हाईकोर्ट के फैसले पर रोक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-अवैध भर्तियों को अलग करना जरूरी

—शीर्ष न्यायालय में दो मामले : ममता सरकार को राहत, केजरीवाल की आफत

00 बंगाल में 25,753 शिक्षकों, अन्य की नियुक्ति को अमान्य ठहराने वाले आदेश पर रोक लगाई

00 केजरीवाल ने चुनाव प्रचार के लिए मांगी थी इजाजत, नहीं हो पाया कोई फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दो बड़े मामलाें पर सुनवाई की। पश्चिम बंगाल में 25,753 शिक्षकों, अन्य की नियुक्ति को अमान्य ठहराने वाले हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा कि अवैध भर्तियों को अलग करना जरूरी है। वहीं, दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल को तत्काल राहत नहीं मिली। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि केजरीवाल को अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाता है, तो सरकार के कामकाम में दखल नहीं देंगे।

नई दिल्ली। शीर्ष न्यायालय ने ने मंगलवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें राज्य के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में स्कूल सेवा आयोग द्वारा की गई 25,753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति को अमान्य कर दिया गया था। प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने हालांकि, सीबीआई को अपनी जांच जारी रखने और राज्य मंत्रिमंडल के सदस्यों की भी जांच करने की अनुमति दी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से कहा कि वह जांच के दौरान किसी संदिग्ध को गिरफ्तार करने जैसी कोई जल्दबाजी भरी कार्रवाई न करे। इससे पहले न्यायालय ने कथित भर्ती घोटाले को “व्यवस्थागत धोखाधड़ी” करार देते हुए कहा कि अधिकारियों की जिम्मेदारी थी कि वे 25,753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित डिजिटल रिकॉर्ड संभाल कर रखते। पीठ कलकत्ता उच्च न्यायालय के 22 अप्रैल के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल के सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में 25,753 शिक्षकों व गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति को अमान्य घोषित कर दिया था। प्रधान न्यायाधीश ने राज्य सरकार की ओर से पेश वकीलों से कहा, “सरकारी नौकरियां बहुत कम हैं। अगर जनता का विश्वास उठ गया तो कुछ भी नहीं बचेगा। यह व्यवस्थागत धोखाधड़ी है। सरकारी नौकरियां आज बहुत कम हैं और उन्हें सामाजिक विकास के रूप में देखा जाता है। अगर नियुक्तियों पर भी सवाल उठने लगें, तो व्यवस्था में क्या बचेगा? लोगों का विश्वास खत्म हो जाएगा, आप इसे कैसे स्वीकार कर सकते हैं? पीठ ने कहा कि राज्य सरकार के पास यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि उसके अधिकारियों ने डेटा संभाल कर रखा। पीठ ने डेटा की उपलब्धता के बारे में भी पूछा। पीठ ने राज्य सरकार के वकीलों से कहा, या तो आपके पास डेटा है या नहीं है। डिजिटल रूप में दस्तावेज संभाल कर रखना आपकी जिम्मेदारी थी। अब यह जाहिर हो चुका है कि डेटा नहीं है। आपको यह बात पता ही नहीं है कि आपके सेवा प्रदाता ने किसी अन्य एजेंसी की सेवा ली है। आपको उसके ऊपर निगरानी रखनी चाहिए थी। इससे पहले, राज्य सरकार ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि अदालत ने मनमाने तरीके से नियुक्तियां रद्द कर दीं।

हाईकोर्ट ने सैलरी लौटाने के लिए भी कहा था

बीती सुनवाई में कोर्ट ने भर्ती को रद्द करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। दरअसल, ममता सरकार को बड़ा झटका देते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने साल 2016 की शिक्षक भर्ती को रद्द किया था। अवैध नियुक्ति के जरिए टीचिंग कर रहे शिक्षकों से सैलरी लौटाने के लिए भी कहा था. ये भर्तियां कर्मचारी चयन आयोग द्वारा अलग-अलग ग्रुप के लिए हुई थीं। इस फैसले से शिक्षक बेरोजगार हो गए।

तत्कालीन शिक्षा मंत्री पर भी गिरी थी गाज

इसके साथ ही हाईकोर्ट ने पूरा जॉब पैनल रद्द कर दिया था। पैनल पर 5 से 15 लाख रुपये की घूस लेने का आरोप है। हाईकोर्ट फैसले को चुनौती देते हुए सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। बताते चलें कि इस मामले में टीएमसी के कई विधायक, नेता और शिक्षा विभाग के कई अधिकारियों को गिरफ्तार किया जा चुका है।तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी पर भी गाज गिरी थी. उन्हें भी गिरफ्तार किया गया। जांच में चटर्जी के सहयोगियों के पास से करोड़ों रुपये बरामद किए गए थे।

इधर, केजरीवाल के अंतरिम जमानत पर फैसला नहीं

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली। दो न्यायाधीशों की पीठ ने लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए उन्हें अंतरिम जमानत देने पर कोई आदेश नहीं सुनाया। केजरीवाल पर कथित आबकारी नीति घोटाले से जुड़े एक मामले में धन शोधन का आरोप लगाया गया है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने सुनवाई के दौरान अंतरिम जमानत देने पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने यह भी कहा था कि वह अपराह्न दो बजे फैसला सुनाएगी, लेकिन फैसला नहीं सुनाया गया। पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एस वी राजू की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। सिंघवी केजरीवाल की ओर से और राजू प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से पेश हुए थे। ईडी की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने लोकसभा चुनावों के कारण केजरीवाल के प्रति किसी भी तरह की नरमी दिखाने का कड़ा विरोध किया और कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक को अंतरिम जमानत देना नेताओं के लिए एक अलग श्रेणी बनाने के समान होगा। पीठ ने केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई को दो हिस्सों में बांटा है। केजरीवाल की मुख्य याचिका में ईडी द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती दी गई है और इसे अवैध घोषित करने का अनुरोध किया गया है, जबकि दूसरा पहलू मौजूदा लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए अंतरिम जमानत देने से संबंधित है। अदालत ने अंतरिम जमानत देने के मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुनवाई के दौरान पीठ ने संकेत दिया कि कल न्यायाधीश अलग-अलग संयोजनों में बैठेंगे और यदि बुधवार के लिए सूचीबद्ध मामलों पर सुनवाई पूरी हो जाती है और न्यायाधीशों के पास समय होता है, तो वे ईडी द्वारा केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ उनकी याचिका पर सुनवाई फिर से शुरू करेंगे। न्यायमूर्ति खन्ना ने अंतरिम जमानत के मुद्दे पर फैसला सुनाने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित किए बिना कहा, अगर कल नहीं, तो हम इस मामले पर गुरुवार को सुनवाई कर सकते हैं। अगर गुरुवार को नहीं, तो हम इस मामले पर अगले सप्ताह विचार करेंगे। इस बीच, दिल्ली की एक अदालत ने धन शोधन मामले में केजरीवाल की न्यायिक हिरासत 20 मई तक बढ़ा दी।

20 मई तक बढ़ाई हिरासत

सीबीआई और ईडी के लिए विशेष न्यायाधीश कावेरी बावेजा ने केजरीवाल की हिरासत 20 मई तक बढ़ा दी। केजरीवाल की हिरासत समाप्त होने पर उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अदालत में पेश किया गया था। केजरीवाल को इस मामले में 21 मार्च को गिरफ्तार किया गया था और वह न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल में बंद हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने नौ अप्रैल को केजरीवाल की गिरफ्तारी को बरकरार रखते हुए कहा था कि इसमें कुछ भी अवैध नहीं है और केजरीवाल के बार-बार समन की अवहेलना करने के बाद ईडी के पास बहुत कम विकल्प बचे हैं। यह मामला 2021-22 के लिए दिल्ली सरकार की आबकारी नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में कथित भ्रष्टाचार और धन शोधन से संबंधित है। यह नीति बाद में रद्द कर दी गई थी।

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