- द्रमुक महिला अधिकार सम्मेलन में हुईं शामिल
नई दिल्ली। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी द्रमुक महिला अधिकार सम्मेलन में शामिल हुईं। उनके साथ ही इस सम्मेलन में उनकी मां और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पीडीपी प्रमुख मेहबूबा मुफ्ती, आम आदमी पार्टी विधायक राखी बिडला, एनसीपी नेता सुप्रिया सुले समेत कई दलों की महिला नेता इस सम्मेलन में शामिल हुईं।
इस दौरान प्रियंका गांधी ने कहा कि महिला आरक्षण को तत्काल लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “मैं महिला आरक्षण विधेयक को तत्काल लागू करने की मांग करती हूं। हम, भारत की महिलाओं के पास अब बर्बाद करने के लिए समय नहीं है। राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होना हमारा अधिकार है। मैं मांग करती हूं कि हमारे “स्वत्व” का महत्व समझा जाये और अपने सशक्तिकरण के लिए एक राजनीतिक शक्ति के रूप में हमारे महत्व का सम्मान किया जाये। मैं मांग करती हूं कि दिन-ब-दिन हमारे खिलाफ होने वाले अन्याय के प्रति अपनी सहनशीलता का महिमामंडन हम बंद कर दें। मैं हर उस सामाजिक, धार्मिक या राजनीतिक व्यवस्था को खारिज करने की मांग करती हूं जो हमारे उत्पीड़न पर पनपती है और हमें उसके साथ समझौता करने के लिए मजबूर करती है।”
पिता को याद कर कही भावुक करने वाली बात
इस दौरान उन्होंने अपनी पहली तमिलनाडु यात्रा को याद करते हुए पिता की हत्या से जुड़ी भावुक वाक्या भी बताया। प्रियंका ने कहा, “आज से बत्तीस साल पहले, अपनी ज़िंदगी की सबसे अंधियारी रात में मैंने तमिलनाडु की जमीन पर पहली बार पांव रखा था। मैं तब उन्नीस बरस की थी और आज जिस उम्र में हूं; तब मेरी मां उससे कुछ साल कम की थीं। जैसे ही हवाई जहाज का दरवाजा खुला, हम रात के अंधेरे में डूब गए। लेकिन मुझे डर नहीं लगा। क्योंकि सबसे भीषण जो हो सकता था वह हो चुका था। कुछ घंटे पहले मेरे पिता की हत्या कर दी गई थी।”
तमिलनाडु की महिलाओं को बताया मां
प्रियंका ने कहा, “जब पिता के क्षत-विक्षत शरीर के हिस्से इकठ्ठे करने के लिये मैं तमिलनाडु में थी, मुझमें किसी बात का कोई भय नहीं बचा था। हवाई जहाज की सीढ़ियां उतर कर हम मीनांबकम हवाई अड्डे की जमीन पर खड़े थे – अवसन्न और अकेले। तभी अचानक नीली साड़ियां पहने हुई स्त्रियों के झुंड ने हमें घेर लिया। जीवन के युद्ध में हमारी पराजय को रोक न पाने वाले देवताओं ने ही शायद उन्हें हमें दिलासा देने भेजा था। वे हवाई अड्डे पर काम करने वाली स्त्रियां थीं। उन्होंने मेरी मां को बाहों में भर लिया और उनके शोक में विलाप करने लगीं, जैसे वे सभी मेरी मांएं हों, जैसे उन्होंने भी अपने जीवनसाथी को खो दिया हो। दर्द की साझेदारी के उन आंसुओं ने मेरे दिल को तमिलनाडु की स्त्रियों के साथ एक डोर में बांध दिया। इस रिश्ते को मैं कभी मिटा नहीं सकती; कभी इसकी व्याख्या भी नहीं कर सकती। आप सब मेरी मांएं हैं। मेरी बहनें हैं। यहां आकर और आप सबके बीच अपने-आपके बारे में – भारत की स्त्रियों के बारे में, दो बातें कहने का मौका पाकर मैं बहुत सम्मानित हुई हूं।”
000

