एक-के-बाद-एक छोड़ते जा रहे इंडिया गठबंधन को साथी

-चुनावी मैदान में उतरने से पहले ही तितर-बितर हुआ विपक्ष

नई दिल्ली। भारत में 18वें लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान नहीं हुआ है, लेकिन सभी राजनीतिक दल इसकी तैयारी में जुट गए हैं। विपक्षी दलों का एनडीए गठबंधन आपसी कलह से जूझ रहा है। अब तक कई बड़ी पार्टियां अकेले ही चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी हैं। वहीं, कई बड़े नेता इस गठबंधन के साथ-साथ अपनी पार्टी भी छोड़ चुके हैं। सोमवार को राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी ने एनडीए का दामन थाम लिया है। इसके पहले, इंडिया गठबंधन के लिए सबसे बड़ा झटका बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गठबंधन से अलग होना रहा है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और दिल्ली-पंजाब में आम आदमी पार्टी भी अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है। ऐसे में अगर सपा के अखिलेश यादव ने भी अकेले चुनाव लड़ने की बात कही तो इंडिया सिर्फ नाम का गठबंधन रह जाएगा और एनडीए को चुनौती देना बेहद मुश्किल हो जाएगा। चुनाव आयोग फरवरी महीने के अंत तक या मार्च के पहले सप्ताह में आगामी लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान करेगा। इसके बाद सभी दलों और गठबंधन को 543 लोकसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों का एलान करना होगा। सत्ताधारी एनडीए गठबंधन इसके लिए तैयार है और जल्द ही उन सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का एलान कर सकता है, जहां उसे जीत नहीं मिली है, लेकिन इंडिया गठबंधन के चुनौती बड़ी है। कई दल पहले ही गठबंधन को झटका दे चुके हैं। यहां हम बता रहे हैं कि अब तक किन दलों ने गठबंधन को झटका दिया है।

जदयू

नीतीश कुमार की अगुआई वाला जनता दल यूनाईटेड अब इंडिया गठबंधन से अलग हो चुका है। नीतीश एक बार फिर एनडीए का हिस्सा बन चुके हैं। राज्य के मुख्यमंत्री का ही गठबंधन से अलग होना इंडिया गठबंधन के लिए बड़ा झटका है। अब विपक्षी खेमे के लिए बिहार की 40 लोकसभा सीटों में 10 सीट जीत पाना भी बेहद मुश्किल होगा। 2019 में यहां कांग्रेस को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली थी, जबकि आरजेडी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। 16 सांसद वाली जदयू पार्टी अब एनडीए का हिस्सा बन चुकी है। ऐसे में मौजूदा समय में एनडीए गठबंधन के पास 40 में से 39 सांसद हैं, वहीं, इंडिया गठबंधन के पास सिर्फ एक सांसद है। अगर इस बार भी नतीजे ज्यादा नहीं बदलते हैं तो बिहार में विपक्षी गठबंधन को बड़ा नुकसान हो चुका है।

टीएमसी

ममता बनर्जी ने 24 जनवरी को एलान किया था कि वह पश्चिम बंगाल में अकेले चुनाव लड़ेंगी। हालांकि, उन्होंने गठबंधन से किनारा नहीं किया, लेकिन उनका अकेले चुनाव लड़ने का फैसला गठबंधन के लिए बड़ा नुकसान बन सकता है। विपक्षी दलों के एक होने की वजह यही थी कि जो भाजपा के खिलाफ पड़ने वाले वोट होते हैं, वह अन्य दलों में बंट जाते हैं और 50 फीसदी से कम वोट पाकर भी भाजपा प्रत्याशी जीत हासिल कर लेता है। अब अगर टीएमसी पश्चिम बंगाल में अकेले चुनाव लड़ती है तो गठबंधन के अन्य सहयोगी दल भी उसी सीट पर चुनाव लड़ सकते हैं। इस स्थिति में गठबंधन करने से मिलने वाला फायदा नहीं होगा। 2019 में कांग्रेस ने यहां 42 में से 2 सीट जीती थीं. भाजपा को 18 और टीएमसी को 22 सीटें मिली थीं।

आप

अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली आम आदमी पार्टी भी अकेले चुनाल लड़ने की बात कह चुकी है। यह पार्टी दिल्ली और पंजाब में सत्ता में है। इन दोनों राज्यों में भी गठबंधन के सीट बंटवारे में विवाद के चलते इंडिया को नुकसान हो सकता है। हालांकि, आम आदमी पार्टी दोनों राज्यों में कांग्रेस के विकल्प के रूप में ही आई है। ऐसे में अगर कांग्रेस इन दोनों जगहों पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारती है तो इंडिया गठबंधन का नुकसान कम हो सकता है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान राज्य की सभी 13 लोकसभा सीटें जीतने का दावा कर चुके हैं और यह भी कहा था कि राज्य में उनकी पार्टी का कांग्रेस से कोई नाता नहीं है। 2019 में कांग्रेस ने यहां 8 और आप ने एक सीटी जीती थी।

आरएलडी ने भी छोड़ा साथ

उत्तर प्रदेश में भी इंडिया गठबंधन को झटका लग चुका है। राष्ट्रीय लोक दल ने अब भाजपा का दामन थाम लिया है। जाट वोटरों के बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अच्छी पकड़ रखने वाले RLD के जाने से भाजपा को बड़ा फायदा होगा। इससे वोट में होने वाली कटौती कम होगी। अब सपा और कांग्रेस दोनों के लिए मिलकर उत्तर प्रदेश में भाजपा को चुनौती देना बेहद मुश्किल होगा। सबसे ज्यादा 80 सीट वाले उत्तर प्रदेश में 2019 में भाजपा को 62, बसपा को 10, सपा को 5 और कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी। कांग्रेस से ज्यादा दो सीटें अपना दल ने जीती थीं.

सीपीआई (एम) भी दे सकता है झटका

केरल में भा कांग्रेस के लिए सीटों का बंटवारा करना बेहद मुश्किल होगा। यहां 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यूडीएफ के साथ गठबंधन किया था और 20 में से 19 सीटें जीती थीं. हालांकि, इस बार पार्टी के लिए सीपीआई (एम) के साथ गठबंधन करना मुश्किल हो सकता है। सीपीआई (एम) किसी भी सूरत में एक सीट पर सहमत नहीं होगी। यहां गठबंधन को बनाए रखने के लिए कांग्रेस को कम से कम अपने पुराने गठबंधन के आधे सांसदों का टिकट काटना पड़ सकता है।

बड़े नेता भी छोड़ चुके हैं गठबंधन

दलों के अलावा कई बड़े नेता भी गठबंधन के साथ-साथ अपनी पार्टी भी छोड़ चुके हैं। इसमें महाराष्ट्र से कांग्रेस के अशोक चव्हाण, बाबा सिद्दिकी और मिलिंद देवड़ा बड़ा नाम हैं। इन नेताओं के पार्टी छोड़ने से गठबंधन भी कमजोर हुआ है। अशोक चव्हाण के साथ 13 नेता भाजपा के साथ जुड़ सकते हैं। इससे विपक्षी गठबंधन कमजोर हो रहा है। वहीं, एनडीए की मजबूती बढ़ रही है।

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