- दो टूक कहा- 3 महीने में राज्यों से चर्चा कर रिपोर्ट दीजिए
कोर्ट ने सुनवाई के लिए तय कर दी है 30 अगस्त की तारीख
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नई दिल्ली। हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की पहचान से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार द्वारा तीन महीने के भीतर अलग-अलग स्टैंड लिए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट में पहले केंद्र ने कहा था कि जिन राज्यों में हिंदू, जैन व अन्य समुदाय की संख्या कम है उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देने या न देने का फैसला राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को करना है। लेकिन अब केंद्र सरकार ने अपने नए एफडेविट में कहा है कि अल्पसंख्यकों को नोटिफाई करने का अधिकार केंद्र के पास है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह तीन महीने में इस मामले में राज्यों से विचार विमर्श करे। इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई के लिए 30 अगस्त की तारीख तय कर दी है। केंद्र ने इससे पहले सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने का अधिकार केंद्र के पास है। इस मामले में कोई भी फैसला राज्यों व अन्य हित धारकों से विमर्श के बाद लिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि पहले एक हलफनामा दिया गया और कहा गया कि केंद्र और राज्य दोनों के पास इसकी शक्ति है। अब आप कह रहे हैं कि केंद्र के पास अधिकार है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने जो हलफनामा दायर किया है वह पहले के हलफनामे से अलग है और हम इसको नहीं सराह सकते। बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा है कि देश के 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन वहां हिंदुओं की जगह स्थानीय बहुसंख्यक समुदायों को ही अल्पसंख्यक हितैषी योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है।
9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक
याचिका में कहा गया है कि देश भर के 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं लेकिन वह अल्पसंख्यकों की योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने 1992 के अल्पसंख्यक आयोग कानून और 2004 के अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। याची का कहना है कि संविधान में अनुच्छेद-14 सबको समान अधिकार देता है अर्टिकल 15 भेदभाव को निषेध करता है। याचिका में साथ ही गुहार लगाई गई है कि अगर कानून कायम रखा जाता है तो जिन 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं उन्हें राज्यवार स्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए ताकि उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ मिले। याचिका में कहा गया कि लद्दाख, मिजोरम, लक्ष्यद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में हिंदू की जनसंख्या अल्पसंख्यक तौर पर है।
केंद्र सरकार भ्रमित
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने मंगलवार को कहा कि ये ऐसे मामले हैं, जिनके समाधान की जरूरत है और हर चीज पर फैसला नहीं सुनाया जा सकता। पीठ ने कहा, ‘हमें यह नहीं समझ आ रहा कि केंद्र सरकार यह तय नहीं कर पा रही कि उसे क्या करना है। ये सब विचार पहले ही दिए जाने थे।
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