सुप्रीम कोर्ट डिप्टी सीएम के पद को चुनौती, पीठ ने कहा-असंवैधानिक नहीं

–सीजेआई की पीठ ने खारिज की जनहित याचिका

–जनहित याचिका में कहा गया था कि संविधान में उपमुख्यमंत्री पद का कोई प्रविधान नहीं

–कोर्ट ने कहा कि उपमुख्यमंत्री का पदनाम संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा-डिप्टी सीएम

इंट्रो

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में डिप्टी सीएम नियुक्ति करने की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि डिप्टी सीएम की नियुक्ति, कई राज्यों में पार्टी या सत्ता में पार्टियों के गठबंधन में वरिष्ठ नेताओं को थोड़ा अधिक महत्व देने की प्रक्रिया का पालन किया जाता है। यह असंवैधानिक नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि डिप्टी सीएम का पदनाम संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है।

नई दिल्ली। राज्यों में पिछले कुछ सालों से डिप्टी सीएम की नियुक्ति का चलन बढ़ा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई और इस पद पर आपत्ति जताई गई। याचिका की सुनवाई करते हुए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि उपमुख्यमंत्री संविधान के तहत सिर्फ सीएम की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद के सदस्य हैं और इससे ज्यादा कुछ नहीं। बेंच ने कहा कि कि उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करती है। इस आधार पर याचिका को खारिज किया जाता है।

जनहित याचिका में कहा गया था कि संविधान में कोई प्रविधान नहीं होने के बावजूद विभिन्न राज्य सरकारों ने उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति की है। संविधान के अनुच्छेद 164 में केवल मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति का प्रविधान है।

देश में सबसे पहला उप-मुख्यमंत्री?

देश के सबसे पहले उप-मुख्यमंत्री अनुग्रह नारायण सिंह थे, जो कि औरंगाबाद से नाता रखने वाले राजपूत नेता थे। वह बिहार में पहले सीएम श्रीकृष्ण सिंह (सिन्हा) के बाद कांग्रेस में सबसे अहम नेता माने जाते थे, बाद में 1987 के बाद और राज्यों में भी डिप्टी-सीएम देखने को मिले।

देश के 14 राज्यों में 26 डिप्टी सीएम

देशभर के 14 राज्यों में इस वक्त 26 डिप्टी सीएम है। वकील मोहनलाल शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि डिप्टी सीएम की नियुक्ति का राज्य के नागरिकों से कोई लेनादेना नहीं है। न ही कथित उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति होने पर राज्य की जनता का कोई अतिरिक्त कल्याण होता है।

याचिकाकर्ता की ऐसी दलील

याचिका में यह भी कहा गया था कि डिप्टी सीएम की नियुक्ति से जनता में बड़े पैमाने पर भ्रम पैदा होता है। साथ पॉलिटिकल पार्टियों द्वारा काल्पनिक पोर्टफोलियो बनाकर गलत और अवैध उदाहरण स्थापित किए जा रहे हैं, क्योंकि उपमुख्यमंत्रियों के बारे में कोई भी स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते हैं। जबकि उन्हें मुख्यमंत्रियों के बराबर दिखाया जाता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट इसको सुनने के बाद याचिका को खारिज कर दिया।

कैबिनेट मंत्री जैसी सैलरी और सुविधा

सामान्य तौर पर लोग किसी भी प्रदेश की सरकार में डिप्टी-सीएम को मुख्यमंत्री के बाद दूसरे नंबर का मंत्री माना जाता है। वैसे, राज्यों में डिप्टी सीएम का पद कैबिनेट मंत्री की रैंक के बराबर का माना जाता है। डिप्टी सीएम को भी कैबिनेट मंत्री जितनी तनख्वाह और सुविधाएं मिलती हैं।
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