सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ते पर दिया बड़ा फैसला
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला लेते हुए कहा है कि कोई भी मुस्लिम तलाकशुदा महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पति से गुजारे भत्ता मिले की हकदार है। इस वजह से वह गुजारे भत्ते के लिए याचिका दायर कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में बने एक बेहद विवादित कानून को बड़ा झटका दिया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी आपराधिक दंड संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ते की मांग करने का हकदार बताया है। राजीव गांधी सरकार ने शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के इसी तरह के आदेश को पलटने के लिए नया कानून बना दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिला (तलाक संबंधी अधिकारों का संरक्षण) कानून, 1986 की सीमाओं को तोड़ते हुए कहा कि महिला चाहे किसी भी धर्म की हो, उसे शादी टूटने पर पति से गुजारा-भत्ता मांगने का हक है। शाह बानो नाम की मुस्लिम महिला को जब सुप्रीम कोर्ट ने पति से गुजारा भत्ता लेने का हकदार बताया था तब मुस्लिम समुदाय के आक्रोश के आगे झुककर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद से उपर्युक्त कानून पारित करवा दिया था।
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सीआरपीसी की धारा 125 सभी धर्मों पर लागू
ताजा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 सभी धर्म की महिलाओं पर लागू होता है यानी यह एक धर्मनिरपेक्ष प्रावधान है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कह दिया है कि यह फैसला हर धर्म की महिलाओं पर लागू होगा और मुस्लिम महिलाएं भी इसका सहारा ले सकती हैं। इसके लिए उन्हें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कोर्ट में याचिका दाखिल करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इस मामले में 19 फरवरी को फैसला सुरक्षित रखा था।
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हाईकोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती
दरअसल, यह पूरा मामला तेलंगाना के एक व्यक्ति अब्दुल समद और उसकी तलाकशुदा पत्नी से जुड़ा हुआ है। फैमिली कोर्ट ने अब्दुल समद को 20 हजार रुपए प्रति माह गुजारा भत्ता देने को कहा था। समद ने इसे तेलंगाना हाईकोर्ट में चुनौती दी। तब हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ते की रकम आधी करके 10 हजार रुपए प्रति माह कर दी। समद फिर भी संतुष्ट नहीं हुए और हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले आए।
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1986 के कानून का दिया हवाला
अब्दुल समद ने अपनी याचिका में दावा किया कि मुस्लिम महिला और इस मामले में उनकी तलाकशुदा पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता मांगने की हकदार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में समद के वकील वसीम कादरी ने दलील दी कि दरअसल तलाकशुदा महिला के हितों के लिहाज से सीआरपीसी की धारा 125 से कहीं ज्यादा फायदेमंद मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 है जिसे राजीव गांधी की सरकार ने लाया था। आज राजीव गांधी होते तो सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले का गूंज कुछ ज्यादा होती। मीडिया उनकी प्रतिक्रिया मांगता और विपक्ष हमलावर होता।
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