-सुप्रीम कोर्ट की दो टूक
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं है। कोर्ट इस बात पर आकलन कर रहा है कि इसे निरस्त करना क्या संवैधानिक रूप से कानूनी था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत एक संवैधानिक लोकतंत्र है, जहां इसके निवासियों की इच्छा सिर्फ स्थापित संस्थानों के जरिए ही सुनिश्चित की जा सकती है। ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने को ‘ब्रेक्जिट’ नाम दिया गया था। ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से बाहर निकलना राष्ट्रवादी उत्साह में बढ़ोत्तरी, मुश्किल इमिग्रेशन नियमों और संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के कारण हुआ है। ब्रेक्जिट को लेकर ब्रिटेन में 2016 में जनमत संग्रह हुआ था। जिसमें लोगों का बहुमत ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के पक्ष में था। जनमत संग्रह के रुझान के बाद कैमरन सरकार को इस्तीफा देना पड़ा था। तब कंजरवेटिव पार्टी की थेरेसा मे की अगुवाई में सरकार बनी थी।
‘ब्रेक्जिट की तरह राजनीतिक कदम है अनुच्छेद 370 हटाना’
सीजेआई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ की ‘ब्रेक्जिट’ को लेकर यह टिप्पणी सीनियर वकील कपिल सिब्बल की एक दलील के बाद आई। सिब्बल ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करना ब्रेक्जिट की तरह ही एक राजनीतिक कदम था, जहां ब्रिटिश नागरिकों की राय जनमत संग्रह से ली गई थी। बता दें कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था। सिब्बल ने आगे कहा, जब 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया, तब ऐसी किसी से रायशुमारी नहीं की गई। सिब्बल नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन की तरफ से पेश हुए. लोन ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती दी है।
‘सिब्बल ने संसद की शक्ति पर भी उठाए सवाल’
सिब्बल ने कहा, संसद ने जम्मू-कश्मीर पर लागू संविधान के प्रावधान को एकतरफा बदलने के लिए अधिनियम को अपनी मंजूरी दे दी. यह सबसे बड़ा सवाल है कि इस अदालत को यह तय करना होगा कि क्या भारत सरकार ऐसा कर सकती है। सिब्बल ने जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की अनुपस्थिति में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की संसद की शक्ति पर बार-बार सवाल उठाया है। उन्होंने लगातार कहा, सिर्फ संविधान सभा को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने या संशोधित करने की सिफारिश करने की शक्ति निहित थी। चूंकि संविधान समिति का कार्यकाल 1957 में समाप्त हो गया था, इसलिए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधान को स्थाई मान लिया गया.
सिब्बल ने जोर देकर कहा, यह कोर्ट ब्रेक्जिट को याद रखेगा. ब्रेक्जिट में जनमत संग्रह की मांग करने वाला कोई संवैधानिक प्रावधान (इंग्लैंड में) नहीं था। लेकिन, जब आप किसी ऐसे रिश्ते को तोड़ना चाहते हैं तो आपको लोगों की राय लेनी चाहिए. क्योंकि इस निर्णय के केंद्र में लोग हैं, ना कि केंद्र सरकार.
‘बेक्जिट जैसे रेफरेंडम की कल्पना नहीं कर सकते’
संविधान पीठ में सीजेआई के अलावा, जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत भी शामिल हैं. हालांकि, सीजेआई चंद्रचूड़ सिब्बल की दलीलों से प्रभावित नहीं हुए. सीजेआई ने कहा, संवैधानिक लोकतंत्र में लोगों की राय जानने का काम स्थापित संस्थाओं के जरिए किया जाना चाहिए. इसलिए आप ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह जैसी स्थिति की कल्पना नहीं कर सकते. उन्होंने सिब्बल के इस विचार से सहमति जताई कि ब्रेक्जिट एक राजनीतिक फैसला था, लेकिन हमारे जैसे संविधान के अंदर जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं है।
राजनीति से प्रेरित था सरकार का कदम’
दिनभर बहस करने वाले सिब्बल ने कहा, अनुच्छेद 370 एक अस्थायी या स्थायी प्रावधान था, अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. उन्होंने कहा कि अंतिम सवाल यह है कि क्या भारत सरकार उस रिश्ते को खत्म कर सकता है जिसे अनुच्छेद 370 के तहत संवैधानिक मान्यता दी गई थी। यह अप्रासंगिक है। अस्थायी या स्थायी कोई फर्क नहीं पड़ता. जिस तरह से यह किया गया वह संविधान के साथ धोखा है। यह राजनीति से प्रेरित कृत्य है। फिलहाल, स्थायी या अस्थायी मुद्दा नहीं है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि शायद ऐसा करने का एक संवैधानिक तरीका है। हालांकि, मैं उस (मुद्दे) को संबोधित नहीं कर रहा हूं और न ही उन्होंने (केंद्र) संवैधानिक पद्धति का सहारा लिया है।
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