–कोर्ट ने कहा- चुनावी बॉन्ड योजना असंवैधानिक, 13 मार्च तक चंदे का होगा खुलासा
–एसबीआई को दिए निर्देश- 6 मार्च तक चंदा देने वालाें की दें जानकारी
–निर्वाचन आयोग से कहा- 13 मार्च तक पोर्टल में अपलोड करें चंदे का ब्योरा
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इंट्रो
सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा झटका दिया है। पांच जजो की पीठ ने चुनावी बॉन्ड पर रोक लगा दी। निर्वाचन आयोग को 13 मार्च तक अपने पोर्टल पर चुनावी बॉन्ड योजना की जानकारी अपलोड करनी होगी। इसमें किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया, इसकी जानकारी होगी। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना असंवैधानिक है।
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में राजनीति के वित्तपोषण के लिए लाई गई चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह संविधान प्रदत्त सूचना के अधिकार और बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है। लोकसभा चुनाव से पहले आए इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक को छह वर्ष पुरानी योजना में दान देने वालों के नामों की जानकारी निर्वाचन आयोग को देने के निर्देश दिए। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि एसबीआई को राजनीतिक दलों द्वारा भुगतान कराए गए सभी चुनावी बॉन्ड का ब्योरा देना होगा। इस ब्योरे में यह भी शामिल होना चाहिए कि किस तारीख को यह बॉन्ड भुनाया गया और इसकी राशि कितनी थी। इसने कहा कि साथ ही पूरा विवरण छह मार्च तक निर्वाचन आयोग के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि निर्वाचन आयोग को एसबीआई द्वारा साझा की गई जानकारी 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक करनी होगी। पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अलग और सर्वसम्मत फैसले दिए। प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा, चुनावी बॉन्ड योजना और विवादित प्रावधान ऐसे हैं कि वे चुनावी बॉन्ड के माध्यम से योगदान को गुमनाम बनाते हैं तथा मतदाता के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करते हैं, साथ ही अनुच्छेद 19 (1) (ए) का भी उल्लंघन करते हैं। पीठ ने कहा कि नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार में राजनीतिक गोपनीयता, संबद्धता का अधिकार भी शामिल है। फैसले में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और आयकर कानूनों सहित विभिन्न कानूनों में किए गए संशोधनों को भी अवैध ठहराया गया। इसमें कहा गया कि एसबीआई चुनावी बॉन्ड जारी नहीं करेगा और 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉन्ड के ब्योरे निर्वाचन आयोग को देगा। न्यायालय ने कहा कि साथ ही एसबीआई को उन राजनीतिक दलों के भी ब्योरे देने होंगे जिन्हें 12 अप्रैल 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड के जरिए धनराशि मिली है। पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने इस फैसले पर प्रसन्नता जताई है। उन्होंने कहा, इससे लोगों का लोकतंत्र पर विश्वास बहाल होगा। इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता था। यह उच्चतम न्यायालय की ओर से पिछले पांच-सात वर्ष में दिया गया सबसे ऐतिहासिक निर्णय है। यह लोकतंत्र के लिए वरदान है। उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया। उच्चतम न्यायालय जिंदाबाद।
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चार याचिकाओं पर सुनवाई
पीठ ने पिछले वर्ष अक्टूबर में चार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की, जिनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की याचिकाएं शामिल हैं। कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कहा, जो लोग चुनावी बॉन्ड के माध्यम से धन दान कर रहे थे वे अपने नाम का खुलासा नहीं कर रहे थे। कहीं न कहीं वे सरकार से कोई फायदा चाहते होंगे। इस फैसले से फर्क पड़ेगा। यह लोगों के हितों की रक्षा करेगा।
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कोर्ट ने क्यों रद्द किया बॉन्ड?
00 राजनीतिक दलों को गुमनाम चंदे वाली चुनावी बॉन्ड योजना मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।
00 सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, यह नीति में बदलाव लाने या सत्ता में राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने वाले व्यक्ति को लाइसेंस देने के रूप में हो सकती है।
00 राजनीतिक चंदा योगदानकर्ता को मेज पर एक जगह देता है, यानी यह विधायकों तक पहुंच बढ़ाता है और यह पहुंच नीति निर्माण पर प्रभाव में भी तब्दील हो जाती है।
00 राजनीतिक दलों की फंडिंग की जानकारी मतदान का विकल्प के प्रभावी अभ्यास के लिए आवश्यक है। राजनीतिक असमानता में योगदान देने वाले कारकों में से एक, आर्थिक असमानता के कारण व्यक्तियों की राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता में अंतर है।
00 आर्थिक असमानता के कारण धन और राजनीति के बीच गहरे संबंध के कारण राजनीतिक जुड़ाव के स्तर में गिरावट आती है।
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एसबीआई को दिए निर्देश
भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दलों का ब्योरा दे, जिन्होंने 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा हासिल किया है। भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दल की ओर से कैश किए गए हर चुनावी बॉन्ड की जानकारी दे, कैश करने की तारीख का भी ब्योरा दे। भारतीय स्टेट बैंक सारी जानकारी 6 मार्च 2024 तक इलेक्शन कमीशन को दे।
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निर्वाचन आयोग को ऐसी हिदायत
सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को चुनावी बॉन्ड को लेकर निर्देश जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि भारतीय स्टेट बैंक से मिलने वाली जानकारी को भारत निर्वाचन आयोग 13 मार्च तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर पब्लिश करे, ताकि जनता भी इनके बारे में जान सके।
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क्या है चुनावी बॉन्ड
चुनावी बॉन्ड वित्तीय तरीका है जिसके माध्यम से राजनीतिक दलों को चंदा दिया जाता है। इसकी व्यवस्था पहली बार वित्तमंत्री ने 2017-2018 के केंद्रीय बजट में की थी। चुनावी बॉन्ड योजना- 2018 के अनुसार चुनावी बॉन्ड के तहत एक वचन पत्र जारी किया जाता है जिसमें धारक को राशि देने का वादा होता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के अनुसार इसमें बॉन्ड के खरीदार या भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है, स्वामित्व की कोई जानकारी दर्ज नहीं की जाती और इसमें धारक (यानी राजनीतिक दल) को इसका मालिक माना जाता है।
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अब तक कितना धन जुटाया
00 भारतीय स्टेट बैंक द्वारा अब तक 16,518.11 करोड़ रुपए के चुनावी बांड बेचे जा चुके हैं।
00 एडीआर की एक रिपोर्ट से पता चला है कि भाजपा को 2022-23 में कॉर्पोरेट दान का 90 प्रतिशत प्राप्त हुआ।
00 अन्य राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने संयुक्त रूप से लगभग 70 करोड़ रुपए का कॉर्पोरेट चंदा दिया। भाजपा को इस क्षेत्र से 610.491 करोड़ रुपए मिले।
00 रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस ने 79.92 करोड़ रुपए, आप ने 37 करोड़ रुपए, एनपीपी ने 7.4 करोड़ रुपये, सीपीआई (एम) ने 6 करोड़ रुपये, जबकि बसपा ने 2022-23 में 20,000 रुपए मिलने की घोषणा की।
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कांग्रेस बोली-वोट की ताकत होगी मजबूत
कांग्रेस ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह निर्णय नोट के मुकाबले वोट की ताकत को और मजबूत करेगा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, चुनावी बॉन्ड योजना की शुरुआत के दिन कांग्रेस पार्टी ने इसे अपारदर्शी और अलोकतांत्रिक बताया था। इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने अपने 2019 के घोषणापत्र में मोदी सरकार की इस संदिग्ध योजना को खत्म करने का वादा किया। हम आज उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं जिसने मोदी सरकार की इस ‘काला धन रूपांतरण’ योजना को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘‘इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इस योजना के तहत 95 प्रतिशत चंदा भाजपा को मिला।
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भाजपा बोली- राजनीतिकरण कर रही कांग्रेस
भाजपा ने कहा कि शीर्ष अदालत के हर फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए। पार्टी ने विपक्षी दलों पर इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने का आरोप भी लगाया। भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा कि विपक्ष इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहा है क्योंकि उसके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और उनकी सरकार द्वारा किए गए सकारात्मक कार्यों से मुकाबले का कोई विकल्प नहीं है। हम अदालतों में वकालत करते हैं और रोजाना मामले जीते और हारे जाते हैं। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के किसी भी आदेश या उसके फैसले को स्वीकार किया जाना चाहिए और उसका सम्मान किया जाना चाहिए।
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