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—सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ का बड़ा फैसला
—संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के अफसरों पर चल सकेगा भ्रष्टाचार का केस
—उच्चाधिकारियों से अनुमति लेने की नहीं होगी कोई जरूरत
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इंट्रो
संयुक्त सचिव स्तर और उससे ऊपर के सरकारी कर्मचारियों को गिरफ्तारी से छूट के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अहम फैसला सुनाया है। पीठ ने कहा कि 2014 से पहले के भी मामलों में आरोपी अफसरों को संरक्षण नहीं मिलेगा। ऐसे मामलों में उच्चाधिकारियों से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी।
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव तथा उससे ऊपर के पद के अधिकारियों के खिलाफ 11 सितंबर 2003 से पूर्वव्यापी प्रभाव से भ्रष्टाचार के मामलों में प्राधिकारियों की पूर्व अनुमति के बिना मुकदमा चलाया जा सकता है तथा उनकी जांच की जा सकती है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से दिए फैसले में कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों में ऐसे अधिकारियों को छूट देने वाले दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 के एक प्रावधान को रद्द करने का उसका 2014 का आदेश पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगा। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि 2014 को दिया फैसला 11 सितंबर 2003 से लागू होगा जब जांच या पूछताछ करने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति से संबंधित डीएसपीई अधिनियम की धारा 6(ए) को इस कानून में शामिल किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने मई 2014 को दिए अपने फैसले में कानून की धारा 6ए(1) को अमान्य करार दिया था और कहा था कि धारा 6ए में दी गई छूट में भ्रष्ट लोगों को बचाने की प्रवृत्ति है। शीर्ष न्यायालय ने सोमवार को इस मामले में फैसला दिया कि क्या गिरफ्तारी से छूट देने वाले प्रावधान को रद्द करने का संविधान के अनुच्छेद 20 के तहत संरक्षित अधिकारों के मद्देनजर पूर्वव्यापी प्रभाव पड़ेगा। संविधान का अनुच्छेद 20 अपराधों की दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण देता है। पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति ए एस ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी भी शामिल रहे। पीठ ने कहा, सुब्रमण्यम स्वामी के मामले में संविधान पीठ द्वारा (मई 2014 में) दिया फैसला पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगा। डीएसपीई कानून की धारा 6(ए) को इसे सम्मिलित किए जाने की तारीख से लागू नहीं माना जाएगा जो कि 11 सितंबर 2003 है।” न्यायालय ने पिछले साल दो नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने मार्च 2016 में यह मामला वृहद पीठ के पास भेज दिया था। शीर्ष न्यायालय ने इस मामले को वृहद पीठ के पास भेजते हुए कहा था, धारा 6ए(1) के प्रावधान यह दिखाते हैं कि संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के पद के अधिकारियों को एक प्रकार की सुरक्षा उपलब्ध करायी गयी है। मौजूदा मामले के निर्धारण में यह विवादास्पद प्रश्न खड़ा होता है कि क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 के संदर्भ में अदालत के एक फैसले के पूर्वव्यापी प्रभावी होने से ऐसी छूट से वंचित किया जा सकता है। शीर्ष न्यायालय दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा था जिसके दौरान यह प्रश्न सामने आया।
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पहले मंजूरी के बगैर नहीं हो सकती थी जांच
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम की धारा 6ए में यह प्रावधान किया गया था कि भ्रष्टाचार के मामलों में केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव या इससे उपर स्तर के अधिकारियों के खिलाफ सक्षम प्राधिकार की मंजूरी या अनुमति के बगैर जांच नहीं हो सकती है और इसके तहत गिरफ्तारी से भी छूट दी थी। दूसरे शब्दों में नौकरशाहों के खिलाफ पुराने लंबित मामलों की जांच के लिए सक्षम प्राधिकार से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी।
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अब नहीं लेनी होगी अनुमति या मंजूरी
संविधान पीठ के इस फैसले से केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव या इससे उपर के अधिकारियों के खिलाफ 11 सितंबर 2003 से पूर्वव्यापी प्रभाव से सक्षम प्राधिकार की अनुमति-मंजूरी के बगैर ही मुकदमा चलाया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ से सोमवार को कहा है कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 की धारा 6ए को रद्द करने का 2014 का उसका फैसला पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगा।
क्या है मामला
दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति की याचिका पर आदेश दिया था, जो मुख्य जिला चिकित्सक अधिकारी था और उसके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप था और सीबीआई ने उसे कथित तौर पर रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार कर लिया था। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने सीबीआई को केंद्र सरकार से अनुमति लेकर इस मामले की नये सिरे से जांच करने का आदेश दिया था। इसी फैसले के खिलाफ सीबीआई की ओर से दाखिल अपील पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संविधान पीठ को सौंपा था।
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2014 से पहले के लंबे केसों पर लागू होगा आदेश
सुप्रीम कोर्ट का 2014 का फैसला पहले से लंबित मामलों पर भी लागू होगा। दिल्ली स्पेशल पुलिस स्टेबलिशमेंट (डीपीएसई) एक्ट की धारा 6ए को लेकर बनी उहापोह की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट फैसला देते हुए अपने 2017 के संयुक्त सचिव स्तर और उससे ऊपर के सरकारी कर्मचारियों को गिरफ्तारी से छूट के प्रावधान को रद्द कर दिया था, लेकिन बेंच ने ये भी बताया था कि ये आदेश 2014 से पहले के लंबित केसों पर भी लागू होगा या नहीं।
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