-राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने की सिफारिश
नई दिल्ली। चिकित्सा छात्र पढ़ाई के बीच में ही अपनी सीट छोड़ सकते हैं। इसके लिए उन्हें जुर्माना भी नहीं देना होगा। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने रेजिडेंट डॉक्टरों पर मानसिक दबाव कम करने के लिए सीट छोड़ने पर जुर्माने की व्यवस्था (सीट बॉन्ड) खत्म करने की सिफारिश की है। राज्यों को पत्र में लिखा, मेडिकल कॉलेजों में सीट के बदले बॉन्ड नीति को खत्म किया जाए। आयोग ने यह भी कहा है कि राज्य सरकार चाहे तो संबंधित छात्र को एक वर्ष के लिए प्रवेश परीक्षा में शामिल न होने का प्रतिबंध लगा सकती है, लेकिन लाखों रुपये की जुर्माना राशि छात्रों को मानसिक तौर पर प्रताड़ित करती है। इसके बजाय ऐसा सहायक वातावरण बनाया जाए, जिससे चिकित्सा शिक्षा के छात्रों व रेजिडेंट डॉक्टरों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को हल किया जा सके। एनएमसी के अंडर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड की अध्यक्ष डॉ. अरुणा वी वणिकर ने कहा कि आयोग को कई शिकायतें मिली हैं, जो विभिन्न संस्थानों में छात्रों के बीच तनाव, चिंता और अवसाद के खतरनाक स्तर का संकेत करती हैं। उन्होंने कहा कि छात्रों के लिए कई बार मानसिक राहत पाने में सबसे बड़ी बाधा यही जुर्माने की राशि होती है। यह भारी भरकम रकम न केवल छात्रों पर वित्तीय दबाव बढ़ाती है, बल्कि आगे बढ़ने में बाधा भी बनती है।
गरीब छात्रों को मिलेगी राहत
डॉ. वणिकर के मुताबिक, इस नीति को खत्म करने से सबसे ज्यादा फायदा उन गरीब छात्रों को मिलेगा, जो कई बार सिर्फ इस वजह से दाखिला नहीं ले पाते हैं कि क्योंकि उनके पास बॉन्ड के तौर पर चुकाने के लिए भारी-भरकम राशि नहीं होती है। इसके अलावा उन छात्रों को भी इसका फायदा मिलेगा, जो किन्हीं अपरिहार्य कारणों से पढ़ाई बीच में छोड़ना चाहते हैं। बॉन्ड के बंधन की वजह से कई छात्र इतना असहाय महसूस करने लगते हैं कि वे आत्महत्या जैसा खौफनाक कदम उठा लेते हैं। इस लिहाज से बॉन्ड व्यवस्था खत्म करने से छात्रों पर मानसिक दबाव कम रहेगा।
छात्रा के पिता ने पीएम मोदी से की शिकायत
डॉ. वणिकर ने बताया कि मध्य प्रदेश के एक कॉलेज की पीजी छात्रा को लगातार 36 घंटे ड्यूटी करनी पड़ी। वह सीट छोड़ना चाहती है, लेकिन कॉलेज ने उसे 30 लाख रुपये का जुर्माना देने का नियम बताया। आर्थिक रुप से कमजोर होने के कारण छात्रा के पिता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख शिकायत की थी। इसी तरह का महाराष्ट्र के राजकीय मेडिकल कॉलेज में सामान्य सर्जरी विभाग के एमएस कोर्स के प्रथम वर्ष के छात्र ने मानसिक रूप से प्रताड़ित किए जाने पर पढ़ाई बीच में ही छोड़ने का फैसला लिया, लेकिन बॉन्ड के तौर पर भारी जुर्माने और सख्त कानून की वजह से वह ऐसा नहीं कर पाया।
प्रासंगिक नहीं अब यह नीति
डॉ. वणिकर ने कहा कि यह नीति अब प्रासंगिक नहीं है। क्योंकि, पिछले 10 वर्षों में सीटों की संख्या में खासी वृद्धि हुई है। अब पहले की तरह सीमित सीटें नहीं हैं, जिससे इस बात की आशंका हो कि कोई छात्र सीट छोड़ेगा। अब, मेडिकल शिक्षा की सीटों में पर्याप्त वृद्धि हो चुकी है और कांउसलिंग में पात्र छात्र नहीं मिलने पर सीटें खाली रह जाती हैं।
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