समलैंगिकों को समान अधिकार, विवाह को मान्यता नहीं, गोद लेने पर बंटे जस्टिस

-सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ का ऐतिहासिक फैसला

–विवाह को मान्यता देने 21 याचिकाओं पर सुनवाई, कोर्ट ने किया इंकार

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा

00 कानून बनाने का काम संसद का, लागू करना हमारा काम

00 कानून बनाकर ही दिया जा सकता है समलैंगिकों को विवाह का अधिकार

00 समलैंगिकों के अधिकारों के लिए कमेटी बनाए सरकार

00 यौन रुझान के आधार पर भेदभाव न किया जाए

इंट्रो

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी तौर पर वैधता देने से इंकार कर दिया है। सीजेआई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 3-2 के फैसले से कहा कि इस तरह की अनुमति सिर्फ कानून के जरिए ही दी जा सकती है। इधर, बच्चा गोद लेने के अधिकार को लेकर सीजेआई और जस्टिस भट्ट के बीच काफी मतांतर दिखा। सीजेआई इसके पक्ष में थे, जबकि जस्टिस भट्ट ने इसका विरोध किया। समलैंगिकों के अधिकार पर सभी सहमत नजर आए।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने मंगलवार को सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसला देते हुए समलैंगिक विवाह को विशेष विवाह कानून के तहत कानूनी मान्यता देने से इंकार कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि इस बारे में कानून बनाने का काम संसद का है। न्यायालय ने हालांकि, समलैंगिक लोगों के लिए समान अधिकारों और उनकी सुरक्षा को मान्यता दी और आम जनता को इस संबंध में संवेदनशील होने का आह्वान किया ताकि उन्हें भेदभाव का सामना नहीं करना पड़े। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का अनुरोध करने संबंधी 21 याचिकाओं पर प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने सुनवाई की। न्यायालय ने चार अलग-अलग फैसले सुनाते हुए सर्वसम्मति से कहा कि समलैंगिक जोड़े संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में इसका दावा नहीं कर सकते हैं। पीठ ने केंद्र के इस रुख की आलोचना की कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिका शहरी अभिजात्य अवधारणा को प्रदर्शित करती है। पीठ ने कहा कि यह सोचना कि समलैंगिकता केवल शहरी इलाकों में मौजूद है, उन्हें मिटाने जैसा होगा तथा किसी भी जाति या वर्ग का व्यक्ति समलैंगिक हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि विवाह एक स्थिर और अपरिवर्तनीय संस्था है।

पीठ में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल थीं। पीठ में कुछ पहलुओं पर मतभेद था, खासकर समलैंगिक जोड़ों के लिए गोद लेने के नियमों के संबंध में। हालांकि पीठ मुख्य मुद्दे पर एकमत थी कि अदालत विशेष विवाह कानून के तहत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दे सकती है। पीठ ने कहा कि यह कार्य संसद को करना है। न्यायमूर्ति भट्ट, न्यायमूर्ति कोहली और न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने दो अलग-अलग फैसलों में कुछ कानूनी पहलुओं पर प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति कौल से अलग राय व्यक्त किए। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि गोद लेने के नियमों को अमान्य माना जाता है क्योंकि वे समलैंगिक लोगों के प्रति भेदभावपूर्ण हैं और उन्हें गोद लेने के अधिकार से वंचित करते हैं। उनकी राय से असहमत न्यायमूर्ति भट्ट ने कहा कि समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने की अनुमति नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि नियम अमान्य हैं। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायालय कानून नहीं बना सकता, बल्कि उनकी केवल व्याख्या कर सकता है और विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करना संसद का काम है। प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति कौल की राय से सहमति जताते हुए न्यायमूर्ति भट्ट ने कहा कि संविधान शादी करने का मौलिक अधिकार नहीं देता है। सुनवाई की शुरुआत में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि मामले में उनका, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा का अलग-अलग फैसला है।

सीजेआई ने सुनाया फैसला

प्रधान न्यायाधीश ने इस अहम मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, इसका निर्णय लेना संसद का काम है। उन्होंने कहा, यह अदालत कानून नहीं बना सकती, वह केवल उसकी व्याख्या कर सकती है और उसे प्रभावी बना सकती है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायालय सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का यह बयान दर्ज करता है कि केंद्र समलैंगिक लोगों के अधिकारों के संबंध में फैसला करने के लिए एक समिति गठित करेगा।

अधिकारों के लिए कमेटी बनाए सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह समलैंगिक विवाह में लोगों के अधिकार और पात्रता के निर्धारिण के लिए एक कमेटी बनाए। यह कमेटी समलैंगिकों को राशन कार्ड में एक परिवार के तौर पर दर्शाने पर भई विचार करे। इसके अलावा उन्हें जॉइंट बैंक अकाउंट, पेंशन के अधिकार, ग्रैच्युटी आदि में भी भी अधिकार देने को लेकर विचार किया जाए। कमेटी की रिपोर्ट को केंद्र सरकार के स्तर पर देखा जाए।

केंद्र-राज्यों को दिया ये निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वह समलैंगिकों के अधिकारों के लिए जागरुकता अभियान चलाएं और यह सुनिश्चित करें कि उन लोगों के साथ किसी तरह का भेदभाव न हो। कोर्ट ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करें कि लिंग-परिवर्तन ऑपरेशन की अनुमति उस आयु तक न दी जाए, जब तक इसके इच्छुक लोग इसके परिणाम को पूरी तरह समझने में सक्षम नहीं हों। प्रधान न्यायाधीश ने पुलिस को समलैंगिक जोड़े के संबंधों को लेकर उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया।

आरएसएस ने किया स्वागत, कांग्रेस बोली-अधिकाराें के करेंगे रक्षा

कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर मंगलवार को कहा कि वह नागरिकों की स्वतंत्रता, इच्छा, स्वाधीनता और अधिकारों की रक्षा के लिए उनके साथ खड़ी है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि शीर्ष अदालत के इस बंटे हुए फैसले का अध्ययन करने के बाद कांग्रेस इस विषय पर विस्तृत प्रतिक्रिया देगी।

34 देशों में वैध है समलैंगिक विवाह

दुनिया में 34 ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक विवाह या तो वैध हैं या उन्हें कानूनी मान्यता मिल चुकी है। मौजूदा वक्त में जिन 34 देशों में समलैंगिक विवाह वैध है या उन्हें कानूनी मान्यता मिली है, उनमें से कुछ प्रमुख देश अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, मेक्सिको, ब्रिटेन, स्कॉटलैंड, डेनमार्क, ब्राज़ील, अंडोरा, चिली आदि हैं।

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