मदर्स डे – ‘मां’ के लिए कहे शायरों के अल्फ़ाज़

चलती फिरती हुई आंखों से अज़ां देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है
– मुनव्वर राना


कहो क्या मेहरबाँ ना-मेहरबाँ तक़दीर होती है
कहा माँ की दुआओं में बड़ी तासीर होती है
– अंजुम ख़लीक़

जिस ने इक उम्र दी है बच्चों को
उस के हिस्से में एक दिन आया
– अज्ञात


मैं ने माँ का लिबास जब पहना
मुझ को तितली ने अपने रंग दिए
– फ़ातिमा हसन

शायद यूं ही सिमट सकें घर की ज़रूरतें
‘तनवीर’ माँ के हाथ में अपनी कमाई दे
– तनवीर सिप्रा


सामने मां के जो होता हूँ तो अल्लाह अल्लाह
मुझ को महसूस ये होता है कि बच्चा हूं अभी
– महफूजुर्रहमान आदिल

एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए
एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे
– इरफ़ान सिद्दीक़ी


रौशनी भी नहीं हवा भी नहीं
माँ का नेमुल-बदल ख़ुदा भी नहीं
– अंजुम सलीमी

इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
मेरी शह-रग पे मिरी माँ की दुआ रक्खी थी
– नज़ीर बाक़री


मुद्दतों बाद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
मुद्दतों बाद हमें नींद सुहानी आई
– इक़बाल अशहर

मुनव्वर मां के आगे यूं कभी खुल कर नहीं रोना
जहां बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
– मुनव्वर राना

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