-पीएमएलए के तहत दायर याचिकाओं पर हुई सुनवाई
-केंद्र की तरफ से एसजी मेहता ने जताई थी आपत्ति
-अब पांच और धाराओं को दी गई है चुनौती
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार पीएमएलए के तहत ईडी की शक्तियों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले पर सुनवाई जारी रखेगा। अदालत ने कहा कि वह सॉलिसिटर जनरल से सहमत या असहमत हो सकते हैं लेकिन उनको सुनवाई शुरू करने दी जाए. जिन याचिकाओं पर अदालत सुनवाई कर रहा है इनको कई मनी लॉन्ड्रिंग मामलों के आरोपियों ने दायर किया है। केंद्र की तरफ से एसजी तुषार मेहता ने यह कहते हुए आपत्ति जताई थी कि पहले याचिकाओं में केवल 2 प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी गई थी, लेकिन अब कई अन्य प्रावधानों को चुनौती दी गई है। पीएमएलए वर्तमान में देश के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कानून है।
केंद्र ने जवाब दाखिल करने के लिए मांगा समय
केंद्र की तरफ से अदालत में कहा गया कि इस पीठ के समक्ष याचिकाएं सूचीबद्ध होने के बाद इन याचिकाओं में कई संशोधन किए गए, जबकि शुरुआत में सिर्फ धारा 50, 63 को चुनौती दी गई थी। उनको कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन अब पांच और धाराओं को चुनौती दी गई है। उस मामले में सुनवाई शुरू होने से पहले उनको जवाब दाखिल करने का मौका दिया जाना चाहिए. अगर दायर करने के बाद याचिका में संशोधन होता है तो हमें जवाब देना होगा। 18 अक्तूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाते हुए कहा था कि वो पीएमएलए प्रावधानों की समीक्षा करेगा। साथ ही अदालत ने केंद्र की मांग ठुकरा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था पीएमएलए प्रावधानों की जांच राष्ट्रीय हित में हो सकती है। अदालत ने कहा था कि पीएमएलए प्रावधानों के तहत ईडी की शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ ने कुछ पीएमएलए प्रावधानों की समीक्षा को “राष्ट्रीय हित में” एक महीने के लिए स्थगित करने की केंद्र की मांगा को खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की केंद्र की दलील
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जब तक कि अंतरराष्ट्रीय निगरानी संस्था एफएटीएफ मनी लॉन्ड्रिंग अपराधों से निपटने के लिए मूल्यांकन पूरा नहीं कर लेती, तब तक राष्ट्रहित में कम से कम एक महीने तक सुनवाई न हो. उन्होंने ये भी कहा कि 2022 का फैसला तीन जजों का था, जिस पर पुनर्विचार याचिका लंबित है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की ये बेंच सुनवाई नहीं कर सकती. लेकिन जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने केंद्र की इस दलील को खारिज कर दिया। जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि हमें सुनवाई करने से कोई रोक नहीं रोक सकता। सुनवाई के दौरान हम तय करेंगे कि हम सुनवाई कर सकते हैं या नहीं।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल बेंच का गठन किया गया है। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है। 27 जुलाई 2022 को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग एक्ट ( पीएमएलए) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी ) द्वारा की गई गिरफ्तारी, जब्ती और जांच की प्रक्रिया को बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिंदबरम और महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मंत्री अनिल देशमुख समेत 242 याचिकाओं पर SC फैसला सुनाया था।
ईडी की शक्तियों के खिलाफ दायर याचिकाएं
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और सीटी रवि कुमार की बेंच ने यह फैसला सुनाया था। याचिकाओं में धन शोधन निवारण अधिनियम ( पीएमएलए) के प्रावधानों को चुनौती दी गई थी। याचिकाओं में पीएमएलए के तहत अपराध की इनकम की तलाशी, गिरफ्तारी, जब्ती, जांच और कुर्की के लिए प्रवर्तन निदेशालय ( ईडी ) को उपलब्ध शक्तियों के व्यापक दायरे को चुनौती दी गई, इसमें कहा गया है कि ये प्रावधान मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं। इस मामले में कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और मुकुल रोहतगी समेत कई वरिष्ठ वकीलों ने हाल के पीएमएलए संशोधनों के संभावित दुरुपयोग से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर एससी के समक्ष दलीलें दीं।
कड़ी जमानत शर्तों, गिरफ्तारी के आधारों की सूचना न देना, ईसीआईआर (एफआईआर के समान) कॉपी दिए बिना व्यक्तियों की गिरफ्तारी, मनी लॉन्ड्रिंग की व्यापक परिभाषा और अपराध की आय, और जांच के दौरान आरोपी द्वारा दिए गए बयान ट्रायल में बतौर सबूत मानने जैसे कई पहलुओं पर कानून की आलोचना की गई। दूसरी ओर, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में प्रावधानों का बचाव किया था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के 18,000 करोड़ रुपये बैंकों को लौटा दिए गए हैं। इस पर कार्ति चिंदबरम ने भी पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। 24 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट खुली अदालत में सुनवाई को तैयार हो गया था, लेकिन इस पर अभी सुनवाई नहीं हुई है।
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ड्राइविंग लाइसेंस देने के कानून में बदलाव जरूरी, केंद्र करे समीक्षा
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को 17 जनवरी तक इस कानूनी सवाल की समीक्षा करने का निर्देश दिया कि क्या लाइट मोटर व्हीकल (हल्के मोटर वाहन) के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति कानूनी रूप से एक विशेष वजन के ट्रांसपोर्ट व्हीकल (परिवहन वाहन) को चलाने का हकदार है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि संशोधन की कवायद के लिए कई हितधारकों के साथ परामर्श की जरूरत होगी जिसमें समय लगेगा। “हम केंद्र को निर्देश देते हैं कि वह इस प्रक्रिया को पूरी तेजी के साथ आगे बढ़ाए। चूंकि राज्य सरकार के साथ परामर्श की परिकल्पना की गई है, हम सभी राज्य सरकारों को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा निर्धारित समय-सीमा का पालन करने का निर्देश देते हैं। पीठ ने कहा, “कार्यवाही अब 17 जनवरी, 2024 को सूचीबद्ध की जाएगी, जिस तारीख तक हम उम्मीद करते हैं कि परामर्श पूरी तरह से खत्म हो जाएगा और केंद्र द्वारा उठाए जाने वाले आगे के कदमों का एक स्पष्ट रोड मैप इस अदालत के समक्ष रखा जाना चाहिए।” इस पीठ में जस्टिस हृषिकेश रॉय, पीएस नरसिम्हा, पंकज मिथल और मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। शुरुआत में, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने केंद्र की ओर से एक नोट पेश किया और कहा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे के समाधान के लिए टुकड़ों में संशोधन के बजाय एक बड़ी तस्वीर पर विचार कर रही है। शीर्ष कानून अधिकारी ने पीठ से इस बीच कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने का आग्रह किया। हालांकि, शीर्ष अदालत ने कार्यवाही स्थगित करने से इनकार कर दिया और मामले को 17 जनवरी को सुनवाई के लिए तय कर दिया।
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