बिना शादी के पैदा हुए बेटा-बेटी भी पैतृक संपत्ति के हकदार

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों के हक में अहम फैसला सुनाया। 2011 की एक याचिका पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अवैध शादी से जन्मे बच्चे वैध माने जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 1 सितबंर को कहा कि किसी भी अवैध शादी से जन्मी संतान का उनके माता-पिता की अर्जित और पैतृक प्रॉपर्टी में अधिकार होगा। ऐसे मामलों में बेटियां भी प्रॉपर्टी में बराबर की हकदार होंगी। यह निर्णय केवल हिंदू उत्तराधिकार कानून द्वारा शासित हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्तियों पर ही लागू होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला 2011 में दायर एक याचिका पर सुनाया, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम, धारा 16(3) को चुनौती दी गई थी।इस एक्ट के तहत अवैध शादी से पैदा हुए बच्चे केवल अपने माता-पिता की संपत्ति के हकदार हैं। माता-पिता की पैतृक का किसी दूसरी संपत्ति पर उनका अधिकार नहीं होता।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने स्पष्ट किया, हिंदू विवाह अधिनियम में जिस विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिली हो, उससे पैदा हुए बच्चों की भी माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी होगी। इसके अलावा बेंच ने कहा, अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे ऐसी संपत्ति के हकदार हैं, जो उनके माता-पिता की मृत्यु पर विभाजन के बाद हस्तांतरित होगी।

अपने ही पुराने फैसले को पलटा

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय उसके पहले के एक फैसले के उलट है, जिसमें कहा गया था कि अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों का केवल अपने माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्ति पर ही अधिकार है। तब कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा था, अमान्य विवाह से पैदा हुआ बच्चा माता-पिता की पैतृक संपत्ति पर दावा करने का हकदार नहीं है, लेकिन वह उनके द्वारा अर्जित संपत्तियों में हिस्सेदारी का दावा करने का हकदार है।

कोर्ट ने पिछली सुनवाई में सुरक्षित रखा था फैसला

इस महीने की शुरुआत में मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने 2011 की इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका में पूछा गया था कि क्या अमान्य विवाह से पैदा बच्चे हिंदू कानूनों के तहत माता-पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी के हकदार हैं। कोर्ट को यह भी तय करना था कि क्या हिंदू विवाह अधिनियम के तहत इन बच्चों का अधिकार माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्तियों तक ही सीमित है या वे पैतृक संपत्ति के भी हकदार हैं।

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