नई दिल्ली। राजद्रोह कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है कि इस मामले को अब और स्थगित नहीं किया जाएगा। गुरुवार को कोर्ट ने कहा कि वह राजद्रोह पर औपनिवेशिक युग के दंड कानून संबंधी याचिकाओं पर 10 मई को सुनवाई करेगा। उसने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए और समय दिया है। चीफ जस्टिस एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने राजद्रोह कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की और कुछ समय बाद उसे मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दिया।
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कानून के इस्तेमाल को लेकर गाइडलाइंस की बात कही। उन्होंने हनुमान चालीसा पढ़ने को लेकर महाराष्ट्र सांसद के खिलाफ प्रावधान के गलत इस्तेमाल का मुद्दा उठाया।
सरकार ने और समय मांगा
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए अदालत से कुछ और समय देने का अनुरोध किया। इसके बाद चीफ जस्टिस ने कहा, ‘इस मामले को मंगलवार दोपहर दो बजे के लिए सूचीबद्ध करें। सॉलिसिटर जनरल सोमवार तक हलफनामा दाखिल करें। इस मामले को अब और स्थगित नहीं किया जाएगा।’
केंद्र से सवाल
राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून के दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने और महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए किया था। भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ और पूर्व मेजर-जनरल एस जी वोम्बटकेरे की याचिकाओं की सुनवाई पर सहमत होते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता कानून का दुरुपयोग है।

