- आरपार के मूड में नजर आ रहे सीजेआई
-प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 12 सितंबर को होगी सुनवाई
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत औपनिवेशिक युग के राजद्रोह के प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 12 सितंबर को सुनवाई करेगा। ये याचिकाएं 1 मई को शीर्ष अदालत के सामने आई थीं, जिसमें केंद्र के यह कहने के बाद सुनवाई टाल दी गई थी कि वह दंडात्मक प्रावधान की फिर से जांच करने पर परामर्श के अंतिम चरण में है। औपनिवेशिक युग के आपराधिक कानूनों में बदलाव के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए केंद्र ने 11 अगस्त को लोकसभा में आईपीसी, सीआरपीसी व भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिए तीन विधेयक पेश किए थे, जिसमें अन्य बातों के अलावा राजद्रोह कानून को निरस्त करने और अपराध की व्यापक परिभाषा के साथ एक नया प्रावधान पेश करने का प्रस्ताव था। सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ 12 सितंबर को इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
मई 2022 में कानून पर लगी थी रोक
ध्यान रहे कि 11 मई 2022 को एक ऐतिहासिक आदेश में शीर्ष न्यायालय ने राजद्रोह से जुड़े कानून पर तब तक के लिए रोक लगा दी थी, जब तक कि सरकारी इसकी समीक्षा नहीं करती। अदालत ने केंद्र और राज्यों को इस कानून के तहत कोई नई FIR दर्ज नहीं करने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने व्यवस्था दी थी कि देशभर में राजद्रोह कानून के तहत जारी जांच, लंबित मुकदमों और सभी कार्यवाही पर भी रोक रहेगी।
आजादी से 57 साल पहले आया था कानून
इस कानून के तहत अधिकतम आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। इसे देश की आजादी से 57 साल पहले लागू किया गया था। जब ये कानून बनाया गया तब आईपीसी को बने लगभग 30 साल हो चुके थे। उसके बाद 1890 में क्रांतिकारियों पर अंकुश के लिए अंग्रेजी सरकार ने इस कानून को लागू किया था। अंग्रेजी सरकार समझती थी कि आजादी की अलख जगाने वालों के लिए एक सख्त कानून की जरूरत है।
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