सकता है? हमें ऐसे मामलों को बढ़ावा देने की जरूरत नहीं है।

अल्प समय के लिए कानून-व्यवस्था टूटने को सांविधानिक संकट नहीं कह सकते
कानून-व्यवस्था की स्थिति छोटी अवधि के लिए टूटने या छिन्न-भिन्न होने को कानून का शासन भंग होने या सांविधानिक संकट का रंग नहीं दिया जा सकता। अलग तरीके से कहें, तो कुशासन या संक्षिप्त अवधि में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफलता संविधान के अनुच्छेद-356 में निहित सिद्धांतों के संदर्भ में सांविधानिक तंत्र की विफलता का मामला नहीं हो सकता है।
राज्य प्रशासन की नाकामी के भरोसेमंद सुबूत जरूरी
गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अन्य आरोपियों को दी गई क्लीनचिट बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य प्रशासन की विफलता के संबंध में विश्वसनीय सुबूत होने चाहिए। इस मामले में ऐसा नहीं है। वास्तव में, सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन की अध्यक्षता में अदालत द्वारा नियुक्त एसआईटी की जांच में यह पाया गया कि दंगों के दौरान घटनाक्रम तेजी से बदल रहे थे और पहले से मौजूद व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी। जांच में यह भी पाया कि राज्य के सबसे अशांत क्षेत्रों में कर्फ्यू के अलावा 28 फरवरी, 2002 को ही सेना बुलाकर अतिरिक्त सहायता की गई थी।
दंगों के दौरान सही समय पर सुधारात्मक उपाय किए गए : शीर्ष अदालत ने कहा, राज्य सरकार ने सही समय पर सुधारात्मक उपाय किए और तत्कालीन मुख्यमंत्री (मोदी) द्वारा बार-बार सार्वजनिक आश्वासन दिया गया कि दोषियों को उनके अपराध के लिए दंडित किया जाएगा। उन्होंने शांति बनाए रखने की अपील भी की। ऐसे में राज्य द्वारा उच्चतम स्तर पर साजिश रचने के बारे में संदेह करना सामान्य विवेक के किसी भी व्यक्ति की समझ से परे है। पीठ ने जोर देकर कहा, कानून-व्यवस्था के राज्य प्रायोजित रूप से तहस-नहस होने व स्थिति को नियंत्रित करने में राज्य प्रशासन की विफलता के संबंध में भरोसेमंद साक्ष्य होने चाहिए।
तनवीर जाफरी ने कहा, फैसले से निराशा हुई : उधर, गुजरात दंगे में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी के बेटे तनवीर जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निराशा जताई। उन्होंने कहा, अभी मैं देश के बाहर हूं। पूरा फैसला पढ़ने के बाद अपनी प्रतिक्रिया दूंगा। तनवीर अभी हज करने मक्का गए हुए हैं।
भाजपा नेता बोले, सत्यमेव जयते
गुजरात दंगे के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को एसआईटी रिपोर्ट में क्लीनचिट दिए जाने के खिलाफ याचिका खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भाजपा नेताओं ने खुशी जताई। केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा, सत्यमेव जयते!

केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी, पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद व भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की खबर साझा करते हुए लिखा, सत्यमेव जयते। भाजपा के सचिव वाई सत्य कुमार ने दावा किया कि कांग्रेस का मोदी की छवि को खराब करने का आखिरी दांव भी फुस्स हो गया।

जाकिया ने लगाया था साजिश का आरोप
गुजरात दंगों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में एसआईटी बनाई थी। जाकिया जाफरी ने दंगों के पीछे राज्य सरकार में शीर्ष स्तर पर साजिश का आरोप लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस शिकायत की भी जांच करने के निर्देश दिए थे।

2011 में मजिस्ट्रेट के सामने पेश रिपोर्ट में एसआईटी ने कहा, उच्च स्तर पर साजिश के कोई सुबूत नहीं मिले। पहले मजिस्ट्रेट, फिर हाईकोर्ट ने रिपोर्ट को स्वीकृति दी थी। जाफरी ने रिपोर्ट खारिज करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

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