न्यायमूर्ति फातिमा, जिन्होंने ठुकराई थीं राजीव के हत्यारों की दया याचिका

सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश फातिमा बीवी का निधन

कोल्लम। सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश एवं तमिलनाडु की पूर्व राज्यपाल न्यायमूर्ति फातिमा बीवी का गुरुवार को यहां एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। फातिमा बीवी 96 वर्ष की थीं। सुप्रीम कोर्ट की जज के रूप में उन्होंने एक बेहतरीन पारी खेली उसके बाद वे तमिलनाडु की राज्यपाल भी बनाई गई थीं। 25 जनवरी 1997 को उन्हें तमिलनाडु का राज्यपाल बनाया गया था। उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले चर्चित रहे। तमिलनाडु की राज्यपाल के रूप में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या मामले में चार दोषियों द्वारा दायर दया याचिकाओं को खारिज कर दिया था।

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने न्यायमूर्ति बीवी के निधन पर शोक व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने लड़कियों के सामने आने वाली शैक्षणिक चुनौतियों से पार पाने से लेकर विधि क्षेत्र में अपना करियर शुरू करने के बाद सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश बनने तक की न्यायमूर्ति बीवी की यात्रा को याद किया। उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति बीवी मुस्लिम समुदाय की पहली महिला थीं, जो उच्च न्यायपालिका का हिस्सा बनीं और उन्होंने सामाजिक स्थितियों के सभी प्रतिकूल पहलुओं को एक चुनौती मानकर उनका सामना किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनका जीवन सभी के लिए, खासकर महिलाओं के लिए प्रेरणा है। उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति बीवी को श्रद्धांजलि देने के लिए उन्हें केरल प्रभा पुरस्कार के लिए चुना गया है। केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने न्यायमूर्ति फातिमा बीवी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने उच्चतम न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश ओर तमिलनाडु की राज्यपाल के रूप में अपनी छाप छोड़ी। जॉर्ज ने एक बयान में कहा, वह एक बहादुर महिला थीं, जिनके नाम कई रिकॉर्ड हैं। वह ऐसी हस्ती थीं, जिन्होंने अपने जीवन से यह दिखाया कि दृढ़ इच्छा शक्ति और मकसद को लेकर समझ होने से किसी भी विपरीत परिस्थिति से पार पाया जा सकता है। न्यायमूर्ति बीवी का केरल के पतनमतिट्टा जिले में अप्रैल 1927 में जन्म हुआ था। उन्होंने वहां स्थित ‘कैथोलिकेट हाई स्कूल’ से स्कूली शिक्षा पूरी की और फिर तिरुवनंतपुरम स्थित ‘यूनिवर्सिटी कॉलेज’ से बीएससी की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने तिरुवनंतपुरम स्थित ‘विधि महाविद्यालय’ से कानून की डिग्री ली और 1950 में वकील के रूप में पंजीकरण कराया। इसके बाद उन्हें 1958 में केरल अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में मुंसिफ के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें 1968 में अधीनस्थ न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और वह 1972 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट बनीं। न्यायमूर्ति बीवी 1974 में जिला एवं सत्र न्यायाधीश बनीं और 1980 में उन्हें आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें 1983 में केरल उच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया और अगले ही वर्ष वह वहां स्थायी न्यायाधीश बन गईं।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया की परीक्षा में किया था टॉप

फातिमा बीवी जब लॉ की पढ़ाई कर रहीं थीं तो उनकी कक्षा में केवल पांच महिला छात्रा थीं। फातिमा बीवी ने 1950 में कानून की डिग्री प्राप्त की उसके बाद उन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया की परीक्षा दी और परीक्षा में टॉप करने वाली पहली महिला बनीं। फातिमा बीवी विज्ञान की पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन उनके पिता देश की पहली महिला जज अन्ना चांडी से बहुत प्रभावित थे, जो हाईकोर्ट की पहली महिला जज बनीं थीं। अपने पिता की वजह से ही फातिमा बीवी ने कानून की पढ़ाई की और इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया।

1989 में सर्वोच्च न्यायालय की जज बनीं

फातिमा बीवी ने 1950 को केरल की निचली न्यायपालिका में अपना करियर शुरू किया। आठ साल के बाद उन्होंने केरल अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में मुंसिफ की नौकरी की। उसके बाद वे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला एवं सत्र न्यायाधीश बनीं। 1983 में फातिमा बीवी केरल उच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनीं। 1986 में फातिमा बीवी केरल हाईकोर्ट से रिटायर्ड हुईं और फिर 1989में सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश नियुक्त की गईं। फातिमा बीवी ने पुरुष प्रधान न्यायपालिका में महिलाओं के लिए करियर बनाने का दरवाजा खोलने का काम किया था।

आज होंगी सुपुर्दे खाक

न्यायमूर्ति फातिमा बीवी का जन्म 30 अप्रैल 1927 को वर्तमान केरल राज्य में हुआ था। उनका शव पतनमतिट्टा में स्थित उनके आवास वापस लाया गया। पतनमतिट्टा जुमा मस्जिद में 24 नवंबर को उन्हें सुपुर्दे खाक किया जाएगा।

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