रिश्तेदारों-सलाहकारों से हफ्ते में दो बार ही मिल सकेंगे कैदी

-हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया सही

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें जेलों में निरुद्ध विचाराधीन कैदी सप्ताह में दो बार ही अपने दोस्त, रिश्तेदार या फिर कानूनी सलाहकारों से मिल सकेंगे। शीर्ष अदालत ने कहा कि विचाराधीन कैदियों और कैदियों की संख्या को ध्यान में रखते हुए जेल में कैदियों के परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों, दोस्तों और कानूनी सलाहकारों द्वारा सप्ताह में दो बार मिलने की संख्या को सीमित करने का फैसला लिया गया है, जिसे पूरी तरह से मनमाना नहीं कहा जा सकता है। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि वह दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं क्योंकि यह एक नीतिगत फैसला है।

यह है मामला

वकील जय अनंत देहाद्रई की याचिका में नियमों में संशोधन की मांग की गई थी। उन्होंने अंतरिम तौर पर अनुरोध किया था कि कानूनी वकील सप्ताह में दो बार से अधिक दिल्ली की जेलों में अपने मुवक्किलों से मिलने जा सकें। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि संख्या को सप्ताह में दो बार तक सीमित करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। दूसरी ओर, दिल्ली सरकार ने अपने जवाब में कहा था कि मिलने वालों की संख्या को सीमित करने का निर्णय राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में कैदियों की संख्या को देखते हुए लिया गया है।

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