बीजिंग : चीन की जनता इन दिनों दोहरी मार झेल रही है। एक ओर कोरोना वायरस है जो महामारी शुरू होने के बाद से अपने सबसे भयानक रूप में सामने है। वहीं दूसरी ओर सरकार की जीरो कोविड पॉलिसी है जिसके सख्त नियम संक्रमण घटाने के बजाय लोगों की मुसीबतें बढ़ा रहे हैं। सरकार की ‘जीरो कोविड’ नीति फेल होती दिख रही है और जनता में नाराजगी बढ़ रही है। पिछले हफ्ते चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने कथित तौर पर 1,00,000 सरकारी अधिकारियों से हालत को ‘स्थिर’ बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया।
अल जजीरा की खबर के अनुसार स्टेट काउंसिल एक्सेक्यूटिव मीटिंग में ली ने कहा कि चीन की अर्थव्यवस्था 2020 में महामारी की शुरुआत से भी ज्यादा बड़ी चुनौती का सामना कर रही है, जब रोजगार, उत्पादन और खपत सब कुछ ठप्प हो गया था। चीन के प्रधानमंत्री की यह अपील असाधारण थी जिन्हें उनके दो कार्यकाल के ज्यादातर समय दरकिनार किया जाता रहा है। चीन में दूसरे सबसे शक्तिशाली पद पर होने के बावजूद उन्हें ज्यादातर दरकिनार किया जाता रहा है।
चीन का राजनीतिक भविष्य संकट में?
यह मीटिंग न सिर्फ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर चीन के आर्थिक भविष्य पर चिंता जाहिर करती है बल्कि ली केकियांग की अपील चीन के राजनीतिक भविष्य के संकट के भी संकेत देती है। कभी चीन के पूर्व राष्ट्रपति हू जिंताओ के गुट से संभावित राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में देखे जाने वाले ली केकियांग को करीब एक दशक पहले प्रधानमंत्री बनने के बाद से दरकिनार किया जाता रहा है।
अपनी ही पॉलिसी से मुश्किलों में घिरे शी जिनपिंग
हाल ही में ली केकियांग को चीन में महामारी से निपटने के इंतजामों की देखरेख की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन चीन की ‘जीरो कोविड’ पॉलिसी के लिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग जिम्मेदार हैं जो वायरस को ‘पूरी तरह खत्म’ करने से कम कुछ भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है। चीन की जीरो कोविड पॉलिसी ने शी जिनपिंग को मुश्किलों में डाल दिया है। इस नीति के तहत साल की शुरुआत से ही करोड़ों लोग सख्त लॉकडाउन में कैद हैं और चीन के प्रमुख उद्योग प्रभावित हुए हैं।
जिनपिंग की विफलता से मजबूत होगी ली की भूमिका

