गुवाहाटी। देश की आजादी के लिए लड़ने वाले दिगेंद्र चंद्र घोष की बेटी को भारत की नागरिकता साबित करने के लिए तीन साल मुकदमा लड़ना पड़ा है। अब जाकर 73 साल की सेजे बाला घोष यह साबित कर सकी हैं कि वह भारत की ही नागरिक हैं और बांग्लादेशी घुसपैठिया नहीं हैं। उन्हें मार्च 2020 में फॉरेन ट्राइब्यूनल की ओर से नोटिस जारी किया गया था। इसके बाद तीन साल लंबी कानूनी लड़ाई चली। इसी सप्ताह उन्हें ट्राइब्यूनल के आदेश की कॉपी मिली है, जिसमें उन्हें भारत का नागरिक माना गया है। नागरिकता मिलने के बाद वह खुश हैं, लेकिन वह कहती हैं कि सवाल उठाना ही अपमान था। वह कही हैं कि मेरी नागरिकता पर सवाल उठना मेरे पिता के बलिदान का अपमान था। उन्हें भारतीय घोषित करना ही काफी नहीं है। भगवान सब देख रहा है। उन्होंने बातचीत में कहा कि वह अब भी अपमानित महसूस कर रही हैं। उन्होंने बताया,’मेरे पिता ने आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया था। वह चंद्रशेखर आजाद जी के करीबी सहयोगी थे। आजादी के लिए उन्होंने जंग लड़ी। लेकिन आज आजादी के 7 दशकों के बाद उनकी बेटी को घुसपैठिया बताया जा रहा है। यह शर्म की बात है।’
भगवान कृष्ण की भक्त
सेजेबाला बोंगाईगांव जिले के सलबागान गांव में अकेली रहती हैं और भगवान कृष्ण की भक्त हैं। वह कहती हैं, ‘यह शायद मेरे भाग्य में लिखा, लेकिन जो लोग भी मेरे अपमान का कारण बने हैं, उन्हें भुगतना होगा। मेरे भगवान कृष्ण हर चीज देख रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि पुलिस मेरे घर आई और मुझे 2020 में नोटिस थमा दिया। इसके बाद लॉकडाउन शुरू हो गया था। मैं उस नोटिस को पढ़ नहीं सकी और पुलिस से पूछा कि आखिर मेरी क्या गलती है और क्या अपराध है। उन्होंने कहा कि फॉरेन ट्राइब्यूनल का मानना है कि मैं अवैध घुसपैठियां हूं, जो बांग्लादेश से आई हूं। इसलिए मुझे अदालत में पेश होना पड़ेगा।
नागरिक संस्थाओं ने की मदद
हालांकि सेजेबाला को नोटिस मिला तो कई नागरिक संस्थाओं और सिटिजंस फॉर जस्टिस एंड पीस एनजीओ ने उनकी मदद की। उनकी ओर से वकील दीवान अब्दुर्रहीम ने केस लड़ा था। उनके वकील ने बताया कि दस्तावेजों के मुताबिक सेजे बाला के पिता दिगेंद्र चंद्र बोस और उनकी मांग बरादा बाला घोष 1947 में भारत आए थे। पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचारों के चलते वह भारत आए थे और असम में बस गए थे। सेजे बाला का जन्म 1951 में मंगलदोई जिले के बालोगारा गांव में हुआ था। इसी साल उनके पिता का नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस में दर्ज हुआ था। इसके अलावा उनका नाम वोटर लिस्ट में था और पासपोर्ट भी उनके नाम पर जारी हुआ था।
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