-उम्रकैद की सजा वाले आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील खारिज
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नशे में अपराध होने का तर्क देकर सजा से आसानी से नहीं बचा जा सकता। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एक व्यक्ति की अपील खारिज करते हुए कहा कि यह तर्क सिर्फ उस स्थिति में ही मान्य होगा, जब यह साबित किया जाए कि अपराध करने वाला अपनी परिस्थिति के चलते अपराध की प्रकृति को समझने में असमर्थ था। हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को गोली मारने के लिए उसे दोषी ठहराए जाने और आजीवन कारावास की सजा की पुष्टि की थी। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने दोषी की यह दलील खारिज कर दी कि घटना के वक्त (30 मई, 2007) वह भारी नशे में था और इस वजह से यह भी जानने की स्थिति में नहीं था कि वह क्या कर रहा है। अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि महेंद्र और नन्हे एक दूसरे से झगड़ रहे थे। अन्य लोगों के हस्तक्षेप के बाद आरोपी नन्हे वहां से चला गया। लेकिन घटनास्थल से 15 से 20 कदम चलने के बाद वह पीछे मुड़ा और देसी पिस्तौल से गोली चला दी, जो दूसरे व्यक्ति सद्दाम हुसैन को लग गई, जिससे उसकी मौत हो गई। पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 86 आरोपी को नशे और अपने कृत्य की प्रकृति को जानने में असमर्थता के कारण अपराध से बरी कर देती है।
समय पूर्व रिहाई पर विचार नहीं
एक कैदी की समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार करने के आदेश का पालन नहीं करने से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के गृह सचिव को तलब किया है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्थल की पीठ ने कहा, राज्य के हलफनामे पर गौर किया। पाया कि 25 सितंबर के हमारे आदेश का पालन नहीं हुआ है। आदेश में सरकार को कैदी संतोष कुमार सिंह के आवेदन पर नीति के तहत विचार करने के लिए कहा गया था। आदेश नहीं मानने से नाराज पीठ ने राज्य के गृह सचिव को अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत या वर्चुअल तौर पर उपस्थित रहने के लिए कहा है। अगली सुनवाई 11 दिसंबर को होगी। पीठ को बताया गया कि याचिकाकर्ता कैदी की पत्नी की सर्जरी 24 नवंबर को होनी है। इस पर पीठ ने राज्य सरकार को दस्तावेज का परीक्षण करने के लिए कहा। पीठ ने कैदी के दायर अंतरिम जमानत के आवेदन पर सुनवाई के लिए 23 नवंबर की तारीख तय की।
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