तीन शब्दों-‘फर्जी, झूठा, भ्रामक’ की सीमाएं जानने की जरूरत

-: अदालत ने फर्जी समाचार संबंधी आईटी नियमों पर कहा

मुंबई, सात जुलाई बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों के कारण नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार करने से पहले उसे तीन शब्दों- ‘फर्जी, झूठा और भ्रामक’ की सीमाओं को जानने की जरूरत है। अदालत ने सवाल किया कि क्या सरकार की किसी नीति पर राय और संपादकीय सामग्री को भी भ्रामक कहा जा सकता है? उसने सवाल किया कि किसी कानून में अपार और असीमित विवेकाधिकार देना क्या कानूनी रूप से स्वीकार्य है। न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने हाल में संशोधित आईटी नियमों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। संशोधित नियमों के तहत, केंद्र को सोशल मीडिया पर सरकार और उसके काम-काज के खिलाफ फर्जी, झूठे और भ्रामक समाचारों की पहचान करने का अधिकार है। हास्य कलाकार कुणाल कामरा, ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ और ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ ने संशोधित नियमों के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए इन्हें मनमाना एवं असंवैधानिक बताया है। याचिकाओं में दलील दी गई है कि संशोधित नियमों का नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर ‘खतरनाक प्रभाव’ पड़ेगा। अदालत ने कहा, ‘‘इन तीन शब्दों-फर्जी, झूठे और भ्रामक की सीमाएं क्या हैं? याचिकाकर्ताओं ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर इन नियमों का प्रभाव पड़ने का दावा किया है, लेकिन इस पर विचार करने से पहले, हमें यह (तीन शब्दों की सीमा) जानने की जरूरत है। यदि इन शब्दों को सीमाओं में बांधा जा सकता है, तो हमें इनके प्रभावों पर गौर करने की आवश्यकता नहीं है।” सरकार ने यह भी सवाल किया कि कौन सा काम सरकारी काम-काज है और कौन सा नहीं है।

अदालत ने कहा कि नियमों के अनुसार, जब कोई सामग्री/जानकारी फर्जी, झूठी और भ्रामक होगी तो कार्रवाई की जाएगी और प्राधिकारी को यह बताने का स्पष्ट अधिकार है कि सामग्री फर्जी है या नहीं। इस मामले में तथ्यान्वेषी इकाई (एफसीयू) को प्राधिकारी का अधिकार दिया गया है। न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘एफसीयू होना ठीक है, लेकिन हम इस एफसीयू को दिए गए अधिकार को लेकर चिंतित हैं। हमें जो अत्यधिक गंभीर लगता है, वह ‘फर्जी, झूठा और भ्रामक’ जैसे शब्द हैं।” अदालत ने सवाल किया कि क्या इसमें राय और संपादकीय सामग्री भी शामिल होगी?

न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता या मैं यह नहीं बता सकता कि इन शब्दों की सीमाएं क्या हैं। क्या किसी कानून में इस तरह अपार और असीमित विवेकाधिकार होना कानूनी रूप से स्वीकार्य है? इन शब्दों की सीमाएं क्या हैं?” पीठ ने कहा कि नियमानुसार, एफसीयू यह तय करेगी कि पोस्ट की गई कोई सामग्री या बयान सही है या नहीं।

न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘मुझे इससे समस्या है। कोई आखिर यह कैसे कह सकता है कि यह झूठ है। इस अधिकार का स्रोत क्या है? एफसीयू अधिक से अधिक यह बता सकती है कि जानकारी विश्वसनीय है या नहीं। यहां तक कि कोई दीवानी अदालत भी अधिकारपूर्वक यह नहीं कह सकती कि सत्य क्या है। वह अधिक से अधिक संभावना पर टिप्पणी कर सकती है।” पीठ ने सवाल किया कि क्या किसी व्यक्ति की राय और संपादकीय सामग्री इन नियमों के अधीन आती है।

00

प्रातिक्रिया दे