—दक्षिण-पश्चिम मानसून को लेकर मौसम विज्ञान विभाग ने किया ऐलान
–हर साल 8 जुलाई तक पूरे भारत को कवर करता था मानूसन
–राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के शेष भागों में बढ़ा आगे
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इंट्रो
दक्षिण-पश्चिम मानसून मंगलवार को पूरे देश में पहुंच गया है। भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार मानसून राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के बाकी हिस्सों में आगे बढ़ गया है। इसने तय समय से छह दिन पहले सभी राज्यों को कवर कर लिया है। आमतौर पर यह 8 जुलाई को पूरे भारत को कवर करता है। मानसून के पहुंचने बाद भी देश के कई इलाकों में भारी बारिश तो कुछ राज्यों में बारिश की कमी देखी जा रही है।
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नई दिल्ली। दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य तिथि से छह दिन पहले ही पूरे देश में पहुंच गया है। भारत मौसम विज्ञान विभाग ने मंगलवार को यह जानकारी दी। विभाग ने एक बयान में कहा, दक्षिण-पश्चिम मानसून आज राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के शेष भागों में और आगे बढ़ गया। इस प्रकार इसने दो जुलाई 2024 तक ही पूरे देश को कवर कर लिया, जबकि यह सामान्य रूप से आठ जुलाई तक पूरे देश में पहुंचता है। उसने बताया कि मानसून अपने सामान्य समय से छह दिन पहले ही पूरे भारत में पहुंच गया। मानसून केरल और पूर्वोत्तर क्षेत्र में 30 मई को पहुंचा था, जो सामान्य से दो से छह दिन पहले है। यह महाराष्ट्र तक सामान्य रूप से आगे बढ़ा, लेकिन इसकी गति धीमी हो गई जिसके कारण पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बारिश का इंतजार बढ़ गया तथा उत्तर-पश्चिम भारत में भीषण गर्मी का प्रभाव और अधिक बढ़ गया। देश में 11 जून से 27 जून तक 16 दिन सामान्य से कम वर्षा दर्ज की गई, जिसके कारण जून में कुल मिलाकर सामान्य से कम वर्षा हुई। इस महीने में 147.2 मिलीमीटर वर्षा हुई, जबकि इस महीने में सामान्य रूप से 165.3 मिलीमीटर वर्षा होती है, जो 2001 के बाद से सातवीं सबसे कम वर्षा है। देश में चार महीने के मानसून के दौरान कुल वर्षा (87 सेंटीमीटर) में से 15 प्रतिशत बारिश जून में होती है।
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सामान्य से अधिक बारिश का अनुमान
भारत मौसम विज्ञान विभाग ने सोमवार को कहा कि जुलाई में भारत में सामान्य से अधिक वर्षा हो सकती है। भारी वर्षा के कारण पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों और देश के मध्य भाग में नदी घाटियों में बाढ़ आने की आशंका है। देश में इस साल जुलाई में 106% बारिश हो सकती है। भारी बारिश से पश्चिमी हिमालयी राज्यों (जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड) और देश के मध्य भागों (मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़) में नदी घाटियों में बाढ़ आने की संभावना है। इस साल जून में 10.9% बारिश की कमी दर्ज हुई है। सामान्य रूप से 165.3 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन 30 जून तक केवल 147.2 मिमी बारिश दर्ज हुई। 8 से 26 जून के बीच लगातार सामान्य से कम बारिश हुई।
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मिजोरम में भूस्खलन, तीन की मौत
मिजोरम की राजधानी आइजोल के बाहरी इलाके में भूस्खलन से एक इमारत आंशिक रूप से जमींदोज हो गई जिससे चार वर्षीय एक बच्ची समेत कम से कम तीन लोगों के मारे जाने की आशंका है। सुबह के समय लगातार बारिश के कारण यह घटना हुई और तब इमारत में रहने वाले लोग सो रहे थे। परिवार के कुछ सदस्य वहां से निकलने में कामयाब रहे, जबकि एक दंपति और उनकी चार साल की बेटी लापता हैं और माना जा रहा है कि वे मलबे में दबे हुए हैं। अधिकारी ने बताया कि फिलहाल बचाव अभियान जारी है। इसके अलावा, मंगलवार को सुबह भारी भूस्खलन के कारण आइजोल के उत्तरी बाहरी इलाके में जुआंगटुई में तीन इमारतें और बावंगकॉन इलाके में एक इमारत ढह गई। उन्होंने बताया कि ऐहतियात के तौर पर सभी लोगों ने अपने घर खाली कर दिए हैं।
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असम में बाढ़, 13 का रेस्क्यू
असम में बाढ़ की स्थिति मंगलवार को भी गंभीर बनी रही और 6.5 लाख से अधिक लोग इस प्राकृतिक आपदा की दूसरी लहर से जूझ रहे हैं। भारतीय वायु सेना (आईएएफ) ने बाढ़ से गंभीर रूप से प्रभावित डिब्रूगढ़ जिले में फंसे 13 मछुआरों को बचाया है। एएसडीएमए ने भारतीय वायुसेना से फंसे हुए 13 मछुआरों को हेलीकॉप्टर की मदद से निकालने का अनुरोध किया। इसका सारा खर्च एएसडीएमए द्वारा वहन किया जाएगा।’ इससे पहले रविवार को भारतीय वायुसेना ने धेमाजी जिले के जोनाई से राज्य आपदा मोचन बल के आठ कर्मियों और एक राजस्व अधिकारी को बचाया था।
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इधर, बद्रीनाथ में अलकनंदा नदी हुई रौद्र, श्रद्धालु भी सहमे
उत्तराखंड में उच्च गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में स्थित विश्वविख्यात बद्रीनाथ मंदिर के ठीक नीचे अलकनंदा नदी के तट पर महायोजना के तहत हो रही खुदाई के कारण सोमवार देर शाम नदी में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। पानी ऐतिहासिक तप्तकुंड की सीमा को छूने लगा जिससे धाम में मौजूद श्रद्धालु सहम गये। हालांकि, कुछ घंटे उफान पर रहने के बाद नदी का जलस्तर सामान्य हो गया। अलकनंदा, बद्रीनाथ मंदिर से कुछ ही मीटर नीचे बहती है। नदी तट और मंदिर के बीच में ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पवित्र तप्तकुंड है और मंदिर के दर्शन करने से पूर्व श्रद्धालु गर्मपानी के इसी कुंड में स्नान कर भगवान बद्रीविशाल के दर्शन करते हैं। इसी स्थान के पास ब्रह्मकपाल क्षेत्र है जहां भक्तजन अपने पूर्वजों की याद में पित्रदान करते हैं। इसी क्षेत्र में नदी के तट पर 12 शिलाएं हैं जो बद्रीनाथ यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पूजनीय है। अलकनंदा नदी इसी इलाके में कई घंटों तक उफान पर रही। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, नदी का यह रौद्र रूप भयावह था। स्थानीय लोगों ने बताया कि महायोजना के तहत हो रही खुदाई के कारण बद्रीनाथ मंदिर के निचले हिस्से में तट पर जमा मलबे की मिट्टी अलकनंदा का जलस्तर बढ़ने के साथ बह गयी थी लेकिन छोटे पत्थर और बोल्डर वहीं पर जमे रहे और उन्होंने मंदिर के नीचे अलकनंदा के प्रवाह को रोक दिया। इससे लगभग तीन घंटे तक बद्रीनाथ मंदिर का ब्रह्मकपाल क्षेत्र खतरे की जद में रहा।
पहली बार देखा ऐसा जलस्तर
बद्रीनाथ तीर्थपुरोहित संगठन के अध्यक्ष प्रवीण ध्यानी ने बताया कि अलकनंदा के जलस्तर का इस तरह बढ़ना उन्होंने पहली बार देखा है। उन्होंने कहा, ‘पहली बार अलकनंदा के पानी में सभी 12 शिलाएं समा गईं और ब्रह्मकपाल तथा तप्तकुंड तक नदी का पानी आना इस विश्वविख्यात मंदिर के लिए खतरे की घंटी है। बद्रीनाथ में महायोजना के नाम पर किए जा रहे निर्माण कार्यो के संभावित खतरों को लेकर दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिख चुके प्रख्यात पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि अलकनन्दा हिमनद से निकलने वाली नदी है जिस पर उच्च हिमालय में हो रही गतिविधियों का सीधा प्रभाव पड़ता है।
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