- पीएम मोदी ने एक्स पर पोस्ट करते हुए दी जानकारी
-किसानों के लिए चौधरी सिंह, आर्थिक सुधारों के लिए राव को किया जाता है याद
-स्वामीनाथन ने खाद्य असुरक्षा की समस्या का किया था समाधान
(फोटो : भारत रत्न)
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने पूर्व पीएम नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह और वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न (मरणोपरांत) देने का ऐलान किया है। पीएम मोदी ने खुद एक्स पर पोस्ट करते हुए इसकी जानकारी दी। पीएम मोदी ने चौधरी चरण सिंह को याद करते हुए अपने एक्स अकाउंट पर पोस्ट कर कहा, उन्होंने किसानों के अधिकार और उनके कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। दरअसल रालोद के मुखिया जयंत सिंह के दादा और किसानों के मसीहा तथा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को काफी समय से भारत रत्न देने की मांग उठ रही थी। पीएम के ऐलान पर जयंत चौधरी ने पोस्ट करते हुए लिखा, ‘दिल जीत लिया। वहीं कांग्रेस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने का ऐलान करते हुए पीएम मोदी ने कहा, एक प्रतिष्ठित विद्वान और राजनेता के रूप में, नरसिम्हा राव ने विभिन्न पदों पर रहते हुए शानदार तरीके से भारत की सेवा की। उनका दूरदर्शी नेतृत्व भारत को आर्थिक रूप से उन्नत बनाने, देश की समृद्धि और विकास के लिए एक ठोस नींव रखने में सहायक था। ‘प्रधानमंत्री के रूप में नरसिम्हा राव का कार्यकाल महत्वपूर्ण कदम उठाने के रूप में जाना जाता है जिन्होंने भारत को वैश्विक बाजारों के लिए खोल दिया, जिससे आर्थिक विकास के एक नए युग को बढ़ावा मिला। प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन को याद करते हुए पीएम मोदी ने लिखा, स्वामीनाथन ने चुनौतीपूर्ण समय के दौरान भारत को कृषि में आत्मनिर्भरता हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय कृषि को आधुनिक बनाने की दिशा में उत्कृष्ट प्रयास किए। पीएम ने आगे लिखा, ‘हम एक अन्वेषक और संरक्षक के रूप में और कई छात्रों के बीच सीखने और अनुसंधान को प्रोत्साहित करने वाले उनके अमूल्य काम को जानते हैं।
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‘किसानों के मसीहा’ चौधरी
भारत के ‘किसानों के मसीहा’ के रूप में लोकप्रिय चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक जीवन काफी लंबा रहा और इस दौरान वह प्रधानमंत्री और दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। चरण सिंह ने 28 जुलाई 1979 से अगस्त 1979 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वह 21 अगस्त 1979 से 14 जनवरी 1980 तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री भी रहे। चौधरी चरण सिंह तीन अप्रैल 1967 से 25 फरवरी 1968 और 18 फरवरी, 1970 से एक अक्टूबर, 1970 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे। चरण सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के वर्तमान हापुड़ जिले के नूरपुर में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में 1902 में हुआ था। उन्होंने 1923 में विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, और 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया। कानून में डिग्री लेकर गाजियाबाद में वकालत भी की। 1929 में वह मेरठ चले आये और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गये। वे सबसे पहले 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए एवं 1946, 1952, 1962 एवं 1967 में विधानसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश की सेवा की एवं उनकी ख्याति एक ऐसे कड़क नेता के रूप में हो गई थी, जो प्रशासन में अक्षमता, भाई – भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे। प्रतिभाशाली सांसद एवं व्यवहारवादी चरण सिंह अपनी वाक्पटुता एवं दृढ़ विश्वास के लिए जाने जाते हैं। उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाले विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उनके द्वारा की गई पहल का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन एवं उन्हें मिलने वाले अन्य लाभों को काफी कम कर दिया गया था। चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें एवं रूचार-पुस्तिकाएं लिखीं, जिसमें ‘ज़मींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ़ डिवीज़न ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रेड’ आदि प्रमुख हैं।
नरसिम्हा राव ने की आर्थिक सुधारों की शुरुआत
बहुभाषाविद्, राजनेता और विद्वान, पी. वी. नरसिम्हा राव को भारतीय राजनीति के चाणक्य के रूप में जाना जाता है, जिनके प्रधानमंत्री रहने के दौरान देश में दूरगामी आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई थी। राव के निधन के 19 साल बाद शुक्रवार को उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजे जाने की घोषणा की गई है। वह 1991 से 1996 तक देश के प्रधानमंत्री पद पर रहे थे। वह किसी दक्षिणी राज्य से देश के पहले प्रधानमंत्री थे। वह नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के ऐसे पहले कांग्रेस नेता थे जिन्होंने प्रधानमंत्री के पद पर पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। उन्होंने 1990 के दशक की शुरूआत में भारत को आर्थिक भंवर से निकाला। प्रधानमंत्री के पद पर उनके पांच साल के कार्यकाल के दौरान बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाये जाने की घटना हुई, भगवा ताकतें उभरीं और देश को एक नये आर्थिक पथ पर मजबूती से आगे बढ़ाया गया, जो सार्वजनिक क्षेत्र के समाजवाद के नेहरू काल से हटकर था। वाशिंगटन में 1994 में, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ एक शिखर बैठक के बाद राव के कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका संबंधों में तेजी से प्रगति हुई। राव को संगीत, सिनेमा और रंगमंच पसंद थे, जबकि उनकी विशेष रुचि भारतीय दर्शन और संस्कृति में थी। उनकी रूचि कहानी और राजनीतिक टिप्पणी लिखने, भाषाएं सीखने, तेलुगू और हिंदी में कविताएं लिखने तथा साहित्य में भी थी। उनके शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में, दिसंबर 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचे का विध्वंस और उसके बाद हुए देशव्यापी सांप्रदायिक दंगे भी शामिल हैं। वह 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों के समय केंद्रीय गृह मंत्री थे और उन्हें ‘आपराधिक अकर्मण्यता’ तक के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। प्रतिभूति घोटाले के एक साल बाद 1993 में, हर्षद मेहता ने उस समय सनसनी फैला दी जब उन पर आरोप लगा कि उन्होंने राव को उनके आवास पर एक करोड़ रुपये से भरा एक सूटकेस सौंपा था। राव को इस राजनीतिक संकट से बाहर आने में थोड़ा समय लगा।
स्वामीनाथन के अनुसंधान से खाद्य सुरक्षा को मिला बल
पादप अनुवांशिकीविद के तौर पर एम.एस स्वामीनाथन के अनुसंधान से खाद्य असुरक्षा की समस्या का समाधान हुआ और पैदावर बढ़ने से छोटे किसानों को अपनी आय बढ़ाने का मौका मिला। उन्होंने अपना पूरा जीवन कृषि और किसानों की आय में सुधार को समर्पित कर दिया। उनकी बेटी और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ)की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक और पूर्व उप महानिदेशक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने उनके काम और समर्पण के बारे में कहा, ‘‘ उन्हें जमीनी स्तर पर किए गए काम के परिणामों और लोगों के प्यार व स्नेह से अधिक प्रेरणा मिली।” उनका योगदान रहा कि जो देश 1960 के दशक में अपने लोगों का भरण-पोषण करने के लिए अमेरिकी गेहूं पर निर्भर था वह आज खाद्यान्न अधिशेष राष्ट्र में बदल गया है। उनके मित्र और सहकर्मी प्यार से उन्हें एमएस कहकर संबोधित करते थे। उनका पूरा नाम मनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन था। अपने लंबे करियर में स्वामीनाथन ने वह कर दिखाया जिसकी उन्होंने वकालत की थी। उन्होंने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नयी किस्मों का विकास किया और किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करके बंपर पैदावार सुनिश्चित की। तमिलनाडु के कुंभकोणम में 7 अगस्त, 1925 को डॉ. एम.के. संबाशिवन और पार्वती थंगम्मई के घर जन्मे स्वामीनाथन ने उस समय कृषि क्षेत्र की दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जब किसान पुरानी कृषि पद्धति पर निर्भर थे। करेंट साइंस (लिविंग लेजेंड्स इन इंडियन साइंस) में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार, उन्होंने 1949 में कृषि विश्वविद्यालय, वैगनिंगन, नीदरलैंड और बाद में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आलू के ‘साइटोजेनेटिक’ अध्ययन के साथ अपना शोध करियर शुरू किया, जहां उन्होंने 1952 में जेनेटिक्स में पीएचडी हासिल की। उन्हें 1960 के दशक के दौरान जब देश अकाल की आशंका का सामना कर रहा था तब उच्च उपज देने वाली गेहूं और धान की किस्मों के विकास और शुरूआत का नेतृत्व करने के लिए विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें दुनिया भर के विश्वविद्यालयों से 84 मानद डॉक्टरेट उपाधि प्राप्त करने के अलावा प्रतिष्ठित पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कार प्राप्त हुए। वह 2007-13 के दौरान राज्यसभा सदस्य थे और 2010-13 में, उन्होंने खाद्य सुरक्षा पर विश्व समिति (सीएफएस) के विशेषज्ञों के उच्च स्तरीय पैनल की अध्यक्षता की। अपने फाउंडेशन के माध्यम से, उन्होंने छह लाख से अधिक कृषक परिवारों के जीवन में बदलाव लाया।
सौम्या ने कहा, ‘‘ वे जिन किसानों से मिलते थे, उन्हें सदैव याद किया करते थे। वे भारत में जहां भी जाते, किसान उनसे आकर मिलते और अपना आभार व्यक्त करते।” स्वामीनाथन का 28 सितंबर 2023 को 98 साल की उम्र में निधन हो गया।
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