-राजनीतिक-सामाजिक बदलाव की ओर केंद्र
जम्मू। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद चार साल बाद केंद्र सरकार की निगाहें अब सूबे में बड़ा राजनीतिक और सामाजिक बदलाव करने की है। सूबे में विधानसभा चुनाव से पहले परिसीमन का काम पूरा हो जाने के बाद सरकार ने वंचित और पिछड़ी जातियों को दूसरे राज्यों की तरह सांविधानिक अधिकार सुनिश्चित करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ने के लिए बुधवार को लोकसभा में एक के बाद एक चार संविधान संशोधन विधेयक पेश किए गए।
जिन विधेयकों को लोकसभा में पेश किया गया है उनमें जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, संविधान (जम्मू कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक, संविधान (जम्मू कश्मीर) अनुसूचित जाति आदेश (संशोधन) विधेयक और जम्मू कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक शामिल हैं। इनमें से तीन विधेयकों में राज्य में सामाजिक न्याय की अवधारणा लागू करने तो एक विधेयक में विस्थापित कश्मीरी पंडितों और पाक अधिकृत कश्मीर को विधानसभा में प्रतिनिधित्व दिए जाने के प्रावधान हैं।
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक
परिसीमन के बाद राज्य में विधानसभा के सीटों की संख्या 107 से बढ़ कर 114 हो गई है। इस विधेयक के जरिए सरकार ने राज्य के विस्थापितों (कश्मीरी पंडितों) के लिए दो और पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के विस्थापितों के लिए एक सीट आरक्षित करने का प्रावधान किया है। इसके लिए इससे जुड़े अधिनियम की धारा 14 में संशोधन कर दो नई धाराएं 15ए और 15बी जोड़ी गई है। ये दो नई धाराएं पीओके और कश्मीर से विस्थापितों का विधानसभा में अनिवार्य प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करेंगी। इन तीनों सीटों पर मनोनयन का अधिकार राज्य के उपराज्यपाल को दिया गया है।
अनुसूचित जनजाति संशोधन विधेयक
सूबे में गुज्जरों और बक्करवालों के विरोध से बेपरवाह केंद्र सरकार ने इस संविधान संशोधन विधेयक के जरिए राज्य की अनुसूचित जनजाति की सूची में गड्डा ब्राह्मण, पद्दारी जनजाति, कोली और पहाड़ी समुदायों को शामिल करने का प्रावधान किया है। इनमें पद्दारी जनजाति किश्तवाड़ और डोडा इलाकों में तो पहाड़ी समुदाय जम्मू, राजौरी और पुंछ, बारामूला और कुपवाड़ा में प्रभावशाली उपस्थिति रखते हैं। कोली और गड्डा ब्राह्मण की छिटपुट उपस्थिति पूरे राज्य में है। परिसीमन के बाद राज्य की नौ सीटें (जम्मू में पांच और कश्मीर में चार) एसटी आरक्षित हैं। ऐसे में इन चार जातियों को इन आरक्षित सीटों पर चुनाव लडऩे का अवसर मिलेगा।
वाल्मिकी समुदाय का एसटी का दर्जा
वाल्मिकी समुदाय को पूरे देश में अनुसूचित जाति का दर्जा हासिल है, मगर जम्मू-कश्मीर में नहीं। संविधान (जम्मू कश्मीर) अनुसूचित जाति आदेश (संशोधन) विधेयक के जरिए इस खामी को दूर करने का प्रावधान है। इस विधेयक के कानून बनते ही वाल्मिकी समुदाय को पूरे देश की तरह जम्मू-कश्मीर में भी एसटी का दर्जा हासिल हो जाएगा। इसके बाद यह समुदाय दूसरे राज्यों की भांति जम्मू-कश्मीर में भी आरक्षण सहित अन्य योजनाओं का लाभ उठा सकेंगी।
ओबीसी आरक्षण का रास्ता साफ
जम्मू-कश्मीर में अब तक ओबीसी आरक्षण नहीं था। जम्मू कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक के जरिए जम्मू कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 में बदलाव का प्रावधान किया गया है। इसके तहत कमजोर और वंचित वर्गो की शब्दावली को बदल कर अन्य पिछड़ा वर्ग कर दिया गया है। इस विधेयक के कानून बनने के बाद पहली बार राज्य में ओबीसी को दूसरे राज्यों की भांति सरकारी नौकरियों, छात्रवृत्ति में आरक्षण सहित अन्य लाभ हासिल करने का सांविधानिक अधिकार हासिल हो जाएगा। विधेयक में जाटों को ओबीसी में शामिल करने का भी प्रावधान किया गया है।
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